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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला— 'नसबंदी के बाद कुत्तों को छोड़ दें...' | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इसके मुताबिक, अब सिर्फ़ आक्रामक व्यवहार वाले और रेबीज से संक्रमित कुत्तों को ही शेल्टर होम में रखा जाएगा। बाकी कुत्तों को टीकाकरण और नसबंदी के बाद उसी इलाक़े में वापस छोड़ दिया जाएगा, जहां से उन्हें पकड़ा गया था। इस फ़ैसले का उद्देश्य कुत्तों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाना है, साथ ही सार्वजनिक सुरक्षा को भी सुनिश्चित करना है।
दिल्ली-एनसीआर के साथ पूरे देश में आवारा कुत्तों की समस्या लगातार बढ़ रही है। कुत्तों के हमलों से जुड़ी खबरें आए दिन सुर्खियां बनती हैं, जिससे लोग भयभीत हैं। इसी समस्या पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा आदेश दिया है। अब सिर्फ़ वही कुत्ते शेल्टर होम में रहेंगे, जो इंसानों के लिए ख़तरा साबित हो सकते हैं। इस फैसले को लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं। क्या इससे समस्या का समाधान होगा या मुश्किलें और बढ़ेंगी?
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की तीन जजों की बेंच ने आवारा कुत्तों को लेकर अपने 11 अगस्त के आदेश में बदलाव किया है। पहले कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर से आवारा कुत्तों को हटाकर शेल्टर होम में रखने का निर्देश दिया था। इस आदेश के बाद देश भर में कुत्तों के प्रेमियों और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था। उनका मानना था कि कुत्तों को उनके प्राकृतिक आवास से दूर करना ठीक नहीं है। अब कोर्ट ने इस विरोध को देखते हुए नए निर्देश दिए हैं, जो ज़्यादा संतुलित और मानवीय हैं।
मुख्य बदलाव: जिन्हें छोड़ा जाएगा, जिन्हें रखा जाएगा
किसे रखा जाएगा? केवल उन कुत्तों को रखा जाएगा, जो रेबीज से संक्रमित हैं या जिनका व्यवहार बहुत आक्रामक है।
किसे छोड़ा जाएगा? टीकाकरण और नसबंदी के बाद बाकी सभी कुत्तों को उसी इलाक़े में वापस छोड़ दिया जाएगा, जहां से उन्हें उठाया गया था।
खाने की व्यवस्था: अब सार्वजनिक जगहों पर कुत्तों को खाना खिलाना मना है। इसके लिए नगर निगम अलग से जगह बनाएगा, जहाँ लोग कुत्तों को खाना खिला सकते हैं।
इस फैसले के पीछे कोर्ट का तर्क यह है कि आवारा कुत्तों को एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करने से उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है। साथ ही, भोजन की तलाश में वे और भी आक्रामक हो सकते हैं। इसीलिए, कोर्ट ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है।
क्यों ज़रूरी था यह फ़ैसला?
यह फ़ैसला एक संतुलन बनाने की कोशिश है—एक तरफ़ पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की मांगें और दूसरी तरफ़ आम लोगों की सुरक्षा की ज़रूरत। पिछले कुछ सालों में कुत्तों के काटने की घटनाओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है। वहीं, पशु प्रेमियों का कहना है कि इसके लिए सिर्फ़ कुत्ते जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि इंसानों का व्यवहार भी एक बड़ा कारण है। कोर्ट का यह नया आदेश इस बात को मानता है कि कुत्तों को उनके प्राकृतिक इलाक़े में रहने देना ही सबसे सही तरीक़ा है। लेकिन, सुरक्षा को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि आक्रामक कुत्तों के लिए अलग नियम बनाए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में शामिल किया है, जिसका मतलब है कि यह फैसला पूरे देश पर लागू होगा। अब देखना यह है कि नगर निगम और सरकारें इस फैसले को कितनी प्रभावी ढंग से लागू करती हैं। क्या अलग से खाने के लिए जगहें बनेंगी? क्या टीकाकरण और नसबंदी का काम तेज़ी से हो पाएगा? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में मिलेंगे। यह निश्चित रूप से एक ऐसा फ़ैसला है जो मानव और जानवरों के बीच के रिश्तों को एक नई दिशा देगा।
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