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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः पिछले हफ्ते जब भारत स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, तब शिवसेना यूबीटी नेता संजय राउत ने ठाकरे बंधुओं के गठबंधन की मजबूती का जिक्र कर निकाय चुनावों में जीत की भविष्यवाणी की थी। उन्होंने कहा कि अब कोई भी ताकत मराठी मानुष की मजबूत पकड़ को नहीं तोड़ सकती। लेकिन कुछ ही दिनों में दोनों की बातें शुरू हो गई हैं कि बीएमसी चुनाव तक दोनों साथ रहेंगे भी?
फडणवीस-राज की मुलाकात से अफवाहों का बाजार गर्म
कुछ दिनों पहले ठाकरे खेमे में सब कुछ ठीक लग रहा था। 2005 में अलग हुए चचेरे भाई उद्धव और राज ने सुलह कर ली थी और हाई-प्रोफाइल मुंबई नगर निगम चुनाव साथ मिलकर लड़ने वाले थे। उनके दांव से बीजेपी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए एक बड़ी दुविधा पैदा हो गई थी। लेकिन बेस्ट चुनाव में ठाकरे परिवार समर्थित उम्मीदवारों की हार के बाद लोगों की भौहें तन गईं। गुरुवार को राज ठाकरे जब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मिले तो अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन समर्थित उम्मीदवारों ने प्रस्तावित 21 सीटों में से सात पर जीत हासिल की। यह तब हुआ जब फडणवीस ने कहा कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना यूबीटी से जुड़े एक स्थानीय राजनेता पर लगे वोट के बदले नोट के आरोपों के बीच जनता ने 'ठाकरे ब्रांड' को नकार दिया है।
राज ठाकरे बोले- पार्कंग को लेकर सीएम से मिला
हालांकि राज ठाकरे ने उद्धव से अलगाव की ऐसी किसी भी चर्चा को खारिज किया है। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री के साथ बैठक नगर नियोजन के मुद्दों से संबंधित थी। ऐसे विषय जिनमें मेरी हमेशा से रुचि रही है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र भर के शहरों में पुनर्विकास हो रहा है। जनसंख्या के साथ यातायात बढ़ रहा है और बड़ी संख्या में लोग यहां रहने आ रहे हैं। मुंबई में यातायात एक बड़ी समस्या है। लोगों को नियमों नहीं पता, वो कहीं भी वाहन पार्क कर देते हैं और चले जाते हैं। राज ठाकरे ने कहा कि आज मैंने मुख्यमंत्री और मुंबई पुलिस के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की। मैंने एक प्रेजेंटेशन तैयार किया है और उम्मीद है कि राज्य इस मुद्दे को गंभीरता से लेगा और इस पर काम करेगा।
अजित पवार ने की सधी टिप्पणी
उपमुख्यमंत्री अजित पवार बैठक को लेकर खासे सतर्क दिखे। हालांकि उन्होंने कहा कि यह एक शिष्टाचार भेंट थी। यह महाराष्ट्र की परंपरा और संस्कृति का हिस्सा है, जिसमें लोग बड़े नेताओं से मिलते हैं। इसका कोई और मतलब निकालने की ज़रूरत नहीं है। वो बोले कि अब कौन किससे मिले, कौन किससे मिलने जाए, क्या कहूं? बहुत से लोग मिलते रहते हैं। राज्य के मुखिया देवेंद्र जी हैं तो लोग मिलते रहेंगे। सत्ता में हों या न हों, राजनीतिक जीवन में हों या न हों, बहुत से लोग आते-जाते रहते हैं।
हिंदी विरोध के नाम पर साथ आए थे दोनों भाई
नवंबर 2005 में, शिवसेना के संरक्षक और संस्थापक बाल ठाकरे के निधन के कुछ ही समय बाद दोनों भाई-बहन अलग हो गए थे। पुनर्मिलन की चर्चा तब शुरू हुई जब राज्य सरकार ने स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य करने की बात कही। उसके बाद मराठी पहचान को लेकर हिंसक विरोध शुरू हो गया। दोनों के रिश्ते तब और मजबूत हुए जब उद्धव ठाकरे के जन्मदिन के पर ठाकरे परिवार के निवास मातोश्री में राज ठाकरे का स्वागत किया गया।
बीएमसी में हारे तो साथ रहना होगा मुश्किल
हालांकि कहानी अभी भी बाकी है। ठाकरे बंधु साथ रहते हैं तो बीएमसी का चुनाव उनको जीतना ही होगा। जिसे उद्धव सेना अपना गढ़ मानती है उद्धव-राज गठबंधन को उम्मीद है कि वो इनमें भारी जीत हासिल करेंगे और अगले विधानसभा चुनाव से पहले अपनी छाप छोड़ेंगे। त्रिभाषा नीति और हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने के मामले में राज्य सरकार का ढुलमुल रवैया दोनों भाइयों के लिए संजीवनी साबित हुआ है।
हालांकि, भाजपा ने कहा है कि वह ठाकरे बंधुओं से अप्रभावित है। बेस्ट चुनाव में मिली हार ने उसकी इस बात को और पुख्ता कर दिया है कि दोनों चचेरे भाई चुनावी खतरा नहीं हैं। लेकिन माना जा रहा है कि अगर दोनों भाई बीएमसी चुनाव तक साथ रहते हैं और उसे जीत जाते हैं तो सूबे की सियासत कुछ अलग ही रंग में दिखेगी। हारे तो...।
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