/young-bharat-news/media/media_files/2025/08/07/shashi-tharoor-congress-2025-08-07-16-55-05.jpg)
'किसी के दबाव में नहीं आएगा India' : शशि थरूर के इस बयान की क्यों हो रही है चर्चा? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः केरल के सांसद शशि थरूर अपने आप में खास हैं। इंटरनेट पर तो वो अक्सर छाए रहते हैं। हाल ही में उन्होंने हिंदी में पोस्ट की तो सोशल मीडिया गुलजार हो गया। अब जनमाष्टमी पर थरूर ने कुछ ऐसा किया जो लोगों को जमकर भा रहा है। थरूर ने नेताओं को महाभारत से सीख लेने की सलाह दी है।
थरूर ने लिखा- इस वर्ष जन्माष्टमी हमारे 78वें स्वतंत्रता दिवस के ठीक बाद आ रही है, इसलिए मैं यह पूछना चाहता हूँ कि भारतीय राजनीति और राजनेता भगवान श्री कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं से क्या सीख ले सकते हैं। मैं कुछ उदाहरण दे सकता हूं। ये शिक्षाएं नेतृत्व, शासन, नैतिकता जैसे पहलुओं की तरफ इशारा करती हैं।
1. धर्म सर्वोपरि:
सबक: कृष्ण का जीवन धर्म की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष का प्रतीक है। वो बार-बार ऐसे काम करते हैं जो अपरंपरागत या नैतिक रूप से अस्पष्ट लग सकते हैं, लेकिन उनका अंतिम लक्ष्य हमेशा धर्म की पुनर्स्थापना और दुष्टों का संहार होता है।
राजनीति में: राजनेताओं को व्यक्तिगत लाभ, पार्टी निष्ठा या चुनावी जीत से ज्यादा देश और उसकी जनता की भलाई को प्राथमिकता देनी चाहिए। फैसले न्याय के प्रति प्रतिबद्धता से निर्देशित होने चाहिए, भले ही वह कठिन या अलोकप्रिय हो।
2. कूटनीति और रणनीतिक सोच की कला:
सबक: कृष्ण एक कुशल रणनीतिकार और कूटनीतिज्ञ थे। उन्होंने शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से महाभारत युद्ध को रोकने का प्रयास किया, लेकिन जब कूटनीति विफल हो गई तो उन्होंने शानदार सैन्य रणनीति से पांडवों का मार्गदर्शन किया। युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन और अन्य लोगों को दी गई उनकी सलाह हमेशा उनकी व्यक्तिगत शक्तियों और कमजोरियों के अनुरूप होती थी।
राजनीति में: राजनेता शासन में रणनीतिक सोच के महत्व को समझ सकते हैं। इसमें अन्य दलों, राज्यों और राष्ट्रों के साथ कुशल बातचीत के साथ-साथ देश के विकास के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनाना भी शामिल है। इसमें अपनी टीम और विपक्ष की ताकत और कमजोरियों को समझना भी शामिल है।
3. सशक्त नेतृत्व का महत्व (सारथी की भूमिका)
:सबक: कृष्ण युद्ध में सीधे नहीं लड़े, बल्कि अर्जुन के सारथी के रूप में कार्य किया। यह भूमिका एक ऐसे नेता का प्रतीक थी जो पृष्ठभूमि से मार्गदर्शन करता है। बिना किसी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की चाह के ज्ञान, दिशा और समर्थन प्रदान करता है। वह अर्जुन के लिए रणनीतिकार, मार्गदर्शक और भावनात्मक सहारा था।
राजनीति में: एक सच्चा नेता अपनी टीम के सदस्यों को सशक्त बनाकर उन्हें सफलता की ओर ले जाता है। उन्हें हर समय सुर्खियों में रहने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय, उन्हें स्थिरहोना चाहिए जो नाव को चलाए, मार्गदर्शन प्रदान करे और टीम की दिशा की जिम्मेदारी ले। अगर वे सफल होते हैं, तो उनके अनुयायियों को यह महसूस होना चाहिए कि जीत उनकी है - अकेले नेता की नहीं।
4. निष्काम कर्म का दर्शन:
सबक: भगवद्गीता का मुख्य उपदेश निष्काम कर्म है। परिणामों की आसक्ति के बिना अपना कर्तव्य निभाना। कृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि ध्यान कर्म पर ही होना चाहिए, न कि उस कर्म के फल (सफलता, असफलता, प्रशंसा, आलोचना) पर।
राजनीति में: राजनेताओं को सत्ता, प्रसिद्धि या धन की लालसा से प्रेरित हुए बिना लोगों के कल्याण के लिए काम करना चाहिए। उनकी प्रेरणा कर्तव्य और सेवा की भावना होनी चाहिए, न कि मिलने वाले पुरस्कार या राजनीतिक लाभ। इससे जनहित के लिए निर्णय लेने में मदद मिलती है। दुर्भाग्य से, बहुत से राजनेता निजी लाभ से प्रेरित होते हैं। श्रीकृष्ण ऐसा नहीं मानते।
5. मानव स्वभाव की समझ
:सबक: कृष्ण को मानव मनोविज्ञान और तीन गुणों - सत्व, रज और तम की गहरी समझ थी। उन्होंने इस ज्ञान का उपयोग धर्मात्मा युधिष्ठिर से लेकर अहंकारी दुर्योधन के साथ संवाद करने के लिए किया।
राजनीति में: एक अच्छे नेता को मानव स्वभाव का गहन पर्यवेक्षक होना चाहिए। इससे एक विविध और प्रभावी टीम बनाने, मतदाताओं की प्रेरणाओं को समझने और विरोधियों से निपटने में मदद मिलती है। यह सामाजिक समस्याओं के मूल कारणों की पहचान करने और उनका समाधान करने में भी मदद करता है। एक अच्छे पर्यवेक्षक को एक अच्छा श्रोता भी होना चाहिए। हमारे बहुत कम राजनेता ऐसे हैं!
6. विश्व कल्याण की अवधारणा:
शिक्षा: कृष्ण के कार्य, चाहे वे वृंदावन में एक ग्वाले के रूप में हों या द्वारका में एक राजा के रूप में, हमेशा समाज के कल्याण के लिए थे। भगवद्गीता में उनकी शिक्षाएं सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने और लोगों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए एक नेता के कर्तव्य पर जोर देती हैं।
राजनीति में: एक राजनेता का प्राथमिक कर्तव्य समाज के सभी वर्गों के कल्याण के लिए कार्य करना है, न कि केवल अपने समर्थकों के लिए। इसमें एक न्यायसंगत और समतामूलक समाज का निर्माण शामिल है जहां सभी को फलने-फूलने का अवसर मिले। दूसरे शब्दों में, सामाजिक न्याय राजनीति का एक अनिवार्य लक्ष्य है।
7. अहंकार और अधर्म के खतरे:
सबक: कृष्ण का जीवन चरित्र उन लोगों के पतन की चेतावनी देता है जो अहंकारी हैं। दुर्योधन और उसके सहयोगी अधर्म का मार्ग चुनते हैं। उनका अहंकार और धर्म के प्रति अनादर अंततः उनके विनाश का कारण बना।
राजनीति में: राजनेताओं को विनम्र और संयमित होना चाहिए। अहंकार, सत्ता का दुरुपयोग और कानून के शासन के प्रति अनादर अनिवार्य रूप से एक नेता के राजनीतिक और नैतिक दोनों रूप से पतन का कारण बनते हैं।
आखिर में थरूर ने लिखा- इस जन्माष्टमी पर आइए हम अपनी राजनीति में कृष्ण के ज्ञान को आत्मसात करें। अपने तुच्छ और स्वार्थी हितों पर विजय पाने का प्रयास करें। रणनीतिक रूप से सोचना सीखें। अपने सहयोगियों और पार्टी कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाएं। अपने कार्यों के लाभों पर कम और सही काम करने पर ज़्यादा ध्यान दें। सुनना सीखें, सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दें और सेवा को अपने अधिकारों से ऊपर रखें। हम सभी श्रीकृष्ण नहीं बन सकते, लेकिन हम उनका अनुकरण करना सीख सकते हैं।
shashi tharoor, lord krishna, indian politician