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वेस्ट बंगाल में हिंदू लड़की शर्मिष्ठा पनौली की गिरफ्तारी से मोगेंबो खुश हुआ!

22 साल की सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनौली की गिरफ्तारी पर बंगाल में बवाल। बीजेपी ने इसे "चयनात्मक कार्रवाई" बताया। क्या ये वोटबैंक की राजनीति है? मामला अब अंतरराष्ट्रीय समर्थन तक पहुंचा।

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Ajit Kumar Pandey
WEST BENGAL
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बंगाल में 22 साल की सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनौली की गिरफ्तारी ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। एक डिलीटेड वीडियो और माफ़ी के बावजूद गिरफ्तारी, क्या ये कानून का दुरुपयोग है? बीजेपी इसे "सिलेक्टिव एन्फोर्समेंट" बता रही है, जबकि टीएमसी चुप है। मुद्दा अब सिर्फ बयान का नहीं, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बन गया है। क्या एक हिंदू लड़की की गिरफ्तारी किसी खास वोट बैंक को खुश करने की कोशिश है? ममता बनर्जी के कदम से मोगेंबो खुश हुआ! और वोट बैंक अब कहीं नहीं खिसकेगा। अब क्या महिलाएं यहां सुरक्षित हैं माफीनामें के बाद भी....पढ़ें पूरी रिपोर्ट

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कोलकाता पुलिस द्वारा 22 वर्षीय सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनौली की गिरफ्तारी पर पश्चिम बंगाल में राजनीतिक बवाल मच गया है। बीजेपी ने इसे "चयनात्मक कार्रवाई" करार देते हुए टीएमसी सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाया है। पनौली को एक पुराने और माफ़ी मांग चुके वीडियो के लिए 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है, जिससे सवाल उठ रहा है—क्या ये कानून का दुरुपयोग नहीं?

शर्मिष्ठा पनौली की गिरफ्तारी: कानून या राजनीति?

22 साल की लॉ स्टूडेंट और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनौली को कोलकाता पुलिस ने बीते शुक्रवार को गुरुग्राम से गिरफ्तार किया और शनिवार को कोर्ट में पेश कर 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पनौली पर आरोप है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर एक विवादित वीडियो डाला था, जिसे उन्होंने पहले ही डिलीट कर दिया था और 15 मई को माफ़ी भी मांग ली थी।

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लेकिन इसके बावजूद पुलिस ने इस मामले में ‘तेजी’ दिखाई, जो अब राजनीतिक बहस का मुद्दा बन गया है।

बीजेपी का हमला: “हिंदू लड़की को टारगेट किया गया”

बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा, “शर्मिष्ठा पनौली ने माफ़ी मांग ली थी, वीडियो हटा दिया गया था, फिर भी उन्हें गिरफ्तार किया गया। न तो कोई सांप्रदायिक तनाव हुआ और न ही कोई हिंसा, फिर भी ये कार्यवाही क्यों?”

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उनका कहना है कि ये मामला अब सिर्फ कानून का नहीं, बल्कि "राजनीतिक सुविधा के अनुसार न्याय" देने का उदाहरण बन चुका है।

मुद्दा सिर्फ बंगाल का नहीं, संदेश पूरे देश के लिए

इस घटना ने केवल पश्चिम बंगाल में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर चिंता बढ़ा दी है। क्या एक युवा हिंदू महिला की गिरफ्तारी इसलिए की गई क्योंकि वह राजनीतिक रूप से सुविधाजनक निशाना थी?

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यह सवाल अब देश के राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन चुका है।

डच सांसद का समर्थन: मामला अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में

नीदरलैंड्स के सांसद और दक्षिणपंथी पार्टी फॉर फ्रीडम के नेता गीर्ट विल्डर्स ने शर्मिष्ठा के समर्थन में ट्वीट किया। उन्होंने इसे “हिंदू महिला के अधिकारों पर हमला” बताया।

ये प्रतिक्रिया दिखाती है कि अब मामला केवल स्थानीय नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दृष्टिकोण से भी देखा जा रहा है।

क्या कानून सभी के लिए बराबर है?

बीजेपी का कहना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी स्वयं कई बार भड़काऊ बयान दे चुकी हैं, जिनसे दंगे और जान-माल का नुकसान हुआ है। लेकिन क्या उनके खिलाफ इतनी जल्दी कार्रवाई हुई?

यह सवाल बंगाल ही नहीं, पूरे भारत के लोकतंत्र के लिए अहम है।

निष्कर्ष: युवा आवाजों को दबाना लोकतंत्र के लिए खतरा

शर्मिष्ठा पनौली की गिरफ्तारी सिर्फ एक व्यक्ति का मामला नहीं है। यह इस बात का संकेत है कि अगर आपकी राय किसी सत्तारूढ़ विचारधारा के खिलाफ है, तो आप निशाना बन सकते हैं—even if you apologize.

क्या आप इस गिरफ्तारी से सहमत हैं? अपनी राय कमेंट में जरूर दें। 

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