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Explainer : फिलिस्तीन के जिगरी दोस्तों ने दिया धोखा? सऊदी - तुर्किए - पाकिस्तान निकले दगाबाज!

ट्रंप के 20-पॉइंट गाजा शांति प्लान में फिलिस्तीनी स्टेटहुड की गारंटी नहीं फिर भी सऊदी, तुर्किए, पाकिस्तान ने क्यों किया समर्थन? यह समर्थन क्या राजनीतिक भविष्य को कमजोर कर रहा है? जानें कैसे यह देश अपने हितों के लिए फिलिस्तीनी सपने को चकनाचूर कर रहे हैं?

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Ajit Kumar Pandey
Explainer : फिलिस्तीन के जिगरी दोस्तों ने दिया धोखा? सऊदी - तुर्किए - पाकिस्तान निकले दगाबाज! | यंग भारत न्यूज

Explainer : फिलिस्तीन के जिगरी दोस्तों ने दिया धोखा? सऊदी - तुर्किए - पाकिस्तान निकले दगाबाज! | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।अमेरिका के प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप का 20-पॉइंट इजराइल-गाजा शांति प्रस्ताव भले ही युद्ध रोकने की बात करता हो, लेकिन इसमें फिलिस्तीनी राज्य स्टेटहुड की ठोस गारंटी नहीं है। इसके बावजूद सऊदी अरब, तुर्किए और पाकिस्तान जैसे बड़े मुस्लिम देशों ने इसका खुले दिल से स्वागत किया है। यह समर्थन फिलिस्तीन के मूल राजनीतिक मुद्दे को कमजोर करने वाला लग रहा है, जिससे सवाल उठ रहा है क्या उनके अपने दोस्तों ने ही फिलिस्तीनी स्टेटहुड के सपने को हाशिये पर धकेल दिया है? 

Young Bharat News का यह Explainer आपको इस जटिल कूटनीति के पीछे की कहानी बताएगा। क्या ट्रंप का 'शांति' प्रस्ताव राहत है या फिलिस्तीन के लिए नया जाल? 

इजराइल और गाजा के बीच दो साल से जारी खूनी संघर्ष को रोकने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20-पॉइंट का 'पीस प्लान' पेश किया है। यह प्रस्ताव व्हाइट हाउस में इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मौजूदगी में लाया गया, जो अपने आप में इसके झुकाव को दर्शाता है।

इस पहल का तात्कालिक लक्ष्य हिंसा रोकना, बंधकों को छुड़ाना और गाजा में मानवीय संकट को कम करना है। लेकिन, अगर आप इसकी तह तक जाएंगे तो पाएंगे कि इसमें फिलिस्तीनियों की सबसे बड़ी मांग 'स्वतंत्र राज्य' यानि स्टेटहुड की स्थापना का जिक्र बेहद धुंधले और सशर्त शब्दों में किया गया है। 

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यही वह पेंच है जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। परंपरागत रूप से फिलिस्तीन के सबसे मुखर समर्थक माने जाने वाले देश सऊदी अरब, तुर्किए और पाकिस्तान ने भी इस प्लान की तारीफ की है। 

दोस्त देश क्यों दे रहे धोखा? स्टेटहुड की गारंटी नहीं, फिर भी समर्थन में क्यों? 

यही इस कहानी का सबसे चुभने वाला सवाल है। जब प्रस्ताव में फिलिस्तीनी राज्य की गारंटी ही नहीं है, तो इन बड़े मुस्लिम देशों का समर्थन क्या संदेश देता है? ट्रंप के प्लान में साफ़ कहा गया है कि फिलिस्तीनी राज्य के 'हालात' तभी बन सकते हैं, जब गाजा में पुनर्निर्माण पूरी ईमानदारी से हो और फिलिस्तीनी अथॉरिटी PA का सुधार कार्यक्रम सफलतापूर्वक लागू हो जाए। इसका मतलब क्या है? इसका मतलब साफ है कि राज्य बनने की बात भी 'हो सकती है और नहीं भी'। यह सब भी भविष्य की कुछ शर्तों पर निर्भर है। 

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इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी साफ कहा है कि उनकी ट्रंप से मुलाकात में फिलिस्तीनी राज्य के मुद्दे पर बात नहीं हुई है। तो फिर, मुस्लिम देशों का भरपूर समर्थन किस बात के लिए है? 

आर्थिक स्थिरता और अमेरिका से रिश्ते : क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

PRABHAT KUMAR RAI
विदेशी मामलों के जानकार प्रभात कुमार राय Photograph: (YBN)

विदेशी मामलों के जानकार प्रभात कुमार राय कहते हैं कि इन देशों की कूटनीतिक प्राथमिकताएं अब बदल चुकी हैं। अब उनकी सबसे बड़ी चिंता अपने आर्थिक विकास, क्षेत्रीय स्थिरता और सबसे बढ़कर अमेरिका के साथ अपने संबंधों को और अधिक मजबूत करना है। 

प्रभात कुमार कहते हैं कि सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देश अपने विजन 2030 जैसे महत्वाकांक्षी लक्ष्यों पर काम कर रहे हैं, जिसके लिए उन्हें अमेरिका के निवेश और सुरक्षा की सख्त जरूरत है। इस नए राजनीतिक समीकरण में, फिलिस्तीन का मुद्दा अब पहले जितना 'महत्वपूर्ण' नहीं रहा। 

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तुर्किए और पाकिस्तान खुद के अंदरूनी दबाव 

प्रभात कुमार राय कहते हैं कि तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी ट्रंप की कोशिशों को सराहा। तुर्किए को कई आर्थिक और क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि पाकिस्तान भी अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन चाहता है। उनके लिए अमेरिकी पहल का समर्थन करके वाशिंगटन से सकारात्मक संकेत पाना ज्यादा जरूरी हो गया है। 

प्रभात कुमार राय ने बताया कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि उन्हें यकीन है कि 'स्थायी शांति से राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक विकास आएगा।' उनका यह बयान स्पष्ट तौर पर फिलिस्तीनी राज्य की मांग से ज्यादा अपने आर्थिक लाभ पर केंद्रित है। क्या आपको नहीं लगता कि यह समर्थन सिर्फ हिंसा रोकने की तात्कालिक जरूरत को दर्शा रहा है, न कि फिलिस्तीनियों के भविष्य की राजनीतिक मांग को? 

ट्रंप के शांति प्रस्ताव में क्या है खास? सिर्फ अस्थाई राहत की 20-पॉइंट योजना 

1. गाजा को आतंक-मुक्त क्षेत्र बनाया जाएगा जिससे उसके पड़ोसियों को कोई खतरा नहीं होगा।

2. गाजा के लोगों के लाभ के लिए गाजा का पुनर्निर्माण किया जाएगा।

3. यदि दोनों पक्ष इस प्रस्ताव पर सहमत हो जाते हैं, तो युद्ध तुरंत समाप्त हो जाएगा। बंधकों की रिहाई की तैयारी के लिए इज़राइली सेना सहमत रेखा पर वापस लौट जाएगी। इस अवधि के दौरान सभी सैन्य अभियान स्थगित रहेंगे।

4. इज़राइल द्वारा इस समझौते को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने के 72 घंटों के भीतर, सभी बंधकों, जीवित और मृत, को वापस कर दिया जाएगा।

5. सभी बंधकों की रिहाई के बाद, इज़राइल 7 अक्टूबर, 2023 के बाद आजीवन कारावास की सजा काट रहे 250 कैदियों और हिरासत में लिए गए 1,700 गाजावासियों को रिहा करेगा।

5. प्रत्येक वापस किए गए इज़राइली बंधक के बदले, इज़राइल 15 मृत गाजावासियों के शव लौटाएगा।

6. सभी बंधकों की वापसी के बाद, हमास के सदस्य जो अपने हथियार सौंपने का वचन देते हैं, उन्हें माफ़ी दे दी जाएगी।

7. इस समझौते के स्वीकृत होते ही गाजा पट्टी को तुरंत सहायता भेजी जाएगी।

8. गाजा को सहायता संयुक्त राष्ट्र, रेड क्रिसेंट और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से बिना किसी हस्तक्षेप के प्रदान की जाएगी।

9. गाजा का अस्थायी प्रशासन एक गैर-राजनीतिक फ़िलिस्तीनी समिति द्वारा चलाया जाएगा, जिसकी देखरेख अंतर्राष्ट्रीय शांति बोर्ड करेगा। इसकी अध्यक्षता डोनाल्ड ट्रम्प करेंगे और इसमें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर सहित अन्य नेता शामिल होंगे।

10. यह निकाय फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण द्वारा पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करने तक गाजा के पुनर्निर्माण और वित्तीय प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार होगा।

11. ट्रम्प की आर्थिक विकास योजना के तहत गाजा के पुनर्निर्माण और सशक्तिकरण के लिए एक विशेषज्ञ पैनल का गठन किया जाएगा।

12. एक विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित किया जाएगा, जिसमें भाग लेने वाले देशों के साथ अधिमान्य शुल्क और पहुँच दरों पर बातचीत की जाएगी।

13. किसी को भी गाजा छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। जो लोग छोड़ना चाहते हैं, वे स्वतंत्र रूप से जा सकेंगे और वापस आ सकेंगे।

14. हमास और अन्य गुट किसी भी तरह से गाजा के शासन में शामिल नहीं होंगे। सुरंगों और हथियार निर्माण सुविधाओं सहित सभी सैन्य, आतंकवादी और आक्रामक बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया जाएगा और उनका पुनर्निर्माण नहीं किया जाएगा।

15. क्षेत्रीय साझेदार यह गारंटी देंगे कि हमास और अन्य गुट शर्तों का पालन करेंगे। नया गाजा अपने पड़ोसियों या अपने लोगों के लिए कोई खतरा पैदा नहीं करेगा।

16. संयुक्त राज्य अमेरिका, अरब और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ मिलकर एक अंतर्राष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (ISF) का गठन करेगा, जिसे तुरंत गाजा में तैनात किया जाएगा। ISF गाजा में चुनिंदा फ़िलिस्तीनी पुलिस बलों को प्रशिक्षित और सहायता प्रदान करेगा। यह बल गाजा की आंतरिक सुरक्षा का ध्यान रखेगा।

17. इज़राइल गाजा पर कब्ज़ा या विलय नहीं करेगा। जैसे ही ISF स्थिरता स्थापित करेगा, इज़राइली रक्षा बल (IDF) गाजा से हट जाएंगे।

18. यदि हमास इस प्रस्ताव में देरी करता है या इसे अस्वीकार करता है, तो उपरोक्त प्रावधान—जिसमें सहायता अभियान में वृद्धि भी शामिल है- उन आतंक-मुक्त क्षेत्रों में लागू किए जाएंगे जिन्हें IDF ने ISF को सौंप दिया है।

19. धर्मों के बीच संवाद की एक प्रक्रिया स्थापित की जाएगी।

20. जैसे-जैसे गाजा का पुनर्निर्माण आगे बढ़ेगा और फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण का सुधार कार्यक्रम लागू होगा, फ़िलिस्तीनियों के लिए राज्य का रास्ता खुल सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका शांति के लिए एक राजनीतिक ढांचा स्थापित करने हेतु इज़राइल और फ़िलिस्तीनियों के बीच संवाद भी स्थापित करेगा। 

प्लान का सबसे बड़ा विरोधाभास ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन देशों पर निशाना साधा जिन्होंने हाल ही में फिलिस्तीन को मान्यता दी है, यह कहते हुए कि उन्होंने 'गलती से' ऐसा किया है। यह बात दिखाती है कि ट्रंप प्रशासन फिलिस्तीनी स्टेटहुड के विचार को समर्थन नहीं देता। 

प्रस्ताव में फिलिस्तीन का जिक्र तो है, लेकिन 'हो भी सकता है और नहीं भी' की शर्त पर। गाजा का विकास और पीए का सुधार पहले यानी फिलिस्तीनियों को पहले 'अच्छा व्यवहार' करना होगा, तब शायद उन्हें राज्य का सपना देखने की इजाजत मिलेगी। यह एक तरह से 'शांति के बदले आत्मसमर्पण' जैसा लगता है। 

स्टेटहुड फिलिस्तीन की 'रेड लाइन' 

फिलिस्तीन के लिए स्टेटहुड कोई कूटनीतिक औपचारिकता नहीं बल्कि उनके संघर्ष की 'रेड लाइन' है। एक स्वतंत्र, संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य की मांग ही दशकों से उनके आंदोलन का आधार रही है। जब उनके सबसे मजबूत समर्थक देश सऊदी, तुर्किए और पाकिस्तान भी एक ऐसे प्रस्ताव का स्वागत करते हैं जो इस मूल मांग को नजरअंदाज करता है तो यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर फिलिस्तीन के पक्ष को गहरा नुकसान पहुंचाता है। 

क्या यह कूटनीतिक बदलाव दुनिया को यह संदेश दे रहा है कि अब फिलिस्तीनी राज्य के बिना भी 'शांति' संभव है? यह समर्थन एक तरह से ट्रंप के प्लान को अंतरराष्ट्रीय वैधता देता है, जिससे फिलिस्तीन के लिए भविष्य में अपने संप्रभु राज्य की मांग पर अडिग रहना और भी मुश्किल हो जाएगा। 

हालांकि फिलिस्तीनी अथॉरिटी खुद इस प्लान को सिरे से खारिज कर चुकी है, लेकिन अपने दोस्तों के समर्थन के बाद उनका विरोध कितना प्रभावी रहेगा यह एक बड़ा सवाल है। आगे क्या? फिलिस्तीन के लिए चुनौतियां यह घटनाक्रम दिखाता है कि मध्य-पूर्व की राजनीति में फिलिस्तीन का मुद्दा अब अपनी प्राथमिकता खो रहा है। क्षेत्रीय देश अब अपने राष्ट्रीय हितों और अमेरिका के साथ संबंधों को फिलिस्तीनी संघर्ष से ऊपर रख रहे हैं। 

ट्रंप का प्लान भले ही गाजा में अस्थाई शांति लाए लेकिन, यह फिलिस्तीनी-इजराइली संघर्ष के मूल कारण यानी फिलिस्तीनी संप्रभुता के सवाल को हल नहीं करता। बल्कि, यह इसे और जटिल बना सकता है। फिलिस्तीन को अब सिर्फ इजराइल से नहीं बल्कि अपने ही 'दोस्तों' से मिलने वाली कूटनीतिक चुनौतियों से भी निपटना होगा। यह एक ऐसी लड़ाई है, जो शायद दशकों के संघर्ष में सबसे कठिन हो सकती है। 

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