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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सालों की तल्खी के बाद उद्धव ठाकरे ने जब अपने कजिन राज ठाकरे से हाथ मिलाया तो लगा कि महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा चमत्कार हो सकता है। लेकिन पहले ही लिटमस टेस्ट में ये जोड़ी 0 पर आउट हो गई। Best चुनाव में उद्धव-राज के गठजोड़ को एक भी सीट नहीं मिल सकी। दोनों के लिए ये झटका है। खास बात है कि जब उद्धव अकेले थे तब उनका इस सहकारी समिति पर एकछत्र राज था। नौ सालों से वो बादशाहत को कायम रखे थे। लेकिन राज से हाथ मिलाते ही वो खुद भी औंधे मुंह गिर पड़े।
बेस्ट में नौ सालों से था उद्धव का राज
उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) समर्थित उत्कर्ष पैनल बेस्ट कर्मचारी सहकारी ऋण समिति के चुनावों में 21 में से एक भी सीट हासिल करने में नाकाम रहा। हाल ही में घोषित परिणामों में शशांक राव के पैनल ने 14 सीटें जीतीं, जबकि महायुति पैनल ने 7 सीटें हासिल कीं। इससे सहकारी समिति पर ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना का नौ साल का प्रभुत्व समाप्त हो गया। उद्धव-राज के लिए बेस्ट चुनाव एक अग्निपरीक्षा था। दोनों चाहते थे कि जीत हासिल करके वो अपनी ताकत को दिखाएं।
चुनाव पर कड़ी नजर रख रहे थे राजनेता
ठाकरे बंधुओं के बीच गठबंधन के कारण इन चुनावों पर कड़ी नज़र रखी जा रही थी। इसमें कोई दोराय नहीं कि इससे उनके गठजोड़ को झटका लगा। शशांक राव का पैनल एक प्रमुख ताकत के रूप में उभरा, जबकि भाजपा और उसके सहयोगियों वाले महायुति गठबंधन को बढ़त मिली। कुल मिलाकर दोनों भाईयों के लिए ये अच्छा शगुन नहीं है।
मुंबई के एक प्रमुख ट्रेड यूनियन नेता शशांक राव बृहन्मुंबई विद्युत आपूर्ति और परिवहन (बेस्ट) के अहम नेता माने जाते हैं। वरिष्ठ यूनियन नेता शरद राव के बेटे शशांक ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया है। वो बेस्ट कर्मचारियों, ऑटो-रिक्शा चालकों और अन्य श्रमिक समूहों के अधिकारों की वकालत करते रहे हैं। अपनी जुझारू छवि के कारण वो खासे लोकप्रिय हैं। उनके पिता शरद राव भी अहम नेता रहे हैं।
अब बीएमसी चुनाव में हो सकती है मुश्किल
विश्लेषकों का मानना है कि ये चुनाव दोनों भाईयों का उत्साह तोड़ने वाले भी साबित हो सकते हैं। राज ठाकरे की राजनीतिक प्रासंगिकता फिलहाल न के बराबर थी। महाराष्ट्र विधानसभा में मनसे का कोई भी प्रतिनिधी नहीं है। उद्धव की बात की जाए तो वो जब से सीएम की कुर्सी से हटे हैं तब से एक के बाद एक करके कई झटके झेल चुके हैं। पहले पार्टी टूटी। फिर सीएम की कुर्सी गई और उसके बाद संगठन भी चला गया। उद्धव-राज के लिए अस्तित्व को बचाने का सवाल सामने खड़ा है। बेस्ट चुनाव में जिस तरह से उनका सूपड़ा साफ हुआ उससे एक बात तो साफ है कि बीएमसी चुनाव दोनों के लिए मुश्किल साबित होने जा रहे हैं। बेस्ट में अगर जीत जाते तो एक सकारात्मक संदेश वर्कर्स के बीच जाता। लेकिन अब दोनों को बेस संभालने करने में भी पसीने आएंगे।
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