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यकीन नहीं होता! सिर्फ 403 KM दूर है ISS, फिर भी पहुंचने में लगते हैं 28 घंटे? जानिए — अंतरिक्ष यात्रा का रहस्य

आईएसएस सिर्फ 403 किमी दूर, फिर भी Axiom-4 को लगेंगे 28 घंटे? गुरुत्वाकर्षण, गति और सटीक डॉकिंग की चुनौतियां बनाती हैं अंतरिक्ष यात्रा को जटिल। जानें भारत के पहले मानव मिशन, गगनयान और भविष्य के अंतरिक्ष लक्ष्यों पर इस मिशन का क्या प्रभाव होगा।

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Ajit Kumar Pandey
यकीन नहीं होता! सिर्फ 403 KM दूर है ISS, फिर भी पहुंचने में लगते हैं 28 घंटे? जानिए — अंतरिक्ष यात्रा का रहस्य | यंग भारत न्यूज

यकीन नहीं होता! सिर्फ 403 KM दूर है ISS, फिर भी पहुंचने में लगते हैं 28 घंटे? जानिए — अंतरिक्ष यात्रा का रहस्य | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । क्या आपने कभी सोचा है कि पृथ्वी से अंतरिक्ष में बने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की दूरी महज 403 किलोमीटर है, लेकिन फिर भी वहां पहुंचने में 28 घंटे से ज़्यादा का समय क्यों लगता है? यह दूरी दिल्ली से जयपुर जितनी भी नहीं, फिर भी सफर इतना लंबा क्यों? दरअसल, यह अंतरिक्ष यात्रा जितनी सीधी दिखती है, उतनी है नहीं। गुरुत्वाकर्षण से लेकर अत्यधिक गति और सटीक डॉकिंग तक, कई ऐसी चुनौतियां हैं जो इस छोटे से सफर को इतना लंबा और जटिल बना देती हैं। आइए जानते हैं कि अंतरिक्ष की इस रहस्यमयी यात्रा के पीछे क्या विज्ञान छिपा है और Axiom-4 मिशन भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में कैसे मील का पत्थर साबित होने वाला है।

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403 KM का सफर, 28 घंटे का इंतज़ार: आखिर क्यों?

आप सोच रहे होंगे कि जब अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पृथ्वी से सिर्फ 403 किलोमीटर ऊपर है, तो वहां पहुंचने में इतना लंबा समय क्यों लगता है? यह दूरी तो दिल्ली से आगरा जितनी भी नहीं है! लेकिन यहीं पर अंतरिक्ष यात्रा का पेचीदा विज्ञान सामने आता है। दरअसल, यह केवल दूरी का मामला नहीं है, बल्कि गुरुत्वाकर्षण, गति और सटीकता का एक जटिल खेल है।

हमारी पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल इतना शक्तिशाली है कि किसी भी चीज़ को इससे बाहर निकालने के लिए अत्यधिक गति और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। कल्पना कीजिए, किसी गेंद को इतनी तेज़ी से फेंकना कि वह कभी ज़मीन पर वापस न आए! अंतरिक्ष यान को भी पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बचने के लिए लगभग 27,800 किलोमीटर प्रति घंटे की अविश्वसनीय गति से यात्रा करनी पड़ती है। आईएसएस भी इसी गति से पृथ्वी का चक्कर लगाता है – हर 90 मिनट में एक चक्कर पूरा करता है।

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यान को सिर्फ गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलना ही नहीं होता, बल्कि उसे आईएसएस की कक्षा में सटीक रूप से प्रवेश भी करना होता है। यह एक चलती हुई ट्रेन में कूदने जैसा है, लेकिन कई हज़ार गुना ज़्यादा मुश्किल। यान को लगातार अपनी गति और दिशा को समायोजित करना होता है, ताकि वह आईएसएस के साथ तालमेल बिठा सके। इस पूरी प्रक्रिया में समय लगता है – बहुत ज़्यादा समय। और इस लंबे इंतज़ार के पीछे कई चुनौतियां और बारीकियाँ छिपी हैं।

अंतरिक्ष यात्रा: चुनौतियां ही चुनौतियां

अंतरिक्ष यात्रा कभी भी आसान नहीं रही है। यह सिर्फ रॉकेट लॉन्च करने और पहुंच जाने जैसा नहीं है। इसमें कई गंभीर चुनौतियां शामिल हैं जो अंतरिक्ष यात्रियों और मिशन की सफलता को सीधे प्रभावित करती हैं:

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1. यान के सिस्टम में खराबी : लॉन्च के दौरान या रास्ते में अंतरिक्ष यान के सिस्टम में खराबी आना एक बड़ी चिंता का विषय होता है। इंजन की खराबी, ईंधन का रिसाव, या संचार प्रणाली में समस्या जैसी घटनाएं मिशन को गंभीर रूप से खतरे में डाल सकती हैं। हर पुर्जे का सही काम करना बेहद ज़रूरी है।

2. सटीक नेविगेशन का अभाव : आईएसएस तक पहुंचने के लिए इंच-दर-इंच सटीक नेविगेशन की आवश्यकता होती है। यदि अंतरिक्ष यान सही दिशा में नहीं है या अपनी गति को नियंत्रित करने में विफल रहता है, तो वह अंतरिक्ष स्टेशन से चूक सकता है। यह एक चलती सुई में धागा डालने जैसा है, लेकिन लाखों किलोमीटर दूर!

3. अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव : अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की कमी (माइक्रोग्रैविटी) अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। इससे मांसपेशियों और हड्डियों में कमज़ोरी आ सकती है, और चक्कर आना या उल्टी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने वाले यात्रियों के लिए यह एक गंभीर चुनौती है।

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4. उच्च स्तर का विकिरण : अंतरिक्ष में उच्च स्तर का विकिरण होता है, जो अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष यान दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है। यह विकिरण सूर्य से आने वाले कणों और ब्रह्मांडीय किरणों के कारण होता है। यान को इस विकिरण से बचाव के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया जाता है।

5. अंतरिक्ष का कचरा : अंतरिक्ष में छोटे-छोटे मलबे, जिन्हें "अंतरिक्ष कचरा" कहा जाता है, बहुत तेज़ी से घूमते रहते हैं। ये टुकड़े यान से टकराकर गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। अंतरिक्ष एजेंसियां लगातार इस कचरे पर नज़र रखती हैं, लेकिन खतरा हमेशा बना रहता है।

आईएसएस: अंतरिक्ष का चलता-फिरता किला

अगर आप सोच रहे हैं कि आईएसएस क्या है, तो इसे धरती की बाहरी कक्षा में बना एक विशालकाय किला समझिए! यह मानव सभ्यता की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग उपलब्धियों में से एक है। इसकी कहानी 1984 में शुरू हुई, जब इसे बनाने की मंजूरी दी गई थी। 2 नवंबर 2000 को पहला दल आईएसएस के लिए रवाना हुआ था और तब से यह लगातार इंसानों का घर बना हुआ है।

आईएसएस को अंतरिक्ष में ही असेंबल किया गया है। इसके हर हिस्से को अलग-अलग प्रक्षेपित किया गया और फिर 41 अंतरिक्ष चहलकदमी (स्पेस वॉक) के ज़रिए उन्हें जोड़ा गया। पिछले 25 सालों में 270 से ज़्यादा अंतरिक्ष यात्री यहां आ चुके हैं।

यह 4,00,000 किलोग्राम से भी अधिक वज़न वाला है और इसका कुल क्षेत्रफल 2,247 वर्ग मीटर है। इसके सौर पैनलों और अन्य ढांचे की लंबाई 109 मीटर है, जो एक फुटबॉल मैदान से भी बड़ी है। सबसे ख़ास बात यह है कि यह एक जगह पर स्थिर नहीं है, बल्कि 27,800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की परिक्रमा करता रहता है, हर 90 मिनट में एक चक्कर पूरा करता है। यह वाकई एक चलता-फिरता अद्भुत वैज्ञानिक गढ़ है!

Axiom-4 और भारत का अंतरिक्ष सपना

Axiom-4 मिशन भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में एक नया अध्याय लिख रहा है। यह पहली बार है जब कोई भारतीय आईएसएस पहुंचेगा, और यह भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।

इस मिशन पर भारत ने अब तक करीब 548 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसमें भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु और उनके बैकअप ग्रुप कैप्टन प्रशांत नायर के प्रशिक्षण का खर्च भी शामिल है। यह निवेश सिर्फ एक मिशन के लिए नहीं है, बल्कि यह भारत के भविष्य के अंतरिक्ष लक्ष्यों के लिए एक मजबूत नींव तैयार कर रहा है।

यह मिशन भारत के गगनयान कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण अभ्यास की तरह है। गगनयान भारत का पहला मानव मिशन है, जिसे 2027 में लॉन्च करने का लक्ष्य है। Axiom-4 मिशन से मिलने वाला अनुभव और डेटा गगनयान की सफलता के लिए अमूल्य साबित होगा।

भारत के अंतरिक्ष के बड़े सपने यहीं खत्म नहीं होते। Axiom-4 मिशन भविष्य में भारत के चार बड़े लक्ष्यों को पूरा करने में मददगार होगा:

2027 में पहला मानव मिशन गगनयान भेजना: यह भारत का अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम है।

2035 तक अंतरिक्ष में अपना अंतरिक्ष केंद्र स्थापित करना: भारत भी अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों की तरह अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाना चाहता है।

2040 तक मानव चंद्रमा मिशन भेजना: भारत चंद्रमा पर मानव भेजने की तैयारी कर रहा है, जो इसकी बढ़ती अंतरिक्ष क्षमताओं का प्रमाण होगा।
यह सब दर्शाता है कि भारत अंतरिक्ष शक्ति के रूप में तेज़ी से उभर रहा है, और Axiom-4 मिशन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

Axiom-4 का सीधा प्रसारण: आज ही देखें इतिहास बनते हुए!

अगर आप इस ऐतिहासिक पल को अपनी आंखों से देखना चाहते हैं, तो आपके लिए अच्छी खबर है! नासा ने घोषणा की है कि अंतरिक्ष यान के आगमन का लाइव कवरेज आज, गुरुवार, 26 जून को भारतीय समयानुसार दोपहर 2:30 बजे नासा प्लस पर देखा जा सकेगा।

शुभांशु का यान अंतरिक्ष स्टेशन के हार्मोनी मॉड्यूल के अंतरिक्ष-मुखी पोर्ट पर भारतीय समयानुसार शाम 4:30 बजे स्वचालित रूप से डॉक करेगा। यह एक रोमांचक और सटीक प्रक्रिया होगी, जिसे आप घर बैठे देख सकते हैं। यह भारत के लिए गर्व का क्षण है, जब हमारा एक बहादुर बेटा अंतरिक्ष में इतिहास रच रहा है।

इस मिशन की हर अपडेट को देखना न भूलें और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की इस नई उड़ान का हिस्सा बनें!

क्या आप भी अंतरिक्ष यात्रा के इस अद्भुत सफर का हिस्सा बनना चाहते हैं? क्या आपको लगता है कि भारत अपने अंतरिक्ष लक्ष्यों को समय पर पूरा कर पाएगा? हमें कमेंट्स में ज़रूर बताएं!

क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी से आईएसएस की दूरी सिर्फ 403 किलोमीटर होने के बावजूद वहां पहुंचने में 28 घंटे से ज़्यादा का समय क्यों लगता है? गुरुत्वाकर्षण, अत्यधिक गति और जटिल डॉकिंग जैसी चुनौतियां इस सफर को लंबा बनाती हैं। Axiom-4 मिशन और भारत के अंतरिक्ष सपनों की पूरी कहानी जानें!

क्या आप भी अंतरिक्ष यात्रा के इस अद्भुत सफर का हिस्सा बनना चाहते हैं? क्या आपको लगता है कि भारत अपने अंतरिक्ष लक्ष्यों को समय पर पूरा कर पाएगा? हमें कमेंट्स में ज़रूर बताएं!

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