नई दिल्ली, वाईबीएने नेटवर्क: अगर एक औरत ने मां की तरह पाला, तो क्या सिर्फ इसलिए उसे मां नहीं माना जाएगा क्योंकि उसने जन्म नहीं दिया?" सुप्रीम कोर्ट में जब यह सवाल उठा, तो एक संवेदनशील सामाजिक मुद्दा कानूनी दायरे से निकलकर भावनाओं की गहराइयों तक जा पहुंचा। मामला भारतीय वायुसेना की एक याचिका से जुड़ा है, जिसमें एक सौतेली मां को पारिवारिक पेंशन से वंचित कर दिया गया था। इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने वायुसेना के रवैये पर नाराजगी जताई और कहा कि "मां एक जैविक परिभाषा से कहीं बड़ी पहचान है।
वायुसेना से पूछे तीखे सवाल
पीठ ने तीखे शब्दों में पूछा, "यदि एक बच्चा पैदा होते ही अपनी मां को खो देता है और पिता दूसरी शादी कर लेते हैं, फिर वह सौतेली मां ही उसका पालन-पोषण करती है, तो वह मां मानी जाएगी या नहीं? इस पर जब वायुसेना के वकील ने पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि "सौतेली मां को पेंशन के दायरे से बाहर रखा गया है," तो जस्टिस सूर्यकांत ने दो टूक कहा, "नियम वही होते हैं, जिन्हें हम न्यायिक दृष्टिकोण से सही मानते हैं। ये कोई संविधानिक बाध्यता नहीं है।
अगली सुनवाई सात अगस्त को
उन्होंने कहा कि जब सामाजिक संरचना बदल रही है, जब बच्चे कई बार दत्तक या सौतेली मां के साये में पलते हैं तो सिर्फ तकनीकी कारणों से उन्हें पारिवारिक अधिकारों से कैसे वंचित किया जा सकता है?" कोर्ट ने पाया कि न तो वायुसेना और न ही याचिकाकर्ता के वकील इस सवाल का संतोषजनक उत्तर दे सके। इस पर बेंच ने कहा कि अधिवक्ताओं ने मामले में ठीक से तैयारी नहीं की है और उन्हें संबंधित अदालती आदेशों का गहराई से अध्ययन कर दोबारा प्रस्तुत होने का निर्देश दिया। अब इस संवेदनशील और अहम मामले की अगली सुनवाई 7 अगस्त 2025 को होगी।