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Street dogs: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसकी हुई जीत?

संतुलित फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने न केवल आवारा कुत्तों के मुद्दे को व्यावहारिक बनाया है। यह भी दिखाया है कि उन्मादी तर्क किसी समाधान की ओर नहीं ले जाते। इस मामले में असली जीत तर्क और संयम की है।

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Shailendra Gautam
Stray Dogs Problem

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः आवारा कुत्तों के मसले पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने 15 दिनों के भीतर दो फैसले दिए। पहला फैसला आया तो राजनेताओं के साथ बालीवुड और पब्लिक की तरफ से तीखा विरोध आया। सीजेआई बीआर गवई को फैसले पर फिर से विचार के लिए मजबूर होना पड़ा। एक नई बेंच को ये केस सुपुर्द किया गया। तीन जजों की बेंच ने आज सुनवाई की और पिछले फैसले को संशोधित किया। लेकिन बड़ी सवाल ये है कि दो फैसलों के बाद किसकी जीत हुई?

पहले फैसले पर डालते हैं नजर

जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने 8 अगस्त को दिल्ली-एनसीआर के नगर निकायों को आदेश दिया कि सभी आवारा कुत्तों को आठ हफ्तों के भीतर इकट्ठा करके उनकी नसबंदी की जाए और उन्हें शेल्टर होम्स में रखा जाए। 28 जुलाई को जस्टिस पारदीवाला और महादेवन की बेंच ने टाइम्स ऑफ इंडिया के दिल्ली संस्करण में छपी एक खबर का स्वतः संज्ञान लिया। इसका शीर्षक था- आवारा कुत्तों से परेशान शहर, बच्चे चुका रहे कीमत। बेंच ने कहा कि खबर में बेहद परेशान करने वाले और चिंताजनक आंकड़े शामिल थे।

हालांकि, यह एक तथ्य है कि दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के काटने और रेबीज के मामलों में वृद्धि देखी गई है। कुत्तों की आबादी को मैनेज करने के लिए केंद्र सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2023 बनाए। हालांकि, जमीनी स्तर पर एबीसी नियमों का क्रियान्वयन पूरी तरह से विफल रहा।

एनसीआर में 25 हजार कुत्तों के काटने के मामले

दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की आबादी में भारी वृद्धि हुई है।  आवारा कुत्तों के हमलों में भी इसी अनुपात में वृद्धि देखी गई। इसी पृष्ठभूमि में टाप कोर्ट ने इस मामले को उठाया और फैसला सुनाया। दिल्ली में लगभग 8 लाख आवारा कुत्ते हैं। 2024 में लगभग 25 हजार और अकेले जनवरी 2025 में 3 हजार से ज्यादा कुत्तों के काटने के मामले सामने आए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच के 8 अगस्त के आदेश पर भारी हंगामा हुआ। आवारा कुत्तों के प्रेमियों और कार्यकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर कीं।

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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के विरोध में काफी लोगों ने आवाज उठाई। हालांकि ऐसे लोग भी थे जो फैसले की तारीफ कर रहे थे पर उनकी तादाद बेहद कम थी। लोगों ने सड़कों पर उतरकर इस आदेश की कड़ी निंदा की। दूसरी ओर, कुछ लोग कुत्तों को स्थायी रूप से हटाने की मांग कर रहे थे, हालांकि उनकी संख्या कम थी। इस कैटेगरी के लोगों ने आवारा कुत्तों पर नियंत्रण के इस कदम का मौन समर्थन किया।

अब नजर डालते हैं दूसरे फैसले पर

शुक्रवार को जस्टिस विक्रम नाथ, संदीप मेहता और एनवी अंजारिया की तीन सदस्यीय बेंच ने 8 अगस्त के फैसले में संशोधन किया। आवारा कुत्तों को शेल्टर होम्स में रखने के बजाय नए आदेश में उन्हें नसबंदी करके सड़कों पर वापस भेजने का निर्देश दिया गया है। सबसे बड़ी अदालत ने शुक्रवार को कहा कि केवल आक्रामक कुत्तों को ही आश्रय स्थलों में रखा जाना चाहिए।

फैसला आते ही कुछ कुत्ते प्रेमियों ने इसे जीत बताया। उन्होंने एक्स पर अपनी भावनाओं का इजहार करते हुए कुत्तों से हमदर्दी जताई। हालांकि, यह किसी भी पक्ष की पूरी तरह से जीत नहीं थी, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने संयम और मध्य मार्ग अपनाया है। उच्चतम न्यायालय के नए आदेश में सार्वजनिक स्थानों पर आवारा कुत्तों को खाना खिलाने पर रोक लगा दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कुत्तों को सार्वजनिक रूप से खाना खिलाने की अनुमति नहीं है। आवारा कुत्तों के लिए अलग से भोजन स्थल बनाए जाएंगे। सड़कों पर कुत्तों को खाना खिलाते पाए जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

सुप्रीम फैसले की 5 बड़ी बातें

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- नगर निकायों को नगर निगम वार्डों में भोजन क्षेत्र बनाने चाहिए। किसी भी हालत में आवारा कुत्तों को भोजन देने की अनुमति नहीं है। उल्लंघन करने पर उनके खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया।

- सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश को दिल्ली-एनसीआर तक सीमित नहीं रखा, बल्कि पूरे भारत में इसका दायरा बढ़ाते हुए सभी मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किए।

- अपने 8 अगस्त के आदेश के विपरीत, बड़ी बेंच ने टीकाकरण और नसबंदी के बाद कुत्तों को उसी क्षेत्र में छोड़ने का निर्देश दिया। हालांकि, शीर्ष अदालत ने रेबीज या आक्रामक व्यवहार वाले कुत्तों का टीकाकरण करने और उन्हें अलग आश्रय स्थलों में रखने का निर्देश दिया।

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- पशु प्रेमी कुत्तों को गोद लेने के लिए आवेदन कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी होगी कि कुत्ते सड़कों पर न लौटें।

- कोई भी व्यक्ति या संगठन अधिकारियों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा नहीं डाल सकता। बेंच ने आगे कहा कि 8 अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाले कुत्ता प्रेमियों और गैर सरकारी संगठनों को रजिस्ट्रार के पास 25 हजार रुपये और 2 लाख रुपये जमा करने होंगे।

वकील विवेक शर्मा कहते हैं- आदेश में 25,000 रुपये और 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश गैर सरकारी संगठनों और स्वत: संज्ञान मामले में हस्तक्षेप करने वालों के लिए है, आम लोगों के लिए नहीं। 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह बात अब समझ में आ गई है कि आवारा कुत्तों का नसबंदी और टीकाकरण ही एकमात्र समाधान है। न कि उन्हें इकट्ठा करके आश्रय स्थलों में रखना। आवारा कुत्तों को खाना खिलाने वाले भी समाज की मदद नहीं करते। इस संतुलित फैसले के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने न केवल आवारा कुत्तों के मुद्दे को व्यावहारिक बनाया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि उन्मादी तर्क किसी समाधान की ओर नहीं ले जाते। इस मामले में असली जीत तर्क और संयम की है।

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