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Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें भारत के चुनाव आयोग को सांसद असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की बेंच ने याचिकाकर्ता को राजनीतिक दलों के सांप्रदायिक बयानों के मुद्दे पर याचिका दायर करने का सुझाव दिया। कोर्ट का कहना था कि मुद्दे को व्यापक करें।
सुप्रीम कोर्ट बोला- व्यापक मुद्दों पर दायर करें याचिका, हम सुनेंगे
जस्टिसेज ने टिप्पणी की कि हम सांप्रदायिक पार्टियों पर विचार नहीं कर रहे हैं। कभी-कभी क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय भावनाओं का हवाला देते हैं तो क्या किया जाना चाहिए। कुछ दल ऐसे भी हैं जो जातिगत मुद्दों का सहारा लेते हैं जो उतना ही खतरनाक है। किसी की आलोचना किए बिना भी ऐसे मुद्दे उठाए जा सकते हैं। कोर्ट की टिप्पणी के बाद याचिकाकर्ता ने बड़े मुद्दों को उठाने की स्वतंत्रता के साथ अपनी याचिका वापस ले ली। यह याचिका शिवसेना की तेलंगाना शाखा के अध्यक्ष तिरुपति मुरारी ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर की थी। हाईकोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें ऐसी ही मांग उनसे भी की गई थी।
जस्टिस बोले- सांप्रदायिक भावनाएं भड़कती दिखें तो हमारे पास आ सकते हैं
जस्टिस सूर्यकांत ने बताया कि संविधान ने अल्पसंख्यकों को कुछ अधिकार दिए हैं। अदालत ने यह भी कहा कि AIMIM के संविधान में कहा गया है कि वह भारत के संविधान से मिले अधिकारों के लिए काम करेगी। उन्होंने कहा कि अगर आप पढ़ें तो मुसलमानों सहित सभी ओबीसी इसका हिस्सा हैं। संविधान में भी यही प्रावधान है। अल्पसंख्यकों को कुछ अधिकारों की गारंटी दी गई है। इसलिए पार्टियों के घोषणापत्र में कहा गया है कि वो संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के लिए काम करेंगी। अगर चुनाव आयोग वेद, पुराण पढ़ाना बंद कर देता है तो अदालत का दरवाजा खटखटाएं और उचित कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को कोई राजनीतिक व्यक्ति सांप्रदायिक भावनाएं भड़काता हुआ दिखाई दे तो वह कोर्ट में आवेदन कर सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि उनके पास भेजा जा रहा मसला केवल उन्हीं मामलों पर लागू होता है जहां सांप्रदायिक भावनाएँ भड़काई जा रही हों।
याचिका में तर्क- केवल मुस्लिमों के लिए बनी है AIMIM
तिरुपति मुरारी ने हाईकोर्ट के सामने तर्क दिया था कि AIMIM जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए में निर्धारित शर्तों को पूरा नहीं करती है, क्योंकि एआईएमआईएम का गठन केवल मुसलमानों के हितों को आगे बढ़ाने के लिए किया गया है। यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के पूरी तरह से खिलाफ है। हालांकि, 2024 में हाईकोर्ट के जज ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता की तरफ से मांगी गई राहत चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसी साल जनवरी में एक डबल बेंच ने इस फैसले को बरकरार रखा। फिर टाप कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई। मुरारी की ओर से शीर्ष अदालत में पेश होते हुए एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने आज दलील दी कि कोई भी राजनीतिक दल धर्म के नाम पर वोट नहीं मांग सकता।
एडवोकेट जैन बोले- धर्म के आधार पर नहीं मांग सकते वोट
जैन ने कहा कि यह माना जा चुका है कि धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगे जा सकते। यह धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत के विरुद्ध है। सत्ता में आने वाली कोई भी राजनीतिक पार्टी ऐसा नहीं कर सकती। यह बोम्मई फैसले के विरुद्ध है। अगर आज मैं चुनाव आयोग के पास जाकर कहूं कि पार्टी उपनिषदों और वेदों के लिए काम करेगी तो इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी। जैन ने एक फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार धर्म के नाम पर वोट नहीं माँग सकता। उन्होंने कहा कि AIMIM का नाम ही धर्म आधारित है।
Supreme Court, AIMIM, Owaisi, Advocate Vishnu Shankar Jain, ban on AIMIM