/young-bharat-news/media/media_files/2025/05/05/V2OpA10aOtOQezUxIiaq.jpg)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच कौन ज्यादा ताकतवर है इस मसले पर टाप कोर्ट के एक जज ने कहा है कि वो संसद के बनाए कानूनों में दखल दे सकते हैं। भारतीय संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को ये ताकत दी है।
जस्टिस बोले- संविधान ने हमें संसद से ऊपर माना है
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने इस आलोचना को खारिज कर दिया कि निर्वाचित न किए गए जजों को कानून बनाने में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस तरह की धारणा का कोई कानूनी या संवैधानिक आधार नहीं है, क्योंकि संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को संसद में बने कानून की जांच करने और उसे रद्द करने का अधिकार दिया है। उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से इस आलोचना का कोई कानूनी या संवैधानिक आधार नहीं है कि जजों को लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा बनाए कानून में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को यह जांच करने का अधिकार दिया है कि संसद द्वारा बनाया गया कानून संवैधानिक आवश्यकता के अनुरूप है या नहीं। अगर कानून संविधान के मुताबिक नहीं है तो न्यायिक समीक्षा की शक्ति का इस्तेमाल करके सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया ऐसे कानून को रद्द कर सकता है।
अरुण जेटली का जिक्र करके कहा- वो गलत थे
जस्टिस उज्ज्वल भुइयां सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस अभय एस ओका के लिए महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल द्वारा आयोजित विदाई समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री अरुण जेटली की उस आलोचना का जिक्र किया जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को निरस्त करने की बात कही थी। यह एक्ट जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने वाला था। जेटली ने कहा था कि जजों के विपरीत संसद के सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं और जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं। सुप्रीम कोर्ट को जनता की इच्छा को निरस्त नहीं करना चाहिए था।
जज निडर और बेबाक होंगे तभी लोकतंत्र ठीक से चल पाएगा
भुइयां ने कहा कि एनजेएसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग किया था जो संविधान ने उसे प्रदान की है। न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाए रखने के लिए हमें बेजोड़ जजों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इतिहास में हमारे पास साहसी और स्वतंत्र जज रहे हैं और आगे भी रहेंगे। इससे हमारा संविधान जीवित रहता है और न्यायशास्त्र भी। दोनों दुरुस्त हों तो लोकतंत्र भी जीवित रहता है।
former Union Law Minister Jaitley, Arun Jaitley’s criticism, Supreme Court, National Judicial Appointments Commission (NJAC) Act, Collegium system, Supreme Court Justice Ujjal Bhuyan, Constitution