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"राहुल गांधी का चौंकाने वाला बयान लीक! BJP को बताया लश्कर-ए-तैयबा से भी ज्यादा खतरनाक – अमेरिकी दस्तावेज में बड़ा दावा" | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google and X.com)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । 2009 के एक गोपनीय अमेरिकी राजनयिक दस्तावेज़ ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया है। यह दस्तावेज़, जिसे हाल ही में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया पर साझा किया है, दावा करता है कि तत्कालीन कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत के साथ बातचीत में भाजपा को लश्कर-ए-तैयबा से भी बड़ा खतरा बताया था। यह सनसनीखेज खुलासा उस समय के राजनीतिक माहौल और राहुल गांधी की सोच पर गंभीर सवाल खड़े करता है, खासकर जब देश आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई लड़ रहा था।
क्या वाकई देश की सबसे पुरानी पार्टी के एक बड़े नेता ने ऐसा बयान दिया था? अगर हां, तो इसके पीछे क्या मंशा थी? यह सवाल आज हर भारतीय के मन में कौंध रहा है।
वो गुप्त बातचीत : 2009 में राहुल गांधी ने क्या कहा?
यह मामला 2009 का है, जब मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले के ठीक बाद देश में आतंकवाद विरोधी माहौल अपने चरम पर था। इसी दौरान, अमेरिकी राजदूत के साथ एक मुलाकात में राहुल गांधी ने कथित तौर पर टिप्पणी की कि भारत में "कट्टरपंथी हिंदू समूहों" से सबसे बड़ा खतरा है, न कि इस्लामी आतंकवादियों से।
दस्तावेज़ के अनुसार, गांधी ने तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण दिया, जिन्हें उन्होंने "घर-घर में पनपे चरमपंथी" बताया, जो पाकिस्तान या इस्लामी समूहों से आने वाले हमलों की तुलना में कहीं अधिक चिंता का विषय थे। यह दावा दस्तावेज़ के पैराग्राफ 5 में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है, जिसे भाजपा ने सार्वजनिक किया है।
राहुल गांधी जी की नज़र में लश्करे ए तयबा यानि मौलाना मसूद अज़हर,रिचर्ड हेडली तथा पाकिस्तान से ज़्यादा बड़ा आतंकवादी भाजपा,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है तथा उसके नेता तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जी है।
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) July 4, 2025
धन्य महाप्रभु
यह बातचीत अमेरिका के राजदूत के साथ 2009 की है pic.twitter.com/LWK34Wu1yO
दस्तावेज़ की प्रामाणिकता और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
हालांकि यह दस्तावेज़ पुराना है, इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठ सकते हैं। लेकिन, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इसे पूरी तरह प्रामाणिक बताया है और राहुल गांधी पर तीखा हमला बोला है। दुबे का आरोप है कि राहुल गांधी ने लश्कर-ए-तैयबा, मौलाना मसूद अज़हर और रिचर्ड हेडली जैसे आतंकवादियों से ज्यादा बड़ा खतरा भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को माना। यह आरोप बेहद गंभीर है और कांग्रेस के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती खड़ी कर सकता है।
विभाजनकारी राजनीति या गहरी चिंता?
इस दस्तावेज़ से उठने वाला सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी की यह टिप्पणी राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाली थी, या वे वाकई भारत में पनप रहे आंतरिक तनावों को लेकर चिंतित थे? दस्तावेज़ में "कट्टरपंथी हिंदू समूहों" का जिक्र और नरेंद्र मोदी का "घर-घर में पनपे चरमपंथी" के रूप में उल्लेख, कांग्रेस की उस समय की 'हिंदू आतंकवाद' की थ्योरी से मेल खाता है। आलोचकों का मानना है कि यह बयान आतंकवाद के खिलाफ एकजुट लड़ाई को कमजोर करता है और राजनीतिक लाभ के लिए एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ खड़ा करता है।
क्या था कांग्रेस का रुख? 'भगवा आतंकवाद' पर बहस
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि 2009-2014 के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 'भगवा आतंकवाद' या 'हिंदू आतंकवाद' की अवधारणा को बार-बार उठाया था। कई मामलों में हिंदू संगठनों के सदस्यों को आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था। इस दस्तावेज़ से यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में यह धारणा गहराई तक समाई हुई थी कि देश के भीतर से भी कट्टरपंथ का खतरा मौजूद है।
आतंकवाद पर भारत का स्टैंड: एक गंभीर मुद्दा
भारत हमेशा से सीमा पार आतंकवाद का शिकार रहा है। 26/11 मुंबई हमला इसका एक क्रूर उदाहरण है। ऐसे में, जब देश एक साथ बाहरी और आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा हो, किसी प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति द्वारा इस तरह का बयान देना कई सवाल खड़े करता है। क्या यह बयान राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति उदासीनता दर्शाता है, या यह केवल एक अलग राजनीतिक दृष्टिकोण था? इस पर बहस होना लाजमी है।
राहुल गांधी का रुख: क्या उन्होंने अपनी सोच बदली है?
पिछले एक दशक में राहुल गांधी के राजनीतिक रुख में कई बदलाव आए हैं। वर्तमान में वह भारतीय जनता पार्टी की नीतियों के मुखर आलोचक हैं, लेकिन क्या आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा पर उनकी सोच में कोई बदलाव आया है? यह एक बड़ा प्रश्न है जिसका उत्तर आने वाले समय में मिल सकता है। कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को इस दस्तावेज़ पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी।
राजनीतिक विरासत और भविष्य की राजनीति
यह दस्तावेज़ केवल एक पुराना मामला नहीं है, बल्कि यह राहुल गांधी की राजनीतिक विरासत पर भी असर डाल सकता है। खासकर जब लोकसभा चुनाव नजदीक हों, ऐसे खुलासे मतदाताओं के मन में संदेह पैदा कर सकते हैं। भाजपा निश्चित रूप से इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाएगी ताकि कांग्रेस को घेर सके और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर अपनी स्थिति मजबूत कर सके।
बढ़ती कट्टरता और भारत का सामाजिक ताना-बाना
दस्तावेज़ में "बढ़ती कट्टरता" (Creeping Radicalization) का उल्लेख भारत के सामाजिक ताने-बाने पर भी चिंता व्यक्त करता है। चाहे वह किसी भी समुदाय से संबंधित हो, कट्टरता हमेशा समाज के लिए एक खतरा रही है। यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में किसी भी प्रकार की कट्टरता, शांति और सद्भाव के लिए चुनौती पैदा करती है। इस दस्तावेज़ के माध्यम से यह बहस फिर से गरमा गई है कि भारत में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए क्या किया जाना चाहिए।
दस्तावेज़ के अंतिम पैराग्राफ में राहुल गांधी के बारे में कहा गया है कि वह "युवा सांसदों की नई पीढ़ी" का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह भी उल्लेख किया गया है कि "राहुल गांधी को एक युवा नेता के रूप में देखा जाता है जो कांग्रेस को रणनीतिक साझेदारी के समर्थन में एक लंबा क्षितिज प्रदान करता है।" यह दर्शाता है कि अमेरिकी अधिकारियों की राहुल गांधी में काफी दिलचस्पी थी और वे उन्हें भविष्य के एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में देख रहे थे। आज जब संसद में युवा नेताओं की संख्या बढ़ रही है, इस तरह के पुराने खुलासे उनके अतीत और वर्तमान के बीच एक पुल का काम कर सकते हैं।
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