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निशिकांत दुबे को सुप्रीम फटकार, पर सीजेआई ने बचा दी जान, समझिये कैसे

चीफ जस्टिस आफ इंडिया संजीव खन्ना को सिविल वार का जिम्मेदार ठहराने वाले बीजेपी सांसद को आज सुप्रीम कोर्ट ने तीखी फटकार लगाई। अदालत का रवैया बेहद तल्ख था लेकिन देखा जाए तो थोड़ी झड़प लगाकर ही सीजेआई ने निशिकांत दुबे की जान बचा दी।

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Shailendra Gautam
NISHIKANT DUBE WAQF BOARD JPC

निशिकांत दुबे ने सीजेआई पर किया था सीधा हमला

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गुरुवार को सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच ने निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ की गई टिप्पणी का संज्ञान लिया। सीजेआई ने तल्ख लहजे में कहा कि बीजेपी सांसद ने जो कुछ भी कहा वो न्यायपालिका की छवि पर कुठाराघात करने वाला था। बेंच ने दुबे की हेट स्पीच पर कड़ा संज्ञान लेकर कहा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को देश में धार्मिक तनातनी बढ़ने का जिम्मेदार बताया था तो सीजेआई पर सिविल वार भड़काने का आरोप जड़ा था।

सीजेआई ने माना कि दुबे ने जो कहा वो आपत्तिजनक पर अवमानना की श्रेणी में नहीं 

सीजेआई की बेंच ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि बीजेपी सांसद के बयान न्यायपालिका की गरिमा को चोट पहुंचाने वाला है। चाहे उनकी वजह से सुप्रीम कोर्ट में लंबित किसी मामले पर असर न पड़ता हो या पड़ा हो लेकिन फिर भी आम लोगों की नजरों में ये बयान न्यायपालिका की छवि पर कुठाराघात करने वाला था। बेंच का मानना था कि हेट स्पीच से सख्ती से निपटे जाने की जरूरत है।

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हालांकि इसके बाद सीजेआई की बेंच ने जो कहा वो निशिकांत दुबे की जान बचाने वाला रहा। उनका कहना था कि दुबे ने जो कुछ कहा वो Contempt of Courts Act, 1971 के तहत नहीं आता। उनकी हेट स्पीच एक्ट के सेक्शन 3 और 4 के तहत नहीं आती, क्योंकि फिलहाल देश में कोई सिविल वार नहीं चल रहा है। सीजेआई चाहते तो दुबे पर कानूनी कार्रवाई भी कर सकते थे।

एडवोकेट विशाल तिवारी ने की थी कार्रवाई की मांग

बेंच एडवोकेट विशाल तिवारी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने निशिकांत दुबे के खिलाफ Contempt of Courts Act, 1971 के तहत केस चलाने की मांग की थी। दुबे के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर और भी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में आईं लेकिन किसी को स्वीकृत नहीं किया गया। विशाल तिवारी ने अपनी याचिका में कानूनी पहलुओं का जिक्र करके दुबे को सजा देने की मांग की थी। हालांकि सीजेआई को उनकी डिमांड कानूनी नहीं लगी। बीजेपी सांसद ने एएनआई से बातचीत के दौरान ये आरोप सीजेआई और न्यायपालिका पर जड़े थे। वक्फ संशोधन एक्ट के कुछ प्रावधानों पर रोक के बाद दुबे ने सीजेआई को निशाना बनाया था।

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अवमानना को लेकर क्या कहता है 1971 का एक्ट

एक्ट में दो तरह की अवमानना, सिविल और क्रिमिनल का जिक्र है। सिविल अवमानना का मतलब कोर्ट के फैसले, डिक्री, आदेश, निर्देश, रिट और अन्य प्रक्रियाओं से जानबूझकर नाइत्तफाकी जताना है। ये तब भी लागू होता है जब अदालत को दी गई अंडरटेकिंग की अवहेलना की जाए। क्रिमिनल कंटेंप्ट में शब्दों (लिखित या बोले गए), या संकेत, या अन्य किसी तरीके के जरिये अदालत या जजों पर हमला शामिल है। 

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