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President,s 14 questions: सरकार चाह रही थी फैसला बदलवाना, सीजेआई ने कर दिया इन्कार

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक मिसाल का हवाला देते हुए तर्क दिया कि अदालत सलाहकार क्षेत्राधिकार में भी किसी निर्णय को रद्द कर सकती है। सीजेआई ने कहा कि हम वो फैसला बदलने नहीं जा रहे।

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Shailendra Gautam
हरियाणा-गोवा-लद्दाख में नए राज्यपाल! राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का बड़ा फैसला | यंग भारत न्यूज

हरियाणा-गोवा-लद्दाख में नए राज्यपाल! राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का बड़ा फैसला | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए राष्ट्रपति के 14 सवालों को लेकर संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही है। सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने इस दौरान कहा कि द्रोपदी मुर्मु ने जो 14 सवाल सुप्रीम कोर्ट से पूछे थे उनमें कुछ भी गलत नहीं था। लेकिन उनका ये भी कहना था कि हम अपना फैसला किसी सूरत में नहीं बदलेंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत ये सवाल सुप्रीम कोर्ट से पूछे थे। उनके सारे सवाल उस फैसले के संबंध में थे जिसमें शीर्ष अदालत ने विधानमंडलों की तरफ से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति को सीमाबद्ध किया था। 

एसजी की सलाह पर गवई बोले- फैसला नहीं बदलेगा

सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा और अतुल एस चंदुरकर की संवैधानिक बेंच ने कहा कि राष्ट्रपति के सवालों में कुछ भी गलत नहीं है। बेंच ने ये टिप्पणी तब की जब केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने राष्ट्रपति की चिट्ठी का विरोध किया। सीजेआई गवई ने कहा- राष्ट्रपति इस अदालत से राय ही तो मांग रही हैं। इसमें क्या गलत है? उन्होंने कहा कि वह सलाहकार क्षेत्राधिकार में है, अपीलीय क्षेत्राधिकार में नहीं। अदालत यह राय दे सकती है कि निर्णय विशेष सही नहीं है, पर वह मौजूदा निर्णय को रद्द नहीं करेगा। हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक मिसाल का हवाला देते हुए तर्क दिया कि अदालत सलाहकार क्षेत्राधिकार में भी किसी निर्णय को रद्द कर सकती है। सीआई ने कहा कि किसी दृष्टिकोण को रद्द किया जा सकता है, निर्णय को नहीं। हम वो फैसला बदलने नहीं जा रहे। 

SC ने बनाया था राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए कानून

 राष्ट्रपति संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के अप्रैल के उस फैसले पर सवाल उठाया गया है जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में कहा कि राज्यपाल को उचित समय के भीतर कार्य करना चाहिए। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को रोकने के लिए संवैधानिक चुप्पी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 200 में कोई समय-सीमा तय नहीं की गई है, लेकिन इसकी व्याख्या इस प्रकार नहीं की जा सकती कि राज्यपाल को राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने में विलंब की अनुमति मिल जाए। अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की शक्तियों के संबंध में न्यायालय ने कहा कि उनका निर्णय न्यायिक जांच से परे नहीं है। इसे तीन महीने के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। यदि इस अवधि के बाद कोई देरी होती है तो कारण संबंधित राज्य को सूचित किया जाना चाहिए। 

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे थे 14 सवाल

इस फैसले के बाद राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 200 और 201 की व्याख्या पर चिंता जताते हुए सर्वोच्च न्यायालय को चौदह प्रश्न भेजे थे। सवाल था कि क्या सर्वोच्च न्यायालय उन क्षेत्रों में कोई सिस्टम बना सकता है जहां संविधान मौन है। क्या समय-सीमा लागू करना राष्ट्रपति और राज्यपालों को संवैधानिक रूप से दिए गए विवेकाधिकार का अतिक्रमण करता है। इसके जवाब में केरल ने संदर्भ की स्वीकार्यता पर सवाल उठाते हुए एक आवेदन दायर किया। सूबे ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि संदर्भ को बगैर जवाब के लौटा दिया जाए। उसका तर्क था कि ये सवाल सुप्रीम कोर्ट को उसका काम करने से रोकने के लिए भेजे गए हैं। तमिलनाडु ने भी कुछ इसी तरह की दलीलें दीं। 

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केंद्र सरकार ने इस संदर्भ का समर्थन करते हुए तर्क दिया कि विधेयकों पर कार्रवाई करने की राज्यपालों और राष्ट्रपति की शक्ति एक विशेषाधिकार है। इसे न्यायिक समय-सीमा से नहीं बांधा जा सकता।

वेणुगोपाल बोले- राष्ट्रपति की आड़ में फैसला बदलवाने की साजिश

केरल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने आज इस मामले में दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए प्रश्न तमिलनाडु मामले के अंतर्गत आते हैं। उन्होंने कहा कि एक बार जब कोई फैसला मुद्दों को शामिल कर लेता है तो वे मुद्दे अब एकीकृत नहीं रह जाते। वेणुगोपाल ने कहा कि न्यायालय पहले के फैसले से बंधा हुआ है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह संदर्भ भारत सरकार की तरफ से दिया गया है। राष्ट्रपति केवल उसे आगे बढ़ा रहे हैं। वेणुगोपाल ने कहा कि राष्ट्रपति मंत्रियों की सहायता और सलाह से बंधे हैं और उन्हें मंत्रिपरिषद की बातों का पालन करना होता है। उन्होंने कहा- यह वो कोशिश है जिसमें भारत सरकार याचिका दायर किए बिना सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटने का खेल खेल रही है। 

सिंघवी ने भी किया वेणुगोपाल के तर्क का समर्थन

तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अभिषेक मनु सिंघवी ने भी इसी तरह तर्क दिया। उनका कहना था कि राष्ट्रपति की तरफ से भेजे गए तीन सवालों को छोड़कर सभी प्रश्नों का निपटारा जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच के फैसले के अनुसार किया गया है। सिंघवी ने कहा- लगभग हर मुद्दे को अनुच्छेदवार कवर किया गया है। सिंघवी ने कहा कि राष्ट्रपति का सलाहकार क्षेत्राधिकार पुनर्विचार याचिका का विकल्प नहीं हो सकता। सिंघवी ने कहा कि संविधान बेंच से तमिलनाडु मामले में दिए गए फैसले को बदलने के लिए कहा जा रहा है।

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जस्टिस नाथ ने सिंघवी से कहा- आप यह अनुमान लगा रहे हैं कि दो जजों की बेंच का फैसला रद्द कर दिया जाएगा...क्यों?" सीजेआई ने कहा कि संविधान बेंच संदर्भ पर फैसला कर रही है, तमिलनाडु मामले पर नहीं। हालांकि, सिंघवी ने कहा कि वर्तमान मामले की प्रकृति ऐसी है कि बेंच तमिलनाडु मामले के फैसले को प्रभावित कर सकती है।

Supreme Court, Constitutional Bench, CJI BR Gavai, 14 questions to President, SG Tushar Mehta

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