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निजी स्वतंत्रता की सुरक्षा अहम, लेकिन पीड़ितों की पीड़ा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पटना उच्च न्यायालय के मार्च 2024 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें हत्या के एक मामले में दो आरोपियों को अग्रिम जमानत दे दी गई थी। 

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Mukesh Pandit
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा भले ही महत्वपूर्ण है, लेकिन अदालतों को पीड़ितों की पीड़ा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पटना उच्च न्यायालय के मार्च 2024 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें हत्या के एक मामले में दो आरोपियों को अग्रिम जमानत दे दी गई थी। पीठ ने उच्च न्यायालय की ओर से मामले को निपटाने में की गई जल्दबाजी पर गंभीर चिंता भी जताई। 

हाई कोर्ट सीधे हस्तक्षेप से पहले अन्य उपायों प विचार करें

पीठ ने कहा, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023) की योजना जहां अग्रिम जमानत से जुड़ी अर्जियों पर विचार करने के लिए उच्च न्यायालय और सत्र अदालत को समवर्ती क्षेत्राधिकार प्रदान करती है, इस अदालत ने बार-बार टिप्पणी की है कि उच्च न्यायालय को खुद सीधे हस्तक्षेप करने से पहले हमेशा वैकल्पिक/समवर्ती उपाय को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उसने कहा कि यह रुख सभी हितधारकों के हितों को संतुलित करता है, जिसमें सबसे पहले पीड़ित पक्ष को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती देने का अवसर दिया जाता है। 

स्वतंत्र रूप से अपना विचार लागू करे

पीठ ने कहा कि यह रुख उच्च न्यायालय को सत्र अदालत द्वारा समवर्ती क्षेत्राधिकार में लागू किए गए न्यायिक परिप्रेक्ष्य का आकलन करने का अवसर भी प्रदान करता है, बजाय इसके कि वह पहली बार में ही स्वतंत्र रूप से अपना विचार लागू करे। उसने कहा कि उच्च न्यायालय शिकायतकर्ता को पक्षकार बनाए बिना सीधे अग्रिम जमानत देने का कोई कारण दर्ज करने में विफल रहा। पीठ ने 17 सितंबर के अपने आदेश में कहा, “व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन अदालतों को पीड़ितों की पीड़ा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। 

संतुलन बनाना होगा

आरोपियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के साथ-साथ पीड़ितों के दिलों में कथित अपराधियों के प्रति किसी भी तरह का डर न रहे, इसके लिए संतुलन बनाना होगा।” उसने कहा कि शिकायतकर्ता की पत्नी की हत्या दिनदहाड़े की गई। शीर्ष अदालत शिकायतकर्ता की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिसंबर 2023 में दर्ज एक प्राथमिकी में नामजद दो आरोपियों को अग्रिम जमानत देने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। पीठ ने आरोपियों को चार हफ्ते के भीतर आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत के लिए आवेदन करने का निर्देश दिया। Supreme Court India 2025 | court | Allahabad High Court | bombay high court | civil court

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