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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांस का एक ऐसा कमांडर था जिससे सारी दुनिया थर थर कांपती थी। उस समय ब्रिटेन में ही इतना दम था जो उसे रोक सके। ब्रिटेन ने उसे रोका भी। एक ऐसी जगह ले जाकर फंसा दिया जहां नेपोलियन की सारी रणनीतियां औंधे मुंह गिर पड़ीं। उसके बाद नेपोलियन फिर कभी पहले वाला खौफ पैदा नहीं कर सका। जिस जगह पर उसकी सारी काबिलियत धरी की धरी रह गई उसका नाम था इंग्लिश चैनल। जिस लड़ाई में ब्रिटिश आर्मी ने नेपोलियन को धूल चटाई उसे नाम दिया गया था Battle of Waterloo।
लोकसभा में राहुल के तेवर देखकर घबरा गई थी बीजेपी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हाल भी कमोवेश नेपोलियम बोनापार्ट जैसा दिख रहा है। 2024 चुनाव के बाद राहुल का कद इतनी तेजी से ऊपर हुआ कि एक बारगी सरकार भी उनसे डरने लगी थी। इसकी बानगी तब दिखी जब राहुल गांधी ने लोकसभा में भाषण दिया। उनके हाथ में शिवजी की तस्वीर थी। सबसे पहले बीजेपी और स्पीकर ओम बिड़ला ने तस्वीर पर आपत्ति जताई। उसके बाद जब तक राहुल बोलते रहे बीजेपी के मंत्री और सांसद लोकसभा की रूलबुक हाथ में लेकर लहराते देखे गए। यानि सरकार और बीजेपी के पास राहुल को रोकने का कोई दूसरा तरीका नहीं था। उनके पास केवल इसी तरह के हथकंडे बचे थे, जिनको वो आजमा सके।
गुजरात को लेकर राहुल ने बीजेपी को दी थी खुली चुनौती
राहुल के तीखे तेवरों की वजह 2024 लोकसभा चुनाव का रिजल्ट था। कांग्रेस 100 सीटों की ताकत के साथ अरसे बाद लोकसभा में पहुंची थी। 2014 के चुनाव में उसकी सीटें 44 पर सिमट गई थीं तो 2019 में पार्टी 52 तक ही पहुंच पाई। 2024 में बीजेपी 400 पार का नारा दे रही थी। लेकिन जब ईवीएम खुलीं तो पीएम नरेंद्र मोदी भी भौचक रह गए। बीजेपी 240 सीटों पर सिमट गई थी। जबकि कांग्रेस ने सैंकड़ा ठोक दिया। बीजेपी के लिए जो अयोध्या चुनावी मुद्दा था वहां से उसके नेता चुनाव हार गए। संसद का पहला सत्र हुआ तो राहुल बेहद आक्रामक मुद्रा में थे। उनके बगल में बैठे थे अयोध्या के सपा सांसद। राहुल ने जब भाषण दिया तो उन्होंने अग्निवीर जैसे मुद्दे उठाकर सरकार की नाक में दम कर दिया। वो यहीं पर नहीं रुके उन्होंने पीएम मोदी और उनकी टीम को खुली चेतावनी दी कि अबकि बार गुजरात में वो उनको नहीं जीतने देंगे। Rahul Gandhi 2025
ब्रांड मोदी कमजोर दिख रहा था, राहुल मजबूत
राहुल गांधी के तेवरों और INDIA block की एकजुटता को देख सरकार के हौसले पस्त थे। राहुल काफी हद तक नेपोलियन के नक्शे कदम पर चल रहे थे। उनके हर भाषण में एक खास तेवर था। एक ऐसा आत्मविश्वास जिसमें दिखता था कि नरेंद्र मोदी को हराया जा सकता है। 2024 का चुनाव पीएम को लेकर था। जब मोदी उसमें हार गए तो आगे कुछ भी हो सकता है। लेकिन बीजेपी ने भी ब्रिटिश सरकार जैसी रणनीति तैयार करके राहुल को ठिकाने लगाने का प्लान तैयार कर लिया था। उनके लिए भी Battle of Waterloo। तैयार कर दिया गया था।
बीजेपी ने चुनाव स्पिलिट करके तैयार की खास रणनीति
बीजेपी ने तय प्लान के साथ लोकसभा के तुरंत बाद होने वाले तीन सूबों हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव को अलग अलग कर दिया। हरियाणा के चुनाव जम्मू कश्मीर के साथ कराए गए जबकि महाराष्ट्र और झारखंड उसके बाद होने थे। राहुल के लिए हरियाणा की जीत हर हाल में जरूरी थी। क्योंकि जम्मू कश्मीर में वो नेशनल कांफ्रेंस के जूनियर पार्टनर थे। वहां की जीत का फायदा कांग्रेस को मिलने नहीं जा रहा था। राहुल ने हरियाणा पर फोकस किया और सधे हुए अंदाज में अपने पत्ते खोले। लेकिन उनको ये नहीं पता था कि बीजेपी ने उनको एक ऐसी लड़ाई में फंसा लिया था जिसमें राहुल की अपनी ही टीम उनको आउट करने पर आमादा थी।
हरियाणा की हार के बाद कमजोर हो गए राहुल
हरियाणा चुनाव हुए और सभी को उम्मीद थी कि कांग्रेस बड़े आराम से सरकार बना लेगी। लेकिन जैसे ही वोटों की काउंटिंग शुरू हुई, कांग्रेस में हाहाकार मचता दिखा। कांग्रेस 37 सीटों पर जाकर हाफने लगी थी। बीजेपी क्लीयर मेजोरिटी ले गई। राहुल के लिए हरियाणा कुछ वैसा ही साबित हो चुका था जैसे नेपोलियन के लिए Battle of Waterloo साबित हुआ था। हरियाणा में बीजेपी की जीत से एक बड़ा संदेश देश भर में गया। लोकसभा चुनाव के बाद माना जा रहा था कि नरेंद्र मोदी में वो करिश्मा नहीं बचा। हरियाणा ने ब्रांड मोदी को फिर से मजबूती से खड़ा कर दिया। हरियाणा गंवाने के बाद राहुल की हालत कुछ वैसी ही हो गई जैसे नेपोलियम की हुई थी। Waterloo के बाद नेपोलियम में पहले वाला दम कभी नहीं दिखा।
हरियाणा की हार के बाद राहुल में भी वो जोशोखरोश नहीं दिख रहा जो लोकसभा चुनाव के बाद दिखा था। हरियाणा की हार से संदेश गया कि राहुल की अपनी ही पार्टी पर पकड़ नहीं है। पूरे चुनाव के दौरान वो भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथों की कठपुतली बने रहे। हुड्डा ने जैसा चाहा राहुल को वैसा ही करना पड़ा। नतीजतन कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने चुनाव में रुचि ही नहीं ली। सैलजा हो या सुरजेवाला सारे के सारे घर जाकर बैठ गए। हुड्डा कभी चाहते ही नहीं थे कि कांग्रेस 90 की असेंबली में 50 के पार जाए। उनको पता था कि अगर ऐसा हुआ तो उनका हाल कैप्टन अमरिंदर या वीरभद्र सिंह के परिवार जैसा हो जाएगा। राहुल पहले के कदमों से दिखा चुके थे कि वो कांग्रेस में अब खानदानी परंपरा को आगे बढ़ाने के इच्छुक नहीं हैं। खैर कुछ भी हो राहुल हरियाणा हारे और अपना औरा गंवा बैठे। इतना ज्यादा कि जिस राहुल के पास में मुद्दों की भरमार थी उसके पास आज केवल एक मुद्दा बचा है और वो है चुनाव में बीजेपी की धांधली।
आज INDIA block भी गंभीरता से नहीं ले रहा
विश्लेषक कहते हैं कि कांग्रेस हरियाणा नहीं हारती तो महाराष्ट्र में मजबूती से जीतती। हरियाणा गंवाने के बाद राहुल के लिए सबसे बड़ी मुश्किल ये हो गई है कि उनको साबित करना होगा कि पार्टी में उनकी आवाज सबसे बुलंद है। हरियाणा की हार के बाद देश की राजनीति में कांग्रेस की स्थिति काफी कमजोर हुई है। अब INDIA block के नेता उनको तवज्जो नहीं देते। यही वजह है कि राहुल तीखे मुद्दों पर सरकार को घेरने की बजाय चुनाव में धांधली का रोना रोते दिख रहे हैं। कुल मिलाकर हरियाणा ने राहुल का वही हाल किया जो नेपोलियन का Waterloo ने। उस लड़ाई के बाद नेपोलियन फिर से कभी पहले वाला खौफ नहीं पैदा कर सका। हरियाणा हारने के बाद राहुल भी पहले वाला कद हासिल नहीं कर पा रहे हैं। उनके सहयोगी दल कांग्रेस को तवज्जो देने को तैयार नहीं हैं तो उनकी पार्टी के भीतर भी एक ऐसा तबका सिर उठाने लगा है जो उनकी बहन और केरल के वायनाड से चुनाव जीतकर संसद पहुंची प्रियंका को कमान देने की वकालत करता रहा है।
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