लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता।
बात 2017 की। राज्य सभा में बसपा सुप्रीमो मायावती यूपी के सहारनपुर में दलित विरोधी हिंसा को लेकर अपनी बात राज्य सभा में रख रही थी। इसी बीच उनको अपनी बात जल्द खत्म करने को कहा गया। जिससे मायावती नाराज़ हो गयीं और अपना इस्तीफा दे दिया। अब बात 2025 की। 3 फरवरी को फैज़ाबाद से सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने रोते हुये दलित युवती के रेप के मामले पर इस्तीफा देने की बात कही तो अगले ही दिन यानी 4 फरवरी को सपा प्रमुख अखिलेश यादव नें लोक सभा मे कुंभ में हुई मौतों के मामले पर इस्तीफा देनें की बात कह दी।
इस्तीफे की सियासत के मायनें क्या
मायावती नें यूं ही नही 2017 मे इस्तीफा दिया था। दरअसल मायावती को दलित वोट बैंक की फिक्र थी। पहले विधान सभा मे करारी शिकस्त और फिर राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए और यूपीए का दलित कार्ड। मायावती को समझ आनें लगा कि भाजपा की नज़र दलित वोट बैंक पर है। एनडीए ने जहां रामनाथ कोविंद मैदान पर दांव लगाया था तो यूपीए की तरफ से मीरा कुमार मैदान में थी। मायावती ने इस कदम को दलित वोट बैंक में सेंधमारी माना। सनद रहे कि 2017 के विधान सभा चुनाव में बसपा को महज़ 19 सीटें मिली थी और भाजपा को 325 सीटें। माना गया कि भाजपा मायावती के दलित वोट बैंक मे ज़बरदस्त सेंधमारी करने में कामयाब रहीं थी। दलित वोट बैंक और ना दरके इसके लिये मायावती नें राज्य सभा से इस्तीफा दे दिया और वो भी दलितों के ही मुद्दों पर।
सपा सांसद अवधेश प्रसाद का कहना कि अगर दलित बेटी को इंसाफ नही मिला तो वो इस्तीफा दे देंगे, मायावती की याद दिलाती है। दरअसल मिल्कीपुर मे चुनाव है और वहां पर दलित वोट अहम भी है। तो मिल्कीपुर का चुनाव सपा-भाजपा के लिये प्रतीष्ठा का सवाल है तो अवधेश के बेटा अजीत प्रसाद चुनाव लड रहे हैं. ऐसे में अवधेश की इस्तीफा दे दूंगा का स्टैण्ड चुनाव मे कितना कारगर होगा ये तो चुनाव के नतीजे ही बतायेंगे। और अगले ही दिन सपा सांसद अखिलेश यादव नें लोकसभा मे कुंभ मे हुयी मौतों के मामले मे इस्तीफा देनें की बात कह दी। दरअसल अखिलेश को मालूम है कि कुंभ मे अव्यवस्था के बाद हुयी मौतों पर वो जितनें आक्रमक होंगे 2027 में उतनी ही फायदा मिलेगा।
इस्तीफे की राजनीति कितनी कारगर
सूबे की सियासत पर बारीक निगाह रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार गोविन्द पंत राजू इस्तीफे की पेशकश को महज़ सियासी स्टंट बताते है। मायावती नें 2017 मे इसको आज़माया था लेकिन उसका उनको कितना नफा नुक्सान हुआ वो सबके सामनें हैं. उनका कहना है कि अवधेश प्रसाद पहले से ही इसमें माहिर हैं। जब मुलायम सिंह यादव नें उनका टिकट काटा तो वो सपा कार्यालय मे ही रोए थे लेकिन टिकट फिर भी उनको नही मिल पाया था। जहां तक अखिलेश की बात है तो वो सीधा हमला सीएम योगी पर ही है. अब वो इसमें कितनें कामयाब हो पाएंगे ये तो आना वाला वक्त ही बतायेगा।
इस्तीफे के ज़रिये दबाव की राजनीति
वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्रा इस्तीफे की राजनीति को प्रतीकात्मक की संज्ञा देते हैं। वो कहते है कि अगर इसके ज़रिये विपक्ष भाजपा पर दबाव बनाना चाहती हैं तो ये उनकी खुशफहमी है। इसका फायदा उनको तुरंत मिलता नही दिखा रहा और भविष्य की बात करें तो फिर इन पेशकशों को आम जनता कितना याद रख पायेगी, समझना बहुत मुश्किल नही है।