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धर्मांतरण कानूनों पर Supreme Court का बड़ा आदेश, क्या है पूरा मामला? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । धर्मांतरण कानूनों को लेकर देश में जारी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों में लागू धर्मांतरण कानूनों पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संबंधित राज्य सरकारों से चार हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, हाल के वर्षों में कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और हरियाणा ने धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किए हैं। इन कानूनों का मकसद जबरन धर्मांतरण और 'लव जिहाद' जैसी घटनाओं पर लगाम लगाना है। लेकिन, इन कानूनों को लेकर लगातार विवाद बना हुआ है।
कई याचिकाकर्ताओं ने इन कानूनों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों खासकर धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन बताया है। इसी को लेकर यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। पीठ ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुना और इन कानूनों पर रोक लगाने की मांग पर विचार करने का फैसला किया।
अदालत ने इन कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर राज्य सरकारों से जवाब मांगा है।
The Supreme Court stated that it will consider a batch of pleas filed seeking a stay on Anti-conversion laws that have been enacted and enforced in various states.
— ANI (@ANI) September 16, 2025
A bench of CJI B.R. Gavai and K. Vinod Chandran sought the response of various State governments to pleas… pic.twitter.com/kEYFhhFqa1
सुप्रीम कोर्ट का कदम: क्यों है इतना अहम?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पहली बार है जब एक साथ इतने सारे धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर एक साथ सुनवाई हो रही है। अलग-अलग राज्यों में लागू होने के बावजूद इन कानूनों में कई समानताएं हैं।
जबरन धर्मांतरण की परिभाषा: इन कानूनों में बल, प्रलोभन या धोखाधड़ी से किए गए धर्मांतरण को अपराध माना गया है।
धर्मांतरण से पहले नोटिस: कुछ राज्यों में धर्मांतरण करने वालों को पहले प्रशासन को सूचित करना होता है।
सख्त सजा का प्रावधान: इन कानूनों का उल्लंघन करने पर कड़ी सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
हालांकि, आलोचकों का मानना है कि इन कानूनों का गलत इस्तेमाल भी हो सकता है। उनका तर्क है कि ये कानून प्रेम विवाहों को रोकने और धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में भी यही चिंताएं जताई गई हैं।
छह हफ्ते बाद होगी अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए छह हफ्तों का समय निर्धारित किया है। यह समय राज्य सरकारों को अपना पक्ष रखने और लिखित जवाब दाखिल करने के लिए दिया गया है।
क्या सुप्रीम कोर्ट इन कानूनों पर रोक लगाएगा? क्या इन कानूनों में बदलाव होंगे? या फिर अदालत इन्हें संवैधानिक रूप से सही ठहराएगी? इन सभी सवालों के जवाब अगले कुछ महीनों में साफ हो जाएंगे। इस मामले पर देश भर की नजरें टिकी हैं।
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