नई दिल्ली,वाईबीएन डेस्कः यूक्रेन के साथ लड़ाई में रूसी सेना इसका इस्तेमाल बखूबी कर रही है। इसकी खासियत है कि ये 5 मिनट में तैयार हो जाता है। इसे NPO Almaz ने बनाया है। ये सतह से हवा में मार करता है। यह S-300 का अपग्रेडेड रूप है। फिलहाल रूसी थिंकटैंक S-500 को डेवलप करने का काम कर रहा है।
भारत ने साल 2018 में रूस से 5 S-400 मिसाइल सिस्टम लेने का करार किया था। इसकी पांच रेजीमेंट तैयार करने का लागत 2018 में तकरीबन 5.43 अरब डालर की थी। रूस फिलहाल तीन रेजीमेंट तैयार करके दे चुका है। बाकी की दो अगस्त 2026 तक तैयार होने की उम्मीद है। रूस यूक्रेन के साथ लड़ाई में उलझा है, इस वजह से भारत को सिस्टम की आपूर्ति में देरी हो रही है।
पलक झपकते लोकेशन हो जाती है तब्दील, 400 किमी तक कारगर
इस सिस्टम का खास बात है कि तेजी के साथ इसकी लोकेशन को तब्दील किया जा सकता है। यह जैमिंग प्रूफ है। ये सिस्टम एयरक्राफ्ट्स, ड्रोन्स, क्रूज मिसाइलों और बैलिस्टिक मिसाइलों को 4 सौ किमी की दूरी तक ध्वस्त कर सकता है। 30 किमी की ऊंचाई पर मौजूद टारगेट को ये पलक झपकते ही तबाह कर देता है। ये 300 टारगेट का एक साथ पता लगा सकता है। 36 के साथ ये एक ही समय में निपट सकता है। इस सिस्टम में चार तरह की मिसाइलें हैं। 40N6E (400 किमी ), 48N6E3 (250 किमी), 9M96E2 (120 किमी), और 9M96E (40 किमी) की रेंज तक कारगर है। सिस्टम में 96L6E जैसी रडार है। ये 360 डिग्री तक सर्विलांस करने में सक्षम है। ये दूसरे सिस्टमों जैसे S-300, Tor और Pantsir के साथ बखूबी तालमेल बिठा लेता है।
मिसाइल सिस्टम की 2 रेजीमेंट पाकिस्तान और 1 चीनी बार्डर पर तैनात
हालांकि सेना उन लोकेशंस को सार्वजनिक नहीं करती है जहां पर इस सिस्टम को तैनात किया गया है। लेकिन खबरों के मुताबिक इसे नार्थ, वेस्ट और ईस्टgau मोर्चे पर तैनात किया गया है। नार्थ में इसे पाकिस्तान के बार्डर पर स्थित पंजाब में लगाया गया है जबकि दूसरे सिस्टम को पश्चिमी कमान के तहत राजस्थान में लगाया गया है। यहां ये पाकिस्तानी खतरे की आशंका चलते तैनात किया गया है। तीसरा सिस्टम चीन के साथ लगती सीमा पर अरुणाचल प्रदेश या असम के पास किसी जगह पर लगाया गया है।
अपना भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम कुश तैयार करने में जुटा है भारत
हालांकि भारत इस सिस्टम के साथ अपना भी एक प्रोजेक्ट तैयार करने में लगा है। प्रोजेक्ट कुश के तहत एक ऐसा स्वदेशी मिसाइल डिफेंस सिस्टम तैयार किया जा रहा है जो 150 से 350 किमी तक कारगर साबित हो सकता है। इसके डेवलप होने के बाद भारत दूसरी किसी महाशक्ति पर निर्भर नहीं रह जाएगा। सेना का कहना है कि स्वदेशी कंपनी फाइनल मोड में है। जल्दी ही ये सामने आ जाएगा।
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