नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क | सुप्रीम कोर्ट ने उद्योगपति मुकेश अंबानी और उनके परिवार को दी गई ‘जेड प्लस’ सुरक्षा हटाने की मांग करने वाली याचिका को शुक्रवार को खारिज कर दिया। साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता विकास साहा को बार-बार इस विषय पर “तुच्छ” और “परेशान करने वाली” याचिकाएं दायर करने के लिए सख्त फटकार लगाई। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने साफ कहा कि न्याय प्रक्रिया पर दबाव डालने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। पीठ ने चेतावनी दी कि यदि विकास साहा भविष्य में इसी तरह की याचिकाएं फिर दायर करते हैं, तो उन पर जुर्माना लगाया जाएगा।
नया आवेदन दायर किया
दरअसल, साहा ने फरवरी 2023 में खारिज की गई एक पुरानी याचिका को लेकर स्पष्टीकरण मांगते हुए एक नया आवेदन दायर किया था। पिछली सुनवाई में अदालत ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि याचिकाकर्ता को इस विषय में कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मनमोहन ने याचिकाकर्ता के वकील से सख्त शब्दों में कहा, “न्यायालय को दबाव में लाने की कोशिश मत कीजिए। यह कोई सोने की खान नहीं है, जिसे कोई भी आकर लूट सकता है। चाहे कोई राजनीतिक व्यक्ति हो या उद्योगपति, अगर राज्य को खतरा महसूस होता है, तो वह सुरक्षा मुहैया कराएगा। ये फैसले केंद्र और राज्य सरकारें, सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर लेती हैं- न कि अदालत।”
सुप्रीम कोर्ट का क्षेत्राधिकार नहीं
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यह तय करना सुप्रीम कोर्ट का क्षेत्राधिकार नहीं है कि किस व्यक्ति को कितनी और कैसी सुरक्षा दी जाए। न्यायाधीशों ने पूछा, “खतरे की धारणा तय करने वाले आप कौन होते हैं? क्या कल को कुछ अनहोनी होती है तो आप जिम्मेदारी लेंगे? या न्यायालय लेगा?” इस फैसले के साथ ही अदालत ने एक बार फिर दोहराया कि सुरक्षा से जुड़े मामलों में न्यायपालिका का हस्तक्षेप सीमित है, और यह पूरी तरह कार्यपालिका व सुरक्षा एजेंसियों का दायित्व है।