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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से कहा कि वह किसी अधिकारी को जेल नहीं भेजना चाहता। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि सरकार पारिस्थितिक रूप से समृद्ध सारंडा वन क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने के संबंध में सात दिन के भीतर निर्णय ले। यह मामला पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा और सासंगदाबुरू वन क्षेत्रों को क्रमशः वन्यजीव अभयारण्य और संरक्षण रिजर्व के रूप में अधिसूचित करने के लंबित प्रस्ताव से संबंधित है।
झारखंड के मुख्य सचिव को किया था तलब
राज्य सरकार ने पहले अपने हलफनामे में कहा था कि उसने वन्यजीव अभयारण्य के रूप में 31,468.25 हेक्टेयर के मूल प्रस्ताव के मुकाबले 57,519.41 हेक्टेयर क्षेत्र को अधिसूचित करने का प्रस्ताव रखा है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 17 सितंबर को सारंडा वन क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने में देरी के लिए राज्य सरकार को फटकार लगाई थी। पीठ ने झारखंड के मुख्य सचिव अविनाश कुमार को आठ अक्टूबर को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर यह बताने को कहा था कि राज्य सरकार ने वन्यजीव अभयारण्य को अधिसूचित क्यों नहीं किया है।
कोर्ट ने कहा, हमें जेल भेजने में दिलचस्पी नहीं
झारखंड के शीर्ष अधिकारी बुधवार को कोर्ट में पेश हुए और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के माध्यम से दलीलें पेश कीं। सिब्बल ने एक सप्ताह का समय मांगते हुए कहा कि इस बीच निर्णय लिया जाएगा। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, या तो आप ऐसा करें या हम रिट जारी करके ऐसा करेंगे। उन्होंने साथ ही कहा कि वह राज्य सरकार को 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने का अवसर दे रहे हैं। पीठ ने कहा, हमें किसी को जेल भेजने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
सेल को लौह अयस्क खनन की इजाजत
इस बीच, पीठ ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) को राष्ट्रीय हित में अपनी मौजूदा खदानों से लौह अयस्क का खनन जारी रखने की अनुमति दे दी, जो प्रस्तावित वन्यजीव अभयारण्य के निकट हैं। सेल की ओर से पैरवी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कर रहे हैं। पीठ ने स्पष्ट किया कि सेल सहित अन्य कम्पनियों द्वारा खनन चालू खदानों से या उन खदानों से किया जा सकता है जिनके लिए पहले पट्टे दिए जा चुके हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सेल 'चंद्रयान' जैसे मिशनों और राष्ट्रीय महत्व की अन्य परियोजनाओं को इस्पात उपलब्ध कराता है और अधिकांश लौह अयस्क प्रस्तावित वन्यजीव अभयारण्य के पास की खदानों से आते हैं।
सरकार कोई नया पट्टा न जारी करे
पीठ ने राज्य और अन्य प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि वे इस क्षेत्र में खनन के लिए कोई नया पट्टा न दें। आरंभ में सिब्बल ने राज्य सरकार की स्थिति और वन्यजीव अभयारण्य को अधिसूचित करने में देरी के कारणों को स्पष्ट करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि वन्यजीव अभयारण्य घोषित किए जाने वाले कुल क्षेत्रफल के संबंध में भ्रम की स्थिति राज्य प्राधिकरण और भारतीय वन्यजीव संस्थान के बीच आंतरिक संवाद के कारण उत्पन्न हुई।
अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को
न्यायमित्र के रूप में पीठ की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने कहा कि राज्य ने 31,468.25 हेक्टेयर के मूल प्रस्ताव के विपरीत 57,519.41 हेक्टेयर भूमि को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने का कार्य किया है। पीठ ने कहा कि कम से कम 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने में कोई भ्रम या परेशानी नहीं है। पीठ मामले की अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को करेगी।