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उपराष्ट्रपति का चुनाव दिखने में जितना सीधा लगता है- उतना है नहीं : जानें राजनीति का 'ट्रिपल गेम'

उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 में बीजेपी के सामने जाट, बिहार और दक्षिण भारत के बीच संतुलन साधने की बड़ी चुनौती है। यह चुनाव सिर्फ एक संवैधानिक पद नहीं, बल्कि 2029 और 2034 के चुनावों की रणनीति का हिस्सा है।

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Ajit Kumar Pandey
उपराष्ट्रपति का चुनाव दिखने में जितना सीधा लगता है, उतना है नहीं : जानें राजनीति का 'ट्रिपल गेम' | यंग भारत न्यूज

उपराष्ट्रपति का चुनाव दिखने में जितना सीधा लगता है, उतना है नहीं : जानें राजनीति का 'ट्रिपल गेम' | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 में बीजेपी के सामने एक पद के लिए कई चुनौतियां हैं। जाति, क्षेत्र और भविष्य की राजनीति का समीकरण बिठाना भारतीय जनता पार्टी के लिए इतना आसान नहीं होगा। जाट, बिहार और दक्षिण भारत के बीच संतुलन साधते हुए क्या बीजेपी एक ऐसा नाम चुनेगी जो न सिर्फ जीत सुनिश्चित करे, बल्कि 2029 और 2034 के चुनावों की भी नींव रखे? इस खास स्टोरी में हम इसी जटिल पहेली को सुलझाने की कोशिश करेंगे।

दरअसल, उपराष्ट्रपति का चुनाव दिखने में जितना सीधा लगता है उतना है नहीं। यह सिर्फ एक संवैधानिक पद नहीं बल्कि राजनीतिक भविष्य की बिसात पर चली गई एक बेहद ही सोची-समझी चाल होती है। भाजपा जो अगले एक दशक की राजनीति की रणनीति बना रही है वह उपराष्ट्रपति पद के लिए एक ऐसे नाम को चुनेगी जो न केवल लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी की पकड़ मजबूत करे बल्कि भविष्य के वोट बैंक को भी साध सके। साल 2025 के इस चुनाव में बीजेपी के सामने तीन प्रमुख समीकरण हैं: पहला जाट समाज को साधना, दूसरा बिहार चुनाव और तीसरा दक्षिण भारत पर पकड़ मजबूत रखना।

जाट फैक्टर यानि हरियाणा और राजस्थान की नब्ज

उत्तर भारत की राजनीति में जाट समुदाय का दबदबा जगजाहिर है। हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में यह समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है। हाल के चुनावों में इन क्षेत्रों में भाजपा को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। ऐसे में किसी जाट नेता को उपराष्ट्रपति बनाकर बीजेपी इन राज्यों में अपनी पकड़ फिर से मजबूत कर सकती है। यह न सिर्फ राजनीतिक संदेश होगा बल्कि जाट समुदाय को यह महसूस कराएगा कि पार्टी उनकी आवाज को महत्व देती है। क्या बीजेपी संजीव बालियान या किसी अन्य जाट चेहरे को आगे करेगी? यह एक बड़ा सवाल है।

बिहार का समीकरण : 2025 विधानसभा और 2029 लोकसभा की तैयारी

बिहार की राजनीति भी उपराष्ट्रपति चुनाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। 2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव हैं और बीजेपी को यहां अपनी स्थिति मजबूत करनी है। इसके अलावा 2029 के लोकसभा चुनाव में भी बिहार में अच्छा प्रदर्शन करना जरूरी है। क्या बीजेपी बिहार से किसी ओबीसी या दलित चेहरे को मौका देगी? यह एक ऐसा दांव होगा जो एक तीर से कई निशाने साध सकता है। बिहार के नेताओं को मौका देकर बीजेपी न सिर्फ राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करेगी बल्कि ओबीसी और दलित वोट बैंक में भी पैठ बना सकती है।

दक्षिण भारत की चुनौती : 2029 और 2034 की रणनीति

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भाजपा के लिए दक्षिण भारत में पैठ बनाना हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में अभी भी पार्टी को बहुत काम करना बाकी है। किसी दक्षिण भारतीय नेता को उपराष्ट्रपति बनाकर बीजेपी इन राज्यों में अपनी छवि मजबूत कर सकती है। यह संदेश जाएगा कि पार्टी सिर्फ उत्तर भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश का प्रतिनिधित्व करती है। इससे 2029 और 2034 के चुनावों में पार्टी को दक्षिण भारत में अपनी जड़ें जमाने में मदद मिल सकती है। क्या बीजेपी किसी तमिल या तेलुगु नेता को मौका देगी? यह भी एक दिलचस्प मोड़ होगा।

बीजेपी का फैसला चौंकाने वाला रहेगा?

इन तीनों समीकरणों को साधते हुए एक ही पद के लिए उम्मीदवार चुनना बीजेपी के लिए किसी पहेली से कम नहीं है। क्या पार्टी जाट समुदाय को साधने के लिए संजीव बालियान जैसे किसी नेता पर दांव लगाएगी? या बिहार की राजनीति को ध्यान में रखते हुए किसी ओबीसी या दलित चेहरे को आगे करेगी? या फिर दक्षिण भारत में अपनी पैठ जमाने के लिए किसी क्षेत्रीय नेता को मौका देगी?

भाजपा की रणनीति हमेशा लंबी अवधि की रही है। प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा निश्चित रूप से एक ऐसे नाम पर मुहर लगाएंगे जो न सिर्फ वर्तमान की जरूरतों को पूरा करे बल्कि भविष्य की राजनीति का मार्ग भी प्रशस्त करे। यह चुनाव सिर्फ एक संवैधानिक पद की पूर्ति नहीं है बल्कि भारतीय राजनीति के बदलते समीकरणों का एक महत्वपूर्ण संकेत भी है।

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क्या बीजेपी एक ऐसा 'ट्रिपल गेम' खेलने जा रही है जहां एक नाम तीन बड़े वोट बैंक को साधने का काम करेगा? इसका जवाब तो कुछ ही दिनों में सामने आ जाएगा, लेकिन यह तय है कि यह फैसला 2029 और 2034 के चुनावों पर गहरा असर डालेगा।

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