/young-bharat-news/media/media_files/2025/03/08/lpQxot23YzwfMHjn0Q2p.jpg)
RAHUL GANDHI Photograph: (x)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः राहुल गांधी को अक्सर फ्लाप नेता बताया जाता है। एक ऐसी शख्सियत जिसके पास सियासी उपलब्धि के नाम पर अगर कुछ है तो एक बड़ा सिफर। लेकिन सियासत में एक बार राहुल गांधी ने ऐसी परिपक्वता दिखाई थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तिलमिला गए थे। 2017 के गुजरात चुनाव में राहुल ने तीन लड़कों को आगे करके ऐसा चक्रव्यूह रचा था जिसमें मोदी बुरी तरह से फंस गए थे। इतना कि दो महीने तक अपने पीएम को देखने के लिए दिल्ली भी तरस गई थी। खास बात है कि 2014 की हार के बाद कांग्रेस बुरी तरह से पस्त हो चुकी थी। संगठन दरक चुका था। जिससे लड़ाई थी वो बेहद मजबूत स्थिति में दिख रहा था। क्योंकि जिस सूबे में चुनाव हो रहा था वो प्रधानमंत्री का घर था पर राहुल लड़े और खूब लड़े। ऐसा कि नरेंद्र मोदी के साथ बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह के भी होश उड़ गए।
चुनाव के लिए मोदी ने किया शिंजो आबे, इवांका का शो
2017 का गुजरात चुनाव जब हुआ तो नरेंद्र मोदी सोच रहे थे कि पार्टी क्लीन स्वीप करेगी। वजह भी थी, आखिरकार गुजरात उनका घर था। घर वालों के लिए इससे बड़ी चीज क्या हो सकती है कि उनका बेटा दुनिया भर में अपना परचम लहरा रहा है। हालांकि मोदी चौकन्ने भी थे। उनकी तब की रणनीति इस बात का संकेत देती हैं। गुजरात का चुनाव दिसंबर 2017 में होना था। प्रधानमंत्री ने इसकी तैयारी पहले से ही शुरू कर दी थी। सितंबर में Japanese PM Shinzo Abe को मोदी ने गुजरात बुलाया और रोड शो करा दिया। ये पहली दफा था जब किसी दूसरे देश का पीएम चुनाव प्रचार जैसे शो में हाथ हिला रहा था। मोदी अपने लोगों को बता रहे थे कि वो कितने बड़े हैं। इसके कुछ दिनों बाद ही अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका को Global Entrepreneurship Summit में शिरकत करने के लिए बुलाया गया। वो आई तो हैदराबाद में थीं लेकिन मैसेज गुजरात के लोगों के लिए था। bjp modi
तीन लड़कों को साथ लाकर राहुल ने खेला मास्टर स्ट्रोक
उधर, सोनिया गांधी के उम्रदराज होने की वजह से कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी खाली होने के कगार पर थी। राहुल उसके दावेदार थे पर उन्हें खुद को लायक साबित करना था। सामने था गुजरात चुनाव। चुनौती बेहद मुश्किल थी, क्योंकि गुजरात में कांग्रेस लंबे अरसे से जीत का स्वाद चखने के लिए तरस रही थी। 1985 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आई लहर में कांग्रेस ने 149 सीटें जीती थीं। उसके बाद के चुनावों में बहुत उतार-चढ़ाव होते रहे। बाद के दौर में पार्टी ने सबसे उम्दा प्रदर्शन तब किया जब 2012 में 61 सीटें जीतीं। 2017 में राहुल पूरी शिद्दत से लड़े। उन्होंने तीन युवा नेताओं हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को एक साथ लाकर अपने पाले में खड़ा कर लिया। इनमें से प्रत्येक की पाटीदारों, दलितों और पिछड़ी जातियों के बीच पकड़ थी।
बौखला गई थी बीजेपी, जारी कराई गई थींं सेक्स सीडी
तीनों को साथ लेकर राहुल ने एहतियात से बैटिंग शुरू की। उनके हर स्ट्रोक के बाद बीजेपी तिलमिला जाती थी। खीझ मिटाने के लिए कभी हार्दिक पटेल की सेक्स सीडी जारी करवाई गईं तो जब मणिशंकर अय्यर ने नरेंद्र मोदी को नीच कहा तो उन्होंने मंच से कहा कि ये गुजरात का अपमान है। ये उनकी बौखलाहट दिखा रहा था। मोदी थे तो प्रधानमंत्री पर चुनाव जीतने के लिए उन्होंने खुद को गुजरात तक सीमित कर दिया। इतना कि दो महीने तक दिल्ली अपने प्रधानमंत्री को देखने के लिए तरस गई। कहते हैं कि मोदी किसी पार्षद की तरह से चुनाव लड़ रहे थे। यानि छोटे-छोटे जो बीजेपी नेता रूठकर घर बैठ गए थे उनको वो खुद फोन करके मनाने में जुटे हुए थे। मोदी ने छोटे से गुजरात चुनाव के लिए 37 रैलियां कीं। बीजेपी का आंकड़ा 200 के पार था।
नतीजे आए तो बौखला गए पीएम, 100 के नीचे थी बीजेपी
लेकिन इतना सब करके भी 18 दिसंबर 2017 को जब गुजरात में आखिरी वोटों की गिनती हुई तो भारतीय जनता पार्टी का मूड बहुत अच्छा नहीं था। पार्टी ने लगातार छठी बार विधानसभा चुनाव जीता, लेकिन उसकी सीटें 100 से नीचे यानि 99 पर सिमट गईं। कांग्रेस का स्ट्राईक रेट शानदार था। शरद पवार की पार्टी ने भितरघात की पर कांग्रेस 80 सीटें जीतने में कामयाब रही। 2017 का चुनाव मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्य में पहला चुनाव था। भाजपा को ऐतिहासिक नतीजों की उम्मीद थी। लेकिन नतीजे एक चेतावनी थे, जिसे पार्टी ने गंभीरता से लिया। गुजराती अस्मिता के बढ़ने से लोग खुश थे। वो मानते थे कि हमारे मुख्यमंत्री अब प्रधानमंत्री बन गए हैं, लेकिन किसी तरह से यह आत्मसंतुष्टि थी कि पार्टी निर्णायक जनादेश के साथ जीतेगी। बीजेपी नेता धरातल का मूड भांपने में विफल रहे। किसानों, छोटे व्यापारियों और दलितों के बीच गुस्सा और पाटीदारों के विस्फोटक कोटा आंदोलन ने भाजपा को अभूतपूर्व तरीके से चोट पहुंचाई। 2017 में आंकड़े दर्शाते हैं कि नोटा चौथे स्थान पर था। उसे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और बसपा जैसी कुछ क्षेत्रीय पार्टियों से भी अधिक वोट मिले थे।
भाजपा के गढ़ सौराष्ट्र और कच्छ में राहुल ने लगा दी थी सेंध
गुजरात में बीजेपी लगातार 22 वर्षों से सत्ता में थी। वहां के सीएम अब देश के पीएम की कुर्सी पर बैठे थे लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस ने 35 वर्षों में अपना सर्वोच्च स्कोर हासिल करने में कामयाबी हासिल की थी। यह उसने ऐसे समय में किया है जब भाजपा ने उसके अभियान में सभी तरह की रुकावटें डालीं। कांग्रेस के गुजरात में सबसे बड़े नेता शंकर सिंह वाघेला ने चुनाव से ऐन पहले पार्टी छोड़ दी थी। वाघेला के कांग्रेस छोड़ने के तुरंत बाद अमित शाह ने गुजरात के लिए "मिशन 150" का ऐलान कर दिया था। राहुल की उपलब्धि ये भी थी कि भाजपा के गढ़ सौराष्ट्र और कच्छ में कांग्रेस को बड़ी बढ़त हासिल हुई। यहां बीजेपी की सीटें 36 सीटों से गिरकर 23 पर आ गईं थीं।
नतीजे आने से दो दिन पहले सोनिया ने राहुल को सौंप दी थी अध्यक्षी
कांग्रेस बेशक चुनाव हार गई थी। लेकिन राहुल जिस तरह से लड़े उसने दिखा दिया कि वो सोनिया गांधी की कुर्सी संभालने के लिए पूरी तरह से लायक हैं। तब राहुल 47 साल के थे। चुनाव का रिजल्ट 18 दिसंबर 2017 को आया था पर राहुल की ताजपोशी 16 दिसंबर को ही बतौर कांग्रेस अध्यक्ष हो चुकी थी। हार के बाद राहुल ने पार्टी को धन्यवाद दिया। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा था, "मेरे कांग्रेसी भाइयों और बहनों, आपने मुझे बहुत गौरवान्वित किया है। आप उन लोगों से अलग हैं, जिनसे आपने लड़ाई लड़ी, क्योंकि आपने गुस्से का मुकाबला गरिमा के साथ किया। आपने सभी को दिखा दिया है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत उसकी शालीनता और साहस है।"
2022 के चुनाव में दिखी 2017 से मिले सबक की सीख
2017 में बीजेपी जीती पर वो भौचक थी। जीत के बाद पार्टी ने कई मोर्चों पर तेजी से काम किया। बीजेपी के वोट शेयर में वृद्धि हुई थी। 2012 में ये 47.85 फीसदी था जबकि 2017 में 49.1 फीसदी तक पहुंच गया था लेकिन सीटों में गिरावट आई थी। 2022 से पहले खोई हुई जमीन को वापस पाने के लिए विभिन्न चरणों में बदलाव किए गए। सबसे पहले जिला और राज्य स्तर पर बदलाव किए गए। जुलाई 2020 में तीन बार के विधायक सीआर पाटिल ने जीतू वघानी की जगह राज्य इकाई के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला। फिर आठ कांग्रेस विधायकों को तोड़कर भाजपा में शामिल कराया गया। चुनाव से महज 15 महीने पहले पूरी मंत्रिपरिषद भी बदल दी गई। विजय रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया। पार्टी ने बदलाव के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया, लेकिन यह स्पष्ट था कि 2017 में दूध से जली भाजपा छाछ को भी फूंक-फूंककर पी रही थी।
Gujarat, Gujarat elections, Rahul gandhi, PM Modi, Narendra modi