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कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को Supreme राहत, कविता पोस्ट मामले में दर्ज FIR रद्द

कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ सोशल मीडिया पर कविता पोस्ट करने के मामले में दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया।

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Pratiksha Parashar
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Supreme Court
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क। 

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कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ सोशल मीडिया पर कविता पोस्ट करने के मामले में दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि "कविता, नाटक, फ़िल्में, स्टैंड-अप कॉमेडी, व्यंग्य और कला सहित साहित्य जीवन को और अधिक सार्थक बनाता है।"

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क्या है पूरा मामला?

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कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने इंस्टाग्राम पर "ऐ खून के प्यासे बात सुनो" शीर्षक वाली कविता पोस्ट की थी। जिसके बाद उनके खिलाफ 3 जनवरी को जामनगर पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनके इंस्टाग्राम पोस्ट में कविता ने अशांति भड़काई और सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ा। गुजरात हाई कोर्ट ने पहले एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था और प्रतापगढ़ी की आलोचना करते हुए कहा था कि वे एक सांसद के रूप में जिम्मेदारी से काम नहीं कर रहे हैं। प्रतापगढ़ी ने दावा किया कि कविता प्रसिद्ध कवि फैज अहमद फैज या हबीब जालिब द्वारा लिखी गई थी। इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। शीर्ष अदालत ने इस एफआईआर को खारिज कर दिया है। 

बोलने पर प्रतिबंध "उचित होना चाहिए, काल्पनिक नहीं"

जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने में गुजरात पुलिस की अति उत्साहीता की आलोचना करते हुए कहा कि कोई अपराध नहीं बनता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बोलने पर प्रतिबंध "उचित होना चाहिए, काल्पनिक नहीं"। पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19(2) अनुच्छेद 19(1) के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं कर सकता। कोर्ट कहा कि "अदालतों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सबसे आगे रहना चाहिए।" 

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कविता-कॉमेडी जीवन को सार्थक बनाती हैं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विचारों और दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत सम्मानजनक जीवन जीना असंभव है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में, अलग-अलग विचारों का मुकाबला भाषण से किया जाना चाहिए, न कि दमन से। कोर्ट ने कहा कि "कविता, नाटक, फ़िल्में, स्टैंड-अप कॉमेडी, व्यंग्य और कला सहित साहित्य जीवन को और अधिक सार्थक बनाता है।" कोर्ट की ये टिप्पणी स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा (comedian kunal kamra) से जुड़े एक बड़े राजनीतिक विवाद के बाद सामने आई है। 

supreme court comedian kunal kamra
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