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‘RSS की नज़र, शाह की चाल और मोदी की मुहर’ – BJP अध्यक्ष पद पर दिल्ली से लखनऊ तक जंग

भाजपा और RSS में राष्ट्रीय अध्यक्ष और UP प्रदेश अध्यक्ष पर सहमति नहीं बन पा रही। लोकसभा नतीजों के बाद संगठन मजबूत करने की चुनौती। कई नामों पर मंथन जारी, जल्द हो सकता है खुलासा। जानें कौन बन सकता है पार्टी का अगला चेहरा और UP की कमान कौन संभालेगा।

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Ajit Kumar Pandey
‘RSS की नज़र, शाह की चाल और मोदी की मुहर’ – BJP अध्यक्ष पद पर दिल्ली से लखनऊ तक जंग | यंग भारत न्यूज

‘RSS की नज़र, शाह की चाल और मोदी की मुहर’ – BJP अध्यक्ष पद पर दिल्ली से लखनऊ तक जंग | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । सत्ता के गलियारों से लेकर आम जनता के बीच इस समय सबसे बड़ी चर्चा का विषय भारतीय जनता पार्टी के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष के नामों का चयन है। सूत्रों के हवाले से आ रही खबरें बताती हैं कि भाजपा और उसके वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच इन महत्वपूर्ण पदों पर सहमति नहीं बन पा रही है, जिससे असमंजस की स्थिति बनी हुई है।

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भाजपा में इस समय संगठन को लेकर गहन मंथन चल रहा है। लोकसभा चुनाव 2024 में अपेक्षित परिणाम न आने के बाद, पार्टी अब अपनी संगठनात्मक ताकत को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद बेहद अहम हो जाता है। मौजूदा अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने वाला है, और नए चेहरे की तलाश जारी है। लेकिन यह तलाश आसान नहीं दिख रही है।

सूत्रों का कहना है कि आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच कुछ नामों पर सहमति नहीं बन पा रही है। आरएसएस जहां एक ऐसे अध्यक्ष को देखना चाहता है जो संगठन को और अधिक मजबूत कर सके और कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार कर सके, वहीं भाजपा का शीर्ष नेतृत्व एक ऐसे नाम पर विचार कर रहा है जो राजनीतिक रूप से भी मजबूत हो और आगामी चुनावों में पार्टी को नई दिशा दे सके। इस खींचतान में कई नाम सामने आ रहे हैं, लेकिन कोई भी नाम सर्वसम्मति से स्वीकार्य नहीं हो पा रहा है।

संभावित उम्मीदवारों की सूची में कौन-कौन?

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जेपी नड्डा: मौजूदा अध्यक्ष, जिनके कार्यकाल विस्तार की संभावनाओं पर भी विचार किया जा रहा है, हालांकि इसकी पुष्टि अभी नहीं हुई है।

धर्मेंद्र प्रधान: अनुभवी नेता और केंद्र सरकार में मंत्री। संगठनात्मक क्षमता के लिए जाने जाते हैं।

मनसुख मंडाविया: युवा और ऊर्जावान नेता, जिन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय में अच्छा काम किया है।

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अनुराग ठाकुर: हिमाचल प्रदेश के युवा नेता, जो अपनी वाकपटुता और संगठन क्षमता के लिए जाने जाते हैं।

यह तो बस कुछ नाम हैं, पर्दे के पीछे और भी कई नामों पर विचार चल रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अंततः कौन इस महत्वपूर्ण कुर्सी पर बैठेगा।

उत्तर प्रदेश: देश के सबसे बड़े राज्य की अहम चुनौती

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राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन के साथ-साथ भाजपा के लिए देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के अगले प्रदेश अध्यक्ष का नाम तय करना भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। उत्तर प्रदेश राजनीतिक रूप से भाजपा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। यहां की 80 लोकसभा सीटें और आगामी विधानसभा चुनाव 2027 को देखते हुए प्रदेश अध्यक्ष का चयन रणनीतिक रूप से बहुत अहम हो जाता है।

उत्तर प्रदेश में भी आरएसएस और भाजपा के बीच प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। लोकसभा चुनाव में यूपी में सीटों का नुकसान भाजपा के लिए चिंता का विषय है। ऐसे में एक ऐसे अध्यक्ष की तलाश है जो कार्यकर्ताओं को एकजुट कर सके, जमीन पर पार्टी को मजबूत कर सके और आगामी चुनौतियों का सामना कर सके। कई क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को भी ध्यान में रखा जा रहा है।

संभावित उम्मीदवारों पर एक नजर

केशव प्रसाद मौर्य: उपमुख्यमंत्री, जो पहले भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और ओबीसी वर्ग में मजबूत पकड़ रखते हैं।

स्वतंत्र देव सिंह: पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, जिनके पास संगठनात्मक अनुभव है।

बृजेश पाठक: उपमुख्यमंत्री, जो ब्राह्मण चेहरे के तौर पर देखे जाते हैं।

अन्य क्षेत्रीय चेहरे: कुछ ऐसे नामों पर भी विचार चल रहा है जो अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं और जातीय समीकरणों को साध सकते हैं।

प्रदेश अध्यक्ष का चयन उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा की भविष्य की दिशा तय करेगा। यह देखना होगा कि पार्टी एक अनुभवी चेहरे पर दांव लगाती है या किसी नए और युवा नेता को मौका देती है।

भाजपा और आरएसएस के बीच जारी यह मंथन बताता है कि दोनों ही संगठन भविष्य की चुनौतियों को लेकर गंभीर हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों ने कहीं न कहीं आत्ममंथन का अवसर दिया है। अब पार्टी और संघ मिलकर ऐसे चेहरों की तलाश में हैं जो न केवल संगठन को मजबूत करें, बल्कि जनता के बीच पार्टी की छवि को भी बेहतर बना सकें।

यह प्रक्रिया जितनी देर चलेगी, राजनीतिक गलियारों में उतनी ही अटकलें तेज होंगी। भाजपा हमेशा से अपने आंतरिक निर्णयों को गोपनीय रखने के लिए जानी जाती है, लेकिन इस बार राष्ट्रीय और प्रांतीय दोनों स्तरों पर नेतृत्व के चयन में हो रही देरी कई सवाल खड़े कर रही है।

संभावना है कि आने वाले कुछ हफ्तों में इन महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों की घोषणा हो सकती है। यह घोषणा न केवल भाजपा के भविष्य की दिशा तय करेगी, बल्कि भारतीय राजनीति पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। सभी की निगाहें अब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और आरएसएस पर टिकी हैं कि वे कब इस असमंजस को समाप्त कर नए चेहरों की घोषणा करते हैं।

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