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प्रो. अली खान केस की सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

सोशल मीडिया पोस्ट पर गिरफ्तारी की आशंका से जूझ रहे प्रो. अली खान महमूदाबाद की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को तैयार हो गई है। यह सुनवाई 20 या 21 मई को होगी और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर असर डाल सकती है।

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Ajit Kumar Pandey
ALI KHAN MAHMUDABAD
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । क्या एक प्रोफेसर की सोशल पोस्ट उसे सलाखों के पीछे ले जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट सुनने जा रहा है आज़ादी-ए-इज़हार और गिरफ़्तारी की जंग। अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर की याचिका ने सोशल मीडिया की सीमाओं पर सवाल उठाया है। 20 या 21 मई को होगी सुप्रीम सुनवाई, पूरे देश की निगाहें इस पर टिकी हैं।

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प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

ऑपरेशन सिंदूर पर सोशल मीडिया पोस्ट के चलते गिरफ्तारी की आशंका झेल रहे अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की मंज़ूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट 20 या 21 मई को इस याचिका पर फैसला लेगा, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सोशल मीडिया की सीमाओं पर बड़ा असर पड़ सकता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने मामले का विशेष उल्लेख करते हुए जल्द सुनवाई की मांग की। याचिका में मांग की गई है कि अली खान की सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर संभावित गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाए।

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सोशल मीडिया पोस्ट बना मुसीबत का कारण

अली खान महमूदाबाद ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में "ऑपरेशन सिंदूर" पर टिप्पणी की थी, जिसके बाद उन पर कार्रवाई की आशंका मंडराने लगी। ये मामला अब सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर बोलने की स्वतंत्रता और कानून की सीमाओं का मुद्दा बन चुका है।

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सुप्रीम कोर्ट ने दी सुनवाई की सहमति

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस बीआर गवई कर रहे हैं, ने याचिका को सुनने पर सहमति जताई है। यह सुनवाई 20 या 21 मई को होने की संभावना है। इस सुनवाई से यह तय होगा कि सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणी कानून की दृष्टि से कितना मायने रखती है।

प्रोफेसर का पक्ष: आज़ादी या अपराध?

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प्रोफेसर अली खान का कहना है कि उनकी पोस्ट केवल विचार अभिव्यक्ति का माध्यम थी, जिसमें किसी को ठेस पहुँचाने का उद्देश्य नहीं था। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी से पूर्व सुरक्षा की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

सोशल मीडिया, कानून और लोकतंत्र

यह मामला भारत में सोशल मीडिया की भूमिका, सीमाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गहराई से सवाल खड़ा करता है। क्या हम वास्तव में एक ऐसा समाज बना रहे हैं, जहां एक अकादमिक की पोस्ट भी राष्ट्रविरोधी मानी जाती है? या फिर यह एक जरूरी चेतावनी है कि जिम्मेदार अभिव्यक्ति ही लोकतंत्र की सच्ची भावना है?

अगली सुनवाई: 20 या 21 मई

अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं। फैसला चाहे जो भी आए, लेकिन यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सोशल मीडिया पर व्यक्तिगत अधिकारों के संघर्ष को लेकर एक मिसाल जरूर बनेगा।

क्या आप मानते हैं कि सोशल मीडिया पोस्ट के लिए किसी को गिरफ़्तार करना सही है? अपनी राय नीचे कमेंट करें।

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