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बारिश की कमी और सूखा
बर्फबारी का एक और महत्वपूर्ण असर मानसून पर भी पड़ता है। जब बर्फ पिघलती है, तो पानी धीरे-धीरे नदियों में बहता है, जो अंततः वर्षा गतिविधियों में शामिल हो जाता है। बिना बर्फबारी के, जल स्रोतों में कमी हो सकती है, और नदियों में पानी की कमी से बारिश भी कम हो सकती है। इस स्थिति में सूखा पड़ने का खतरा बढ़ सकता है। सूखा और बारिश की कमी कृषि, जल आपूर्ति और दैनिक जीवन में गंभीर संकट उत्पन्न कर सकती है, जिससे देशभर में खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ेगा।
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ठंडी हवाओं की कमी
सर्दियों में पहाड़ों पर बर्फबारी ठंडी हवाओं के प्रवाह को नियंत्रित करती है, जो समूचे मैदानी क्षेत्रों में ठंडक लाती है। अगर पहाड़ों पर बर्फबारी नहीं होती, तो इन ठंडी हवाओं का प्रभाव कम हो सकता है, जिससे मैदानी इलाकों में सर्दी का एहसास कम हो जाएगा। इसका असर यह हो सकता है कि गर्मी के महीनों में भी ठंडक का अभाव महसूस हो, और गर्मी की बढ़ती लहरें पूरे देश में अपना प्रभाव छोड़ सकती हैं। मौसम का यह असंतुलन जीवनशैली, स्वास्थ्य और सामान्य गतिविधियों पर गंभीर असर डाल सकता है।
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कृषि और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव
पहाड़ों में बर्फबारी के बाद पिघलने वाली बर्फ से खेतों में प्राकृतिक रूप से पानी पहुंचता है, जो फसलों के लिए बहुत आवश्यक होता है। अगर बर्फबारी नहीं होती, तो जल स्रोतों की कमी से कृषि उत्पादों पर असर पड़ सकता है। विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां पानी की आपूर्ति पहाड़ी जल स्रोतों पर निर्भर करती है, वहां कृषि संकट उत्पन्न हो सकता है। यह खाद्य सुरक्षा पर गंभीर खतरा पैदा कर सकता है, क्योंकि फसलों के उत्पादन में कमी के कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं और उनके उपलब्धता में भी कमी हो सकती है।
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जलवायु परिवर्तन का संकेत
पहाड़ों पर बर्फबारी की कमी, जलवायु परिवर्तन का एक स्पष्ट संकेत हो सकती है। जलवायु परिवर्तन के कारण न केवल बर्फबारी में कमी आएगी, बल्कि यह समुद्र स्तर में वृद्धि, बर्फीले क्षेत्रों का पिघलना और अत्यधिक गर्मी जैसी समस्याओं को जन्म दे सकता है। बर्फबारी के बिना, ग्लेशियरों और बर्फ से ढके क्षेत्रों में जल की आपूर्ति प्रभावित होगी, और इसका प्रभाव कृषि, जल स्रोतों और समूचे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा।
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पर्यावरणीय असंतुलन और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव
पहाड़ों पर बर्फबारी केवल मौसम को प्रभावित नहीं करती, बल्कि यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर भी असर डालती है। बर्फबारी से पहाड़ों पर स्थित वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का जीवन प्रभावित होता है। अगर बर्फबारी कम हो या बंद हो जाए, तो इससे इन जीवों की जीवनशैली में बदलाव आ सकता है, जिससे उनके अस्तित्व पर भी खतरा पैदा हो सकता है। इसके अलावा, बर्फ से जल स्रोतों का रिचार्ज होने की प्रक्रिया भी बंद हो सकती है, जिससे नदियों, झीलों और जलाशयों का पानी सूख सकता है। इससे समूचे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ सकता है, जिससे पर्यावरणीय संकट पैदा हो सकता है।
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ऊर्जा संकट और बिजली की कमी
पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी से जलाशयों और नदियों में पानी की मात्रा बढ़ती है, जो हाइड्रो पावर प्लांट्स के लिए महत्वपूर्ण है। बर्फबारी की कमी के कारण इन जलाशयों में पानी की कमी हो सकती है, जिससे बिजली उत्पादन प्रभावित हो सकता है। इससे ऊर्जा संकट उत्पन्न हो सकता है, और कई क्षेत्रों में बिजली की कटौती हो सकती है। यह विकास कार्यों, उद्योगों और घरेलू जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
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पर्यटन उद्योग पर असर
पहाड़ों पर बर्फबारी का एक बड़ा असर पर्यटन उद्योग पर भी होता है। विशेष रूप से सर्दियों में बर्फबारी वाले क्षेत्रों में पर्यटन बढ़ता है, क्योंकि लोग स्कीइंग और अन्य बर्फीली गतिविधियों का आनंद लेते हैं। यदि बर्फबारी नहीं होती, तो ये पर्यटन स्थल लोगों के आकर्षण का केंद्र नहीं बन पाएंगे, और इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। कई लोग इन पर्यटन स्थलों से अपनी आजीविका कमाते हैं, और बर्फबारी की कमी से उनकी रोजी-रोटी भी प्रभावित हो सकती है।