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कांग्रेस का गंभीर आरोप: बीजेपी के दबाव में काम कर रहा चुनाव आयोग, क्या है पूरा मामला? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बिहार में 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जाने के गंभीर आरोपों ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने इसे चुनाव आयोग और बीजेपी सरकार की मिलीभगत बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि इन 65 लाख नामों में से ज्यादातर अल्पसंख्यक, पिछड़े और दलित समुदायों के हैं। राहुल गांधी के बयान का हवाला देते हुए प्रमोद तिवारी ने कहा कि ये सब बीजेपी के इशारे पर हो रहा है, ताकि चुनावों में धांधली की जा सके। यह मुद्दा अब राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बन गया है।
बिहार की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने राज्य की मतदाता सूची से 65 लाख से ज्यादा नामों को हटाने का सनसनीखेज दावा किया है। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने इस आरोप को हवा देते हुए कहा है कि यह एक सोची-समझी साजिश है। उनका कहना है कि जिन इलाकों से ये नाम हटाए गए हैं, वहां अल्पसंख्यक और पिछड़े समुदाय के लोग ज्यादा रहते हैं। तिवारी ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताते हुए कहा कि चुनाव आयोग बीजेपी सरकार के दबाव में काम कर रहा है।
यह आरोप इसलिए भी गंभीर हो जाता है क्योंकि राहुल गांधी ने भी हाल ही में इसी तरह के सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि वोटर लिस्ट में बदलाव करके भाजपा चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है। अब प्रमोद तिवारी ने 65 लाख के चौंकाने वाले आंकड़े देकर इस मुद्दे को और भी बड़ा बना दिया है।
#WATCH | दिल्ली: कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने बिहार में जारी SIR के मुद्दे पर कहा, "अगर बिहार में 65 लाख नाम, वो भी उन जिलों और क्षेत्रों में जहां अल्पसंख्यक समुदाय, पिछड़े वर्ग और दलिस समुदाय के लोग ज्यादा हैं, (मतदाता सूची से) हटाए गए हैं तो यह बहुत चौंकाने वाला आंकड़ा है...… pic.twitter.com/hqwQ1zBg7j
— ANI_HindiNews (@AHindinews) August 2, 2025
क्या है इस बड़े आरोप के पीछे का आधार?
कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी का कहना है कि उनके पास इस बात के सबूत हैं कि बिहार में वोटर लिस्ट से 65 लाख नाम हटाए गए हैं। हालांकि, उन्होंने अभी तक सार्वजनिक रूप से कोई ठोस दस्तावेज पेश नहीं किए हैं। लेकिन उनका दावा है कि इन नामों को हटाने का पैटर्न कुछ खास समुदायों को निशाना बनाता है। उन्होंने विशेष रूप से अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्ग और दलितों का नाम लिया है।
प्रमोद तिवारी का दावा है कि 65 लाख लोगों का मतलब है कि एक बड़ी आबादी को उनके वोट देने के अधिकार से वंचित किया गया है। यह लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है। अगर किसी भी समुदाय के वोटर्स को जानबूझकर वोटर लिस्ट से हटाया जाता है, तो यह चुनाव प्रक्रिया पर सीधा सवाल खड़ा करता है। चुनाव आयोग की भूमिका भी इस मामले में संदेह के घेरे में आ गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग इस आरोप पर क्या प्रतिक्रिया देता है।
कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह इस मुद्दे को लोकसभा और राज्यसभा में भी उठाएगी। उनकी मांग है कि इस मामले की तुरंत जांच की जाए और जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, उन्हें वापस जोड़ा जाए। यह मुद्दा सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर पूरे देश की राजनीति पर दिख सकता है।
कांग्रेस के इस आरोप के बाद बिहार में सियासी घमासान तेज हो गया है। सत्ताधारी दल इन आरोपों को सिरे से खारिज कर रहे हैं और कांग्रेस पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस इसे लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई बता रही है।
चुनाव आयोग को इस मामले पर जल्द से जल्द अपनी स्थिति साफ करनी होगी ताकि मतदाताओं का विश्वास बना रहे। यह देखना होगा कि इस गंभीर आरोप के बाद क्या कोई बड़ी जांच शुरू होती है या यह मुद्दा भी सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप बनकर रह जाएगा।
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