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महाराष्ट्र: सांसदों पर Cross-Voting के आरोप पर क्यों भड़कीं सुप्रिया सुले? | यंग भारत न्यूज Photograph: (X.com)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । हाल ही में हुए उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के बाद महाराष्ट्र के सांसदों के क्रॉस-वोटिंग करने के आरोपों पर एनसीपी (एसपी) की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि महाराष्ट्र को बदनाम न करें। उपराष्ट्रपति चुनाव में महाराष्ट्र के सांसदों द्वारा क्रॉस-वोटिंग करने के आरोपों ने सियासी गलियारों में एक नई बहस छेड़ दी है।
एनसीपी (शरद पवार गुट) की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने इन आरोपों पर कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ गठबंधन को महाराष्ट्र को बदनाम नहीं करना चाहिए।
यह आरोप-प्रत्यारोप का खेल क्यों शुरू हुआ, और इसमें कितनी सच्चाई है
बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन भारत के 15वें उपराष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने 452 वोट हासिल किए जबकि विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिले। इस चुनाव में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए जब 14 वोटों का विचलन देखा गया। सुप्रिया सुले का कड़ा रुख यहीं से विवाद शुरू हुआ।
कुछ राजनीतिक हलकों में यह दावा किया जाने लगा कि इन 14 वोटों में से कुछ महाराष्ट्र के सांसदों के हो सकते हैं। इस पर सुप्रिया सुले ने पुणे में मीडिया से बात करते हुए अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, 'अगर 14 वोट विभाजित हुए, तो क्या यह महाराष्ट्र ने किया? आप महाराष्ट्र को बदनाम क्यों कर रहे हैं? मराठी लोगों को बदनाम मत करो।'
सुप्रिया सुले का यह बयान स्पष्ट तौर पर यह दिखाता है कि वह इन आरोपों को महाराष्ट्र की अस्मिता से जोड़कर देख रही हैं।
आरोपों की जड़: क्या है असली कहानी?
सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्ष के बीच अक्सर इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप देखने को मिलते रहते हैं। जब भी किसी चुनाव में उम्मीद से अलग नतीजे आते हैं, तो क्रॉस-वोटिंग के आरोप लगने लगते हैं। इस मामले में, 14 वोटों का विचलन कोई छोटा आंकड़ा नहीं है। विपक्ष के 300 वोटों के मुकाबले, 14 वोटों का अंतर काफी बड़ा हो सकता है।
ऐसे में, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि ये वोट कहां से आए। महाराष्ट्र की राजनीति पर प्रभाव सुप्रिया सुले का यह बयान महाराष्ट्र की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है। राज्य में पहले से ही राजनीतिक उठापटक जारी है। ऐसे में, इन आरोपों से राज्य के नेताओं के बीच और भी दरार पैदा हो सकती है।
सुले ने अपनी पार्टी और अपने राज्य की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए यह बयान दिया है। उन्होंने यह साफ कर दिया कि वह महाराष्ट्र पर किसी भी तरह का झूठा आरोप बर्दाश्त नहीं करेंगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन इस पर कैसे प्रतिक्रिया देता है। यह मामला सिर्फ एक बयान तक सीमित नहीं है। यह आने वाले समय में महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा तय कर सकता है।
सुले का यह बयान विपक्ष की एकजुटता को और मजबूत कर सकता है और सत्तारूढ़ दल को अपने आरोपों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर सकता है। महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा की रक्षा करना अब एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बन गया है।
यह देखना होगा कि यह विवाद आगे चलकर क्या मोड़ लेता है। उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद महाराष्ट्र पर लगे क्रॉस-वोटिंग के आरोपों पर सुप्रिया सुले का कड़ा बयान न केवल एक राजनीतिक प्रतिक्रिया है, बल्कि महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा की रक्षा का एक प्रयास भी है। यह मामला दिखाता है कि राजनीति में छोटे-छोटे मुद्दे भी बड़े विवाद का कारण बन सकते हैं।
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