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"दिल की दूरी तब खत्म होगी जब हमारे नायकों को मान मिलेगा"- Mehbooba Mufti

पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने 13 जुलाई को श्रीनगर स्थित मज़ार-ए-शुहदा पर श्रद्धांजलि समारोह पर लगाए गए प्रतिबंधों की आलोचना करते हुए कहा कि जब तक केंद्र कश्मीर के नायकों को स्वीकार नहीं करता, तब तक "दिल की दूरी" खत्म नहीं हो सकती।

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Jyoti Yadav
mehbuba mufti
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क |जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने रविवार,13 जुलाई को केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि कश्मीर और भारत के बीच "दिल की दूरी" तब तक खत्म नहीं हो सकती जब तक केंद्र कश्मीर के नायकों को वह सम्मान नहीं देता, जो वे असल में हकदार हैं। यह बयान उस वक्त आया जब प्रशासन ने 13 जुलाई को श्रीनगर स्थित मजार-ए-शुहदा (शहीदों के कब्रिस्तान) पर वार्षिक श्रद्धांजलि समारोह पर प्रतिबंध लगा दिया। महबूबा मुफ़्ती ने आरोप लगाया कि लोगों को उनके घरों में बंद कर उन्हें कब्रिस्तान जाने से रोका गया, और इसे "शहीदों के अपमान" की संज्ञा दी।

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दिलों की दूरी' सचमुच खत्म होगी

उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि "जिस दिन आप हमारे नायकों को अपना मानेंगे, ठीक वैसे ही जैसे महात्मा गांधीसे लेकर भगत सिंह तक कश्मीरियों ने आपको अपनाया है, उस दिन 'दिलों की दूरी' सचमुच खत्म हो जाएगी।"महबूबा ने 13 जुलाई के शहीदों को "अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले नायक" बताया और कहा कि उन्हें याद करना हमारा अधिकार है, जिसे दबाया जा रहा है।

उमर अब्दुल्ला ने भी की कड़ी आलोचना

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नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने भी इस कार्रवाई को "घोर अलोकतांत्रिक" बताया और कहा कि "घरों को बाहर से बंद कर दिया गया है, पुलिस को जेलर की तरह तैनात किया गया है और श्रीनगर के प्रमुख पुल अवरुद्ध कर दिए गए हैं।"उमर ने 13 जुलाई की ऐतिहासिक घटना को "कश्मीर का जलियांवाला बाग" करार दिया और कहा कि"उन शहीदों को खलनायक के रूप में दिखाया जा रहा है सिर्फ इसलिए क्योंकि वे मुसलमान थे।"

नेताओं को नजरबंद किए जाने का आरोप

NC के मुख्य प्रवक्ता और ज़दीबल विधायक तनवीर सादिक ने दावा किया कि उन्हें और अन्य नेताओं को भी उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि "यह 13 जुलाई के शहीदों की स्मृति को दबाने और उनके बलिदान को भुलाने की कोशिश है। यह न सिर्फ असंवेदनशील है, बल्कि हमारे इतिहास की भी अनदेखी है।" बता दें, 13 जुलाई 1931 को डोगरा शासन के खिलाफ आवाज उठाने वाले 22 कश्मीरियों की गोलीबारी में मौत हो गई थी, जिन्हें आज भी शहीदों के रूप में याद किया जाता है। इस दिन को हर साल शहीदों की स्मृति में मनाया जाता रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसे लेकर सरकार और स्थानीय दलों के बीच टकराव बढ़ा है। 

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Mehbooba Mufti | cm umar abdulla

Mehbooba Mufti cm umar abdulla
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