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कोर्ट की डीएम को चेतावनी Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि राज्यपाल या राष्ट्रपति अगर तय समय सीमा के भीतर राज्यों की असेंबली की तरफ से पेश बिलों पर फैसला नहीं करते हैं तो उन्हें स्वीकृत माना जाएगा। तमिल नाडु सरकार ने इस फैसले की आड़ में 9 एक्ट नोटिफाई किए तो गवर्नर तो कुछ नहीं बोले पर बीजेपी का एक नेता जनहित याचिका लेकर मद्रास हाईकोर्ट पहुंच गया। उसकी रिट पर हाईकोर्ट ने स्टालिन सरकार के नोटिफिकेशन रोक दिए। स्टालिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाकर कहा कि आपके फैसले के बावजूद हमारे बिल रुक गए। हमारी दरख्वास्त को सुनकर हाईकोर्ट के स्टे को वैकेंट करें। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत राहत देने से इन्कार कर दिया। हालांकि याचिका को गर्मी की छुट्टी के बाद सुनने पर सहमति दे दी।
सिंघवी मांगते रहे स्टे पर नहीं माना सुप्रीम कोर्ट
आज सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु की ओर से पेश एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बावजूद रोक लगाई गई जिसमें कहा गया था कि विचाराधीन विधेयकों को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल आरएन रवि की सहमति मिल गई है। उस फैसले के बाद राज्य ने नौ अधिनियमों को औपचारिक रूप से अधिसूचित किया था। उन्होंने तर्क दिया कि हाईकोर्ट को कानूनों पर रोक नहीं लगानी चाहिए थी, खासकर किसी भी तरह की अर्जेंसी के अभाव में। विचाराधीन कानून राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल से राज्य सरकार को हस्तांतरित करते हैं। राज्य की दलील का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य के कानून यूजीसी के 2018 के नियम के साथ मेल नहीं खाते। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीएस नरसिम्हा और आर महादेवन की बेंच ने इस मामले को राज्य द्वारा पहले दायर की गई ट्रांसफर पटीशन के साथ जोड़ दिया, जिसमें ऐसे मामले को हाईकोर्ट से बाहर स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।
गर्मी की छुट्टियों के बाद सुनवाई पर सहमत हुआ सुप्रीम कोर्ट
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन जवाब दाखिल होने के बाद इस मुद्दे की जांच करने पर सहमत हो गया। अंतरिम राहत के लिए दायर की गई तमिलनाडु की याचिका पर कोई फैसला फिलहाल नहीं हुआ है। अदालत ने कहा कि रिट को गर्मियों की छुट्टियों के बाद सूचीबद्ध किया जाएगा। बेंच ने कहा कि सरकार अगर चाहे तो जल्दी सुनवाई के लिए भारत के चीफ जस्टिस के पास जा सकती है।
जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भड़की थीं मुर्मु, पूछे थे 14 सवाल
तमिलनाडु के साथ गैर बीजेपी शासित राज्यों में गवर्नर की मनमानी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई केस दाखिल हो चुके हैं। जहां बीजेपी सरकार नहीं हैं वहां केंद्र गवर्नर के जरिये महीनों तक सरकार के बिलों को लटकाकर रखा था। तमिलनाडु, केरल, पंजाब समेत कई गैर बीजेपी शासित सूबे सुप्रीम कोर्ट में केस दाखिल कर चुके हैं। उनका कहना है कि गवर्नर असेंबली से पारित बिलों को रोक लेते हैं। दोबारा भेजो तो प्रेजीडेंट को भेज देते हैं। ऐसे तो जनता की चुनी सरकारे काम ही नहीं कर पाएंगी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि गवर्नर तो दूर की चीज है राष्ट्रपति भी बिलों को तीन महीने से ज्यादा अपने पास नहीं रख सकतीं। टाप कोर्ट ने फैसले में कहा कि अगर तय समय सीमा के बाद भी बिल रोके जाते हैं तो उन्हें स्वीकृत माना जाएगा। हालांकि ये मसला उस समय तूल पकड़ गया जब राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने 14 सवालों के जरिये सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए पर टाप कोर्ट ने उन सवालों का जवाब नहीं दिया है। इससे लगता है कि वो अपने फैसले पर फिर से विचार नहीं करने जा रहा।
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