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कभी सोनिया गांधी के थे चहेते, अब मोदी को भा रहे, यूं ही अहम नहीं बने शशि थरूर

थरूर जिस चीज से जुड़ते हैं उसे अपना बना लेते हैं। राजनयिक थे तो उनका रुतबा कुछ अलग ही था। वैश्विक नेताओं से उनके निजी संबंध थे। यही वजह रही कि कांग्रेस ने उनको हमेशा तरजीह दी। इसी खासियत के चलते अब वो पीएम मोदी के करीब आ रहे हैं।

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Shailendra Gautam
CONGRESS LEADER SHASHI THAROOR

आपरेशन सिंदूर के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों के एक डेलीगेशन को जिम्मा सौंपा है कि वो दुनिया भर को जाकर भारत के पक्ष के बारे में बताएं। खास बात है कि 5 सांसदों के दल की अगुवाई कांग्रेस के शशि थरूर करने वाले हैं। थरूर पर पीएम का भरोसा यूं ही नहीं है। वैश्विक मामलों में उनके जैसा शख्स भारत में फिलहाल कोई नहीं है। यही वजह थी कि वो कभी सोनिया गांधी के खासमखास रहे और अब पीएम मोदी की गुडलिस्ट में शामिल हैं। 

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लंदन में जन्मे थरूर महज 22 की उम्र में पीएचडी कर चुके थे

शशि थरूर का जन्म मार्च 1956 को लंदन में एक भारतीय प्रवासी परिवार में हुआ था। उनके पैदा होने के बाद परिवार भारत लौट आया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की और 1978 में महज 22 की उम्र में उन्होंने मेडफोर्ड, मैसाचुसेट्स के फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ एंड डिप्लोमेसी से पीएचडी की। उस समय थरूर फ्लेचर स्कूल से डॉक्टरेट करने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे।

यूएन के सेक्रेट्री जनरल की कुर्सी के बेहद करीब पहुंच गए थे थरूर

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थरूर 1978 में जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (UNHCR) में नियुक्त हुए। अगले लगभग 30 वर्षों तक वो यूएन में एक राजनयिक के तौर पर तैनात रहे। इसी दौरान वो सोनिया गांधी की निगाहों में आए। 2004 में देश के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह बन चुके थे। सोनिया गांधी सरकार की सरपरस्त के तौर पर काम कर रही थीं। 2006 में भारत ने थरूर का नाम संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के पद के लिए आगे बढ़ाया। वो कितने प्रभावशाली थे इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि महासचिव के चुनाव में सात उम्मीदवारों में वो दूसरे स्थान पर रहे। चुनाव को दक्षिण कोरियाई के पूर्व राजनयिक और राजनेता बान की मून ने जीता था। अपनी हार के बाद थरूर ने 2007 में संयुक्त राष्ट्र से इस्तीफा दे दिया और दुबई स्थित कंपनी अफ्रास वेंचर्स के अध्यक्ष बन गए।

2009 में लड़े पहला चुनाव, हासिल की थी शानदार जीत

2009 में शशि थरूर कांग्रेस में शामिल हो गए। उस साल मई में उन्होंने केरल की तिरुवनंतपुरम से लोकसभा का चुनाव चुनाव लड़ा और पहली बार में ही शानदार जीत हासिल की। ​​चुनाव बाद उन्हें कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार में विदेश मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री नियुक्त किया गया। 

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सुनंदा पुस्कर को लेकर घिरे तो छोड़नी पड़ी मंत्री की कुर्सी

लैविश लाईफ स्टाइल के शौकीन थरूर पहले दिन से ही विवादों में घिर गए। पहले वो मंत्री बनने के बाद फाईव स्टार होटल में कई महीनों तक रहने के कारण घिरे। उसके बाद उन्होंने एक कंट्रोवर्सियल पोस्ट सोशल मीडिया पर कर दी जिसमें सरकार के उन कदमों का उपहास उड़ाया गया था जो आर्थिक मितव्ययिता से जुड़े थे। इसके अलावा वो अपनी तब की गर्लफ्रैंड सुनंदा पुस्कर को लेकर भी घिरे। उनकी भावी पत्नी सुनंदा पुष्कर को अब भंग हो चुकी कोच्चि टस्कर्स केरल में आर्थिक लाभ हुआ था। ये एक क्रिकेट टीम थी जो इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का हिस्सा थी। एक साल के भीतर ही उनको मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उन्होंने अप्रैल 2010 में मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया। बाद के दौर में थरूर लोकसभा में सक्रिय रहे। विदेश मामलों और रक्षा पर केंद्रित समितियों में शामिल किए गए।

अक्टूबर 2012 में थरूर को फिर से बनाया गया मंत्री

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अक्टूबर 2012 में थरूर को मानव संसाधन विकास मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री नियुक्त किया गया। उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में भी विवाद का दामन तब थाम लिया जब गुजरात के तत्कालीन चीफ मिनिस्टर नरेंद्र मोदी की आलोचना की। वो सीमा लांघने लगे तो हाईकमान से उन्हें चेतावनी भी मिली। 

सुनंदा पुस्कर की मौत के मामले में फंसे, फिर मिली क्लीन चिट

थरूर का विवादों से चोली दामन का साथ रहा है।  कोच्चि टस्कर्स विवाद से उनकी गर्लफ्रैंड सुनंदा पुस्कर सुर्खियों में आई थीं। मंत्री की कुर्सी गई पर थरूर ने सुनंदा को अपनी जीवन संगिनी बना लिया। 2014 में दिल्ली के लीला होटल में सुनंताकी संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी। पहले इसे खुदकुशी का मामला माना गया। लेकिन जांच आगे बढ़ी तो थरूर के दामन तक छींटे पहुंच गए। भारत के साथ अमेरिका की जांच एजेंसी भी ये मान चुकी है कि सुनंदा की हत्या की गई थी। लेकिन थरूर को फिलहाल उस मामले में क्लीन चिट मिल चुकी है।


सोनिया के मना करने के बावजूद लड़े थे कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव

शशि थरूर वैसे तो लैविश लाईफ जीने वाले राजनयिक माने जाते हैं। लेकिन वो लोगों के बीच भी खासे लोकप्रिय हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के बावजूद उन्होंने अपनी सीट बरकरार रखी। उसके बाद 2019 में भी चुनाव जीते। बावजूद इसके कि पुलवामा की लहर में खुद राहुल गांधी तक अमेठी से चुनाव हार गए थे पर थरूर पर कोई असर नहीं पड़ा। 2024 के चुनावों में उनको फिर से शानदार जीत मिली। वो कांग्रेस नेता के तौर पर ही जाने जाते हैं। लेकिन फिलहाल गांधी परिवार से उनका आंकड़ा ठीक नहीं लगता। इसकी बानगी तब भी मिली थी जब सोनिया गांधी के एतराज के बावजूद वो कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में उतरे थे।

कई देशों से खास संबंध, इसी वजह से पहले सोनिया और अब मोदी के नजदीक आए

जानकार कहते हैं कि थरूर जिस चीज से जुड़ते हैं उसे अपना बना लेते हैं। राजनयिक थे तो उनका रुतबा कुछ अलग ही था। वैश्विक नेताओं से उनके निजी संबंध थे। यही वजह रही कि कांग्रेस ने उनको हमेशा तरजीह दी। जब यूएन से उनका मोहभंग हुआ तो सोनिया उन्हें सक्रिय राजनीति में लेकर आईं। फिर मंत्री भी बनाया। अब फिलहाल थरूर का कांग्रेस से मोहभंग हो गया लगता है। वो पीएम मोदी के करीब आ रहे हैं। मोदी को भी पता है कि मौजूदा हालात में शशि थरूर उनकी वैश्विक नीति के लिए खासे कारगर हो सकते हैं। उनके अपने संबंध हैं। बेशक वो अब राजनयिक नहीं हैं लेकिन उनका रुतबा पहले की तरह से बरकरार है। 

Shashi Tharoor, Indian diplomat, politician, United Nations, UPA minister, Sonia Gandhi, PM Modi

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