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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः थोड़ा अरसा पहला जब राज ठाकरे ने एक पाडकास्ट में उद्धव से मिलन की इच्छा जताई तो महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल आ गया। उद्धव ने राज की पेशकश पर तुरंत हां भर दी पर एक शर्त के साथ। ऐसा लग रहा था कि दोनों भाई जल्दी एक होकर ठाकरे ब्रांड को बेजोड़ बनाने का काम करेंगे। लेकिन समय बीतता ही जा रहा है पर दोनों के बीच अभी तक कोई सहमति नहीं बन पाई है। आइए उन कारणों पर नजर डालते हैं, जो दोनों भाईयों को एक नहीं होने दे रहे हैं।
एक होना, राज से ज्यादा उद्धव की जरूरत
हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं भाजपा के बढ़ते कद का मुकाबला करने की जरूरत ने दोनों भाईयों को नजदीक ला खड़ा दिया है। दोनों पक्षों की ओर से सकारात्मक बयानबाजी के बावजूद मामला अटका है। देखा जाए तो इस मिलन की दरकार राज से ज्यादा उद्धव को है। एकनाथ शिंदे की बगावत और बीजेपी के वार पर वार के बाद उद्धव कमजोर हो चुके हैं। राज के पास कोई ज्यादा सियासी ताकत नहीं बची है लेकिन ठाकरे ब्रांड एक होने का असर बहुत ज्यादा व्यापक असर भी दिखा सकता है।
प्रस्ताव का मसौदा तैयार नहीं कर पा रहे उद्धव
नगर निगम चुनावों से पहले उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के बीच संभावित गठबंधन को लेकर अटकलों के बढ़ने के साथ उद्धव ठाकरे गुट के सामने एक बड़ी चुनौती है। एमएनएस को किस तरह का प्रस्ताव दिया जाना चाहिए और किन सीटों के लिए? यह मुद्दा कुछ क्षेत्रों में दोनों पार्टियों के प्रभाव के कारण उलझता जा रहा है। जानकार मान रहे हैं कि इससे संभावित गठबंधन की शर्तों पर गतिरोध पैदा हो रहा है।
2017 के नगरपालिका चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) ने 84 सीटें जीतीं, लेकिन उसके बाद से 42 ने पार्टी छोड़ दी है। इसके विपरीत एमएनएस के पास फिलहाल कोई पार्षद नहीं है, जिससे इसकी स्थिति काफी कमजोर हो गई है। उद्धव ठाकरे गुट का मानना है कि दादर, वर्ली, वडाला, सेवरी, चेंबूर और भांडूर जैसे विधानसभा क्षेत्रों में उनकी स्थिति मजबूत है। लिहाजा राज को उनकी शर्तें माननी चाहिए। ये एक बड़ा पेंच है, जिसकी वजह से दोनों भाई एकजुट होने में हिचक रहे हैं। राज मानते हैं कि जब दोनों एक हो गए तो सब कुछ साझा होना चाहिए पर उद्धव गुट का मानना है कि सीटों पर दावेदारी मौजूदा ताकत के हिसाब से हो तो दोस्ती दूर तलग तक जाएगी।
बीजेपी और शिंदे सेना अड़ा रही एक होने की प्रक्रिया में टांग
दोनों भाईयों के एक होने से बीजेपी सूबे की राजनीति में अटक सकती है तो एकनाथ शिंदे की शिवसेना सिमट सकती है। लिहाजा दोनों राज को उद्धव से दूर करने में लगे हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और भारतीय जनता पार्टी इस गठबंधन को रोकने के लिए शिद्दत से जुटी है। उन्हें डर है कि इससे महाराष्ट्र की राजनीति में उनका प्रभुत्व खतरे में पड़ सकता है। मनसे नेता बाला नंदगांवकर कहते हैं कि एक समय पर मैंने राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को साथ लाने की कोशिश की थी। लेकिन बात नहीं बन पाई। राजनीति में जब कुछ घटनाएं घटती हैं तो अच्छी या बुरी चीजें होती हैं, लेकिन मुझे नहीं पता कि आगे क्या होगा, इसलिए इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है।
फडणवीस और शिंदे लगातार कर रहे हैं राज से गुफ्तगू
गौर करने वाली बात है कि जब से राज उद्धव के मिलन की खबरें आम होने लगीं तब से देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे राज से कुछ ज्यादा ही नजदीकी दिखाने लग पड़े हैं। फडणवीस हाल ही में राज से एक फाइव स्टार होटल के बंद कमरे में मिले थे। मुलाकात बंद कमरे में हुई पर इसका पता सारी दुनिया को लग गया। जाहिर है कि बीजेपी का मकसद उद्धव तक राज के कारनामे को पहुंचाना था। इसी तरह से डिप्टी सीएम शिंदे और उनके नेता जब भी राज ठाकरे से मिलते हैं पता दुनिया भर को लग जाता है। कवायदें साफ संकेत देती हैं कि उनका मकसद दिलों में जहर भरना है।
उद्धव ने सीएम और उनके डिप्टी सीएम को दी सीधी धमकी
शिवसेना के 59वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित एक रैली में उद्धव ने फडणवीस और शिंदे को चेतावनी दी कि अगर उसने ठाकरे ब्रांड को नुकसान पहुंचाया तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। उद्धव ने कहा कि मराठी पार्टियों के गठबंधन की संभावना को विफल करने के लिए होटलों और अन्य जगहों पर बैठकें की जा रही हैं। वह जाहिर तौर पर राज ठाकरे की महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ शहर के एक पांच सितारा होटल में हाल ही में हुई बैठक का जिक्र कर रहे थे। उनका कहना था कि लोग जो चाहते हैं, वही होगा। हम देखेंगे कि यह कैसे किया जाता है। भाजपा और शिंदे सेना नहीं चाहती कि मराठी पार्टियां एकजुट हों। अगर आप ठाकरे ब्रांड को खत्म करने की कोशिश करेंगे तो हम भाजपा को खत्म कर देंगे। वो बोले- मैं तैयार हूं।¦ मैं भाजपा से कहना चाहता हूं...जब आप मुझे लेने आएं तो अपने लिए एम्बुलेंस लेकर आएं। उद्धव ने प्रहार फिल्म के डायलाग से दोनों को चेताया।
संजय राउत को लगता है कि भाईयों का मिलन होकर ही रहेगा
शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने यह एकतरफा प्यार नहीं है। राजनीति में हर कोई सावधानी से कदम बढ़ाता है। ये राजनीतिक घटनाक्रम हैं और मुंबई और महाराष्ट्र का भविष्य, मराठी पहचान का गौरव दांव पर है। दोनों वही करेंगे जो जरूरी है। उनका मानना है कि राज-उद्धव गठबंधन के बारे में अटकलें बाल ठाकरे द्वारा स्थापित अविभाजित शिवसेना में उनके साझा इतिहास से उपजी हैं।
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