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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह पहले फिल्म 'अजय: द अनटोल्ड स्टोरी' देखेगा। फिर उसके बाद ही फिल्म के निर्माताओं की केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला लेगा। 'द मॉन्क हू बिकेम चीफ मिनिस्टर' पुस्तक से प्रेरित यह फिल्म उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर आधारित बताई जा रही है।
योगी पर बनी फिल्म को लेकर है विवाद
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और नीला गोखले की बेंच ने गुरुवार को फिल्म निर्माताओं को फिल्म की उस एक कापी को जमा करने का निर्देश दिया, जिसमें सीबीएफसी की तरफ से दर्ज आपत्तियां हों। जिस पुस्तक पर यह फिल्म आधारित है, उसकी एक प्रति पहले ही कोर्ट को सौंप दी गई है। 7 अगस्त के अपने पूर्व आदेश में अदालत ने सीबीएफसी को निर्देश दिया था कि वह फिल्म देखें और 11 अगस्त तक फिल्म निर्माताओं के साथ अपनी आपत्तियां साझा करें। जिससे वो बदलाव पर विचार कर सकें।
सीबीएफसी की जांच समिति ने 11 अगस्त को 29 आपत्तियां लिस्ट कीं। हालांकि, जब फिल्म निर्माता 12 अगस्त तक कोई जवाब नहीं दे पाए या कोई बदलाव प्रस्तावित नहीं किया तो सीबीएफसी की संशोधन समिति ने फिल्म पर नजर डाली। समिति ने पहले की 8 आपत्तियों को खारिज कर दिया, लेकिन 17 अगस्त को प्रमाणन को अस्वीकार कर दिया। सोमवार 18 अगस्त को फिल्म निर्माताओं ने समिति के अस्वीकृति आदेश को चुनौती देने के लिए अपनी याचिका में संशोधन करने की अनुमति मांगी। इसके बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई आज के लिए निर्धारित कर दी। कोर्ट देख रही थी कि याचिका स्वीकार्य है या नहीं, क्योंकि सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत अपील की व्यवस्था उपलब्ध है।
सीबीएफसी कह रही- योगी से लेकर आओ अनापत्ति प्रमाणपत्र
सीबीएफसी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभय खांडेपारकर ने आज न्यायालय को बताया कि बोर्ड ने पूरी प्रक्रिया में न्याय के सिद्धांतों का पालन किया है। फिल्म निर्माताओं के पास अभी भी सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत उच्च न्यायालय में अपील करने का विकल्प मौजूद हैं। हालांकि, फिल्म निर्माताओं ने तर्क दिया कि यह याचिका इस न्यायालय के समक्ष विचारणीय है। अधिवक्ता रवि कदम ने दलील दी कि सीबीएफसी संशोधन समिति की अस्वीकृति न केवल फिल्म निर्माताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, बल्कि योगी आदित्यनाथ से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने का निर्देश देकर सीबीएफसी ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर भी काम किया है। कदम ने तर्क दिया- वो किसी निजी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के संरक्षक नहीं हैं।
सारे मामले को सुनने के बाद बेंच ने टिप्पणी की- आपको यह शुरुआत में ही कर देना चाहिए था। आपने न्याय के सिद्धांतों का पालन कब किया? यह एक ऐसा तरीका है जो आपको हर फिल्म के लिए अपनाना चाहिए था। आप ऐसा करने में विफल रहे हैं। मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को निर्धारित की गई है।
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