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'वंशवाद' पर वार : कांग्रेस में भूचाल, क्या खत्म होगा गांधी परिवार का 'करिश्मा'? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । कांग्रेस नेता शशि थरूर के एक हालिया लेख ने भारतीय राजनीति के सबसे संवेदनशील विषय 'वंशवाद' को फिर से गरमा दिया है। थरूर ने न केवल कांग्रेस बल्कि लगभग सभी दलों में इस प्रवृत्ति की मौजूदगी स्वीकार की, जिसने पार्टी के भीतर एक जोरदार बहस छेड़ दी है। प्रमोद तिवारी जैसे वरिष्ठ नेताओं ने तुरंत पलटवार करते हुए गांधी परिवार के 'बलिदान' और 'योग्यता' का हवाला दिया है, जबकि बीजेपी ने इस मौके को राहुल गांधी पर तंज कसने के लिए लपक लिया है। यह विवाद सवाल खड़ा करता है क्या वाकई अब योग्यता वंश से बड़ी हो जाएगी?
भारत के राजनीतिक परिदृश्य का यह वह कड़वा सच है जिस पर हर पार्टी पर्देदारी करने की कोशिश करती है। लेकिन इस बार, यह 'आग' लगाई है कांग्रेस के ही प्रखर वक्ता शशि थरूर ने। उन्होंने अपने लेख में साफ तौर पर कहा कि वंशवाद सिर्फ कांग्रेस की समस्या नहीं, बल्कि लगभग हर राजनीतिक दल में घर कर चुका है। थरूर की यह सीधी टिप्पणी कांग्रेस के उन स्तंभों को हिलाने वाली थी, जो दशकों से नेहरू-गांधी परिवार के नेतृत्व पर टिके हुए हैं।
उनका इशारा स्पष्ट था जब शक्ति का निर्धारण 'वंश' के आधार पर होता है, न कि 'योग्यता' या 'प्रतिबद्धता' से, तो इससे शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। यह समझना जरूरी है कि थरूर की बात 'वंश' के प्रभाव को नकारती नहीं है, बल्कि उस सोच पर सवाल खड़ा करती है कि 'नेतृत्व जन्मसिद्ध अधिकार' हो सकता है। यह बयान ऐसे समय आया है जब कांग्रेस पहले से ही चुनावी चुनौतियों से जूझ रही है, और यही वजह है कि इसने तुरंत पार्टी के भीतर भूचाल ला दिया।
गांधी परिवार का 'बलिदान' कार्ड प्रमोद तिवारी का तीखा पलटवार
शशि थरूर का लेख सामने आते ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, जो गांधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं, तुरंत बचाव की मुद्रा में आ गए। सबसे दमदार प्रतिक्रिया आई प्रमोद तिवारी की ओर से। उन्होंने नेहरू-गांधी परिवार के योगदान को 'बलिदान' से जोड़कर वंशवाद के आरोपों को ख़ारिज करने की कोशिश की। प्रमोद तिवारी ने भावनात्मक कार्ड खेलते हुए कहा, "पंडित जवाहरलाल नेहरू इस देश के सबसे योग्य प्रधानमंत्री थे। इंदिरा गांधी ने अपनी जान देकर इसे साबित किया। राजीव गांधी ने भी देश की सेवा करते हुए बलिदान दिया।"
उनका सवाल सीधे थरूर और आलोचकों पर था "अगर कोई गांधी परिवार को ‘डायनेस्टी’ कहता है, तो बताइए, किस दूसरे परिवार ने ऐसा त्याग और समर्पण दिखाया? क्या बीजेपी ने?"
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने 'लोकतंत्र में जनता के फैसले' पर जोर दिया। अल्वी ने कहा, "लोकतंत्र में फैसला जनता करती है। आप यह नहीं कह सकते कि किसी को सिर्फ इसलिए चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं कि उसके पिता सांसद थे।" उनका कहना था कि जब हर क्षेत्र में यह होता है, तो राजनीति कोई अपवाद नहीं।
कांग्रेस नेता उदित राज ने 'सामाजिक हकीकत' को सामाजिक सच्चाई से जोड़ा। उदित राज ने आगे कहा कि वंशवाद केवल राजनीति तक सीमित नहीं है। एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, व्यापारी का बेटा व्यापार संभालता है। उनका मानना है कि टिकट वितरण में जाति और पारिवारिक बैकग्राउंड समाज की हकीकत है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।
इन बयानों से यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग मानता है कि राजनीति में परिवार का प्रभाव होना स्वाभाविक है और इसका अंतिम निर्णय जनता के हाथ में होता है।
बीजेपी ने साधा निशाना 'पारिवारिक कारोबार' का तंज
कांग्रेस के अंदरूनी कलह को देखकर बीजेपी भला पीछे क्यों रहती? थरूर का लेख बीजेपी को कांग्रेस पर हमला करने का एक 'गोल्डन चांस' दे गया। बीजेपी प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। उन्होंने थरूर के लेख की सराहना करते हुए कहा कि थरूर ने "बहुत सटीक लिखा है कि भारत की राजनीति अब पारिवारिक कारोबार बन चुकी है।" पूनावाला ने सीधे तौर पर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जैसे विपक्षी नेताओं पर निशाना साधते हुए कांग्रेस की 'वंशवादी राजनीति' की आलोचना की।
बीजेपी का मुख्य एजेंडा यही रहा है कि कांग्रेस एक 'परिवार-आधारित पार्टी' है, जबकि खुद को 'पार्टी-आधारित' संगठन बताती है। थरूर के बयान ने बीजेपी के इस नैरेटिव को और मजबूत करने का काम किया है।
'ऑपरेशन सिंदूर' और बढ़ता तनाव थरूर की राह में कांटे?
इस पूरे घटनाक्रम को केवल एक राजनीतिक बयान तक सीमित करके देखना गलत होगा। यह विवाद थरूर और कांग्रेस नेतृत्व के बीच बढ़ते तनाव की ओर भी इशारा करता है। याद करें, थरूर ने मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था। इस चुनाव के बाद से ही उनके रिश्ते नेतृत्व के साथ सहज नहीं माने जा रहे हैं। तनाव तब और बढ़ गया जब उनका नाम केंद्र सरकार की 'ऑपरेशन सिंदूर' पहल के लिए सुझाए गए कांग्रेस नेताओं की सूची में शामिल नहीं था।
यह घटना दर्शाती है कि पार्टी के भीतर कुछ लोग उनके विचारों और मौजूदगी को लेकर असहज हैं। हालांकि, बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें अमेरिका और लैटिन अमेरिकी देशों के दौरे के लिए प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने का निमंत्रण देना, इस पूरे समीकरण को और दिलचस्प बना देता है।
क्या वंशवाद पर यह बहस कांग्रेस की दशा बदलेगी?
थरूर का यह 'खुलासा' कांग्रेस के लिए एक आईने की तरह है। भले ही पार्टी के वफादार नेता इसे 'बलिदान' या 'लोकतंत्र' का जामा पहना रहे हों, लेकिन यह सच है कि भारतीय मतदाता अब केवल परिवार के नाम पर वोट देने को तैयार नहीं है।
यह विवाद कांग्रेस को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वह वंश की बैसाखी पर ही टिकी रहेगी, या योग्यता को उभारकर एक नई, आधुनिक राजनीतिक पार्टी बनने की ओर बढ़ेगी। जब तक कांग्रेस 'वंशवाद' की इस चुनौती को ईमानदारी से स्वीकार कर हल नहीं करती, तब तक बीजेपी को हमला करने का मौका मिलता रहेगा और शशि थरूर जैसे आवाजों को दबाना मुश्किल होगा। आने वाले चुनावों में जनता का रुख ही यह तय करेगा कि भारत की राजनीति में योग्यता और वंश की लड़ाई में कौन जीतता है।
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