फाइल फोटो।
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चार साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या के दोषी एक व्यक्ति को सुनाई गई मौत की सजा पर पुनर्विचार का आदेश दिया। ये आदेश वसंत संपत दुपारे बनाम भारत सरकार के मामले में तीन जजों की बेंच ने दिया।
फांसी की सजा को बर्खास्त कर फिर सुनवाई को कहा
अदालत ने दोषी की याचिका को स्वीकार कर लिया। फिर 3 मई, 2017 के अपने ही आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें वसंत संपत दुपारे को सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा गया था। साथ ही, कहा कि उसकी सजा तय करने के लिए नए सिरे से सुनवाई की जाएगी।
अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर आया फैसला
आज का यह आदेश दुपारे की अनुच्छेद 32 के तहत दायर एक याचिका पर पारित किया गया, जिसमें शीर्ष अदालत के पिछले फैसले को चुनौती दी गई थी। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मौत की सजा के मामलों में जब मौत की सजा देने के अनिवार्य दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया हो, तो अनुच्छेद 32 की याचिकाओं के माध्यम से अदालत के फैसले को फिर से खोला जा सकता है। वर्तमान मामले में सजा अब मनोज बनाम मध्य प्रदेश के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार तय की जाएगी, जिसमें सजा सुनाने से पहले परिस्थितियों पर विस्तृत विचार करने का आदेश दिया गया था।
सीजेआई तय करेंगे कि कौन सी बेंच करे सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इस अदालत की तरफ से 3 मई को सुनाई गई सजा को रद्द किया जाता है। सजा पर नए सिरे से सुनवाई के लिए सीजेआई को भेजा जाता है, ताकि मनोज सुप्रा के अनुसार सुनवाई की जा सके। रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि वह मामले को सीजेआी बीआर गवई के सामने रखे, जिससे किसी इसे किसी दूसरी बेंच को सौंपा जा सके। यह आदेश जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की बेंच ने पारित किया।
जानिए क्या था ये मामला
दुपारे ने अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर कर 2022 के मनोज फैसले को लागू करने और उसे मौत की सजा सुनाने से पहले उसके अपराध को कम करने वाले कारकों पर विचार करने की मांग की थी।
आज फैसला सुनाते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 32 उसे मृत्युदंड के उन मामलों को फिर से खोलने का अधिकार देता है जहां अपराध को कम करने वाली परिस्थितियों पर विचार करने के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया। कोर्ट ने आगाह किया कि अनुच्छेद 32 का विशेष दायरा समाप्त हो चुके मामलों को फिर से खोलने के लिए एक नियमित प्रक्रिया नहीं बन जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा- मामलों को फिर से खोलना केवल उन्हीं मामलों के लिए आरक्षित होगा जहां प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ हो। लेकिन ये उल्लंघन इतने गंभीर होने चाहिए कि अगर उन्हें ठीक नहीं किया गया तो वो अभियुक्त के जीवन के मूल अधिकारों को कमजोर कर देंगे।
supreme court, death penalty, article 32