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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की उस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा जिसमें उन्होंने राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक के साथ पुरातात्विक स्थल व अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित करने की मांग की थी। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने भारत संघ और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस जारी किया। अदालत ने आदेश दिया कि नोटिस का चार सप्ताह के भीतर जवाब दिया जाए।
दो साल पहले दर्ज किया गया था एसजी का बयान
जनवरी 2023 में, शीर्ष अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का बयान दर्ज किया था कि यह मामला संस्कृति मंत्रालय के विचाराधीन है। उनका कहना था कि सुब्रमण्यम स्वामी इस संबंध में अतिरिक्त तथ्य पेश कर सकते हैं। आदेश के बाद स्वामी ने केंद्र के समक्ष एक प्रजेंटेशन दिया था। उन्होंने इस वर्ष मई में एक नया प्रजेंटेशन दिया था। अब दायर की गई याचिका में स्वामी ने आरोप लगाया है कि उन्हें अपने सवालों का कोई जवाब नहीं मिला है।
याचिका में कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक जनहित याचिका के रूप में यह रिट दायर की गई है। इसमें सुप्रीम कोर्ट से संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है। सरकार इस अदालत के 2023 के आदेश की पालना में जल्दी निर्णय ले। याचिका में कहा गया है कि भारत के प्राचीन इतिहास और महाकाव्य रामायण के अनुसार राम सेतु पुल का निर्माण भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता को लंका नरेश रावण से छुड़ाने के उद्देश्य से किया था।
स्वामी की सरकार से ये है मांग
स्वामी का कहना है कि भारतीय प्राचीन इतिहास और भारतीय उगा पद्धति पर आधारित गणनाओं के अनुसार इस पुल का निर्माण कई शताब्दियों पहले हुआ था। 15वीं शताब्दी तक इस पुल का उपयोग पैदल आवागमन के लिए किया जाता था। उसके बाद तूफानों के कारण यह पुल बेमतलब का हो गया। स्वामी ने तर्क दिया कि प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 की धारा 3 और 4 के तहत भारत सरकार प्राचीन स्मारकों को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने के लिए बाध्य है।
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