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प्रतीकात्मक चित्र।
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमा पर इन दिनों एक अजीब सन्नाटा पसरा है, जिसके पीछे है 'SIR' स्पेशल आइडेंटिटी रजिस्ट्रेशन का अनजाना खौफ। पिछले दो हफ्तों में मालदा, मुर्शिदाबाद और 24 परगना जैसे सीमावर्ती जिलों से लगभग 26000 बांग्लादेशी अवैध प्रवासी अचानक 'गायब' हो गए हैं। डिटेंशन और गिरफ्तारी के डर ने उन्हें वापस सीमा पार करने पर मजबूर कर दिया है। बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों में 'SIR' का खौफ - दो हफ्तों में क्यों खाली हो गए गांव?
मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर और दक्षिण 24 परगना- ये वे जिले हैं जो भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित हैं और ऐतिहासिक रूप से अवैध घुसपैठ का केंद्र रहे हैं। लेकिन पिछले दो सप्ताह में यहां जो कुछ हुआ है, वह अभूतपूर्व है। यह किसी सरकारी आदेश या बड़े पुलिस ऑपरेशन का नतीजा नहीं, बल्कि सिर्फ एक अफवाह और उस अफवाह से उपजे 'खौफ' का परिणाम है। पश्चिम बंगाल की सीमा से लगे इलाकों में रहने वाले बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों में 'स्पेशल आइडेंटिटी रजिस्ट्रेशन' SIR की संभावित शुरुआत की चर्चाएं जंगल की आग की तरह फैलीं।
इन चर्चाओं ने साल 2019 के NRC राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और CAA नागरिकता संशोधन अधिनियम के डर को फिर से हवा दे दी। नतीजा यह हुआ कि बिना किसी औपचारिक डिपोर्टेशन आदेश के, लगभग 26000 लोग अचानक अपने घर, काम और बच्चों के स्कूलों को छोड़कर वापस बांग्लादेश की ओर लौट गए। यह एक 'सेल्फ-डिपोर्टेशन' की स्थिति है, जिसने पूरे सीमा क्षेत्र की जनसांख्यिकी को हिलाकर रख दिया है।
26000 लोग 'गायब' पलायन का भयावह आंकड़ा
सीमा सुरक्षा बल BSF और स्थानीय पुलिस सूत्रों के अनुसार, सीमावर्ती इलाकों से लोगों के गायब होने का सिलसिला पिछले दो हफ्तों में अप्रत्याशित रूप से तेज हुआ है। मालदा सेक्टर BSF अधिकारियों ने खुलासा किया कि केवल मालदा सेक्टर से ही 8000 से 9000 लोगों के सीमा पार करने का अनुमान है।
सामूहिक पलायन स्थानीय प्रशासन के आकलन के अनुसार, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, मालदा और मुर्शिदाबाद जिलों को मिलाकर यह आंकड़ा 26000 के आसपास पहुंचता है।
सन्नाटा पसरा: हकीमपुर पोस्ट, चपईनवाबगंज, और सीमा से लगे कई गांवों में अब केवल खाली मकान और झुग्गियां ही बची हैं।
सबसे चौंकाने वाला असर स्कूलों पर पड़ा है। मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तर 24 परगना के सीमावर्ती स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति अचानक 50 परसेंट से 70% तक घट गई है।
“मुझे लगा कि यह केवल स्कूल खुलने के बाद का बहाना है, लेकिन जब मैंने देखा कि एक ही दिन में मेरे स्कूल के 40 से अधिक छात्र अनुपस्थित हैं, तो मुझे पता चला कि कुछ गंभीर हो रहा है। उनके माता-पिता काम पर भी नहीं आ रहे हैं।” - स्थानीय सरकारी स्कूल के शिक्षक, मुर्शिदाबाद
SIR क्या है? जिसने खौफ पैदा किया बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों में
मुख्य कारण 'SIR' की चर्चा है। हालांकि, केंद्र या राज्य सरकार की ओर से 'SIR' स्पेशल आइडेंटिटी रजिस्ट्रेशन नाम से कोई औपचारिक योजना या नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ है। लेकिन, एनआरसी और नागरिकता सत्यापन प्रक्रियाओं के पृष्ठभूमि में, किसी भी नए 'रजिस्ट्रेशन' या 'वेरिफिकेशन' की खबर, अवैध प्रवासियों के बीच पहचान पत्र की कमी या दस्तावेजों में असंगति के पकड़े जाने के डर को बढ़ा देती है।
खौफ के मुख्य कारण कागजात की कमी: अधिकांश प्रवासियों के पास भारतीय नागरिकता साबित करने वाले वैध दस्तावेज नहीं हैं।
फर्जी दस्तावेज: कुछ प्रवासियों ने बिचौलियों के माध्यम से 'नकली' आधार कार्ड या राशन कार्ड बनवा लिए हैं, जिन्हें अब वे सत्यापन में पकड़े जाने के डर से छोड़ रहे हैं।
डिटेंशन कैंप का डर: सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स में यह संदेश तेजी से फैला कि SIR के तहत पकड़े जाने पर सीधा डिटेंशन कैंप भेजा जाएगा, जिससे वे वापस बांग्लादेश जाना ही सुरक्षित विकल्प मान रहे हैं।
यह है पलायन की असली कहानी
यह पलायन केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि यह उन हजारों परिवारों की कहानी है, जिन्होंने बेहतर जीवन की तलाश में सीमा पार की थी, और अब खौफ के चलते अपनी स्थापित जिंदगी को छोड़कर जा रहे हैं। कुछ प्रवासियों ने सीमा पार करते समय स्थानीय मीडिया से बातचीत में अपनी मजबूरी बताई "हमारे पास कागज नहीं हैं।
अगर SIR शुरू हुआ तो पुलिस पकड़ लेगी और हम जेल जाएंगे। बच्चों का क्या होगा? इससे बेहतर है कि हम अपने वतन लौट जाएं, भले ही वहां गरीबी हो।" - नाम न छापने की शर्त पर एक लौटता प्रवासी, मालदा उनके लिए, भारत में अस्थायी और जोखिम भरी ज़िंदगी जीने से बेहतर है, अपने मूल देश में वापस जाकर सुरक्षित महसूस करना। इस पलायन में मजदूर, छोटे दुकानदार और दिहाड़ी कामगार शामिल हैं, जिन्होंने बंगाल की स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
बंगाल बॉर्डर की जनसांख्यिकी पर असर
दक्षिण एशिया मामलों के विश्लेषक डॉ. असीम मक्खन इस घटना को 'जनसांख्यिकीय बदलाव की स्वतःस्फूर्त प्रक्रिया' मानते हैं।
अस्थायी बदलाव: अगर यह प्रवाह कुछ हफ्तों तक जारी रहता है, तो सीमावर्ती कस्बों और गांवों की जनसांख्यिकीय संरचना में एक बड़ा और अचानक बदलाव आ सकता है।
अर्थव्यवस्था पर असर: इन क्षेत्रों की स्थानीय अर्थव्यवस्था दिहाड़ी मजदूरों पर बहुत निर्भर करती है। उनका अचानक गायब होना कृषि, निर्माण और छोटे व्यापारों को सीधे प्रभावित करेगा, जिससे श्रम की कमी हो सकती है।
सुरक्षा का प्रश्न: बड़े पैमाने पर, अनौपचारिक सीमा पार आवाजाही हमेशा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता का विषय होती है, क्योंकि इसमें अवैध गतिविधियों की संभावना भी बनी रहती है।
सीमा पार की गतिविधि और BSF का रुख: BSF के अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि उनकी ओर से कोई बड़ी कार्रवाई या 'राउंड-अप' नहीं किया जा रहा है। "हम सीमा पर अवैध आवाजाही को रोकने के लिए सतर्क हैं, लेकिन इस बार का पलायन खुद प्रवासियों द्वारा प्रेरित है। कोई औपचारिक डिपोर्टेशन आदेश नहीं है। वे अफवाहों के डर से खुद ही सीमा पार कर रहे हैं।"
यह स्थिति दर्शाती है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में अफवाहों की ताकत, किसी भी सरकारी आदेश से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली हो सकती है, खासकर जब बात नागरिकता और पहचान से जुड़ी हो।
अनिश्चित भविष्य का सवाल: पश्चिम बंगाल से 26000 लोगों का दो हफ्तों में अचानक 'गायब' हो जाना, नागरिकता, अवैध प्रवास और सीमा सुरक्षा के एक जटिल गठजोड़ को उजागर करता है। SIR की अफवाह भले ही निराधार हो, लेकिन इसने एक ऐसा डर पैदा किया है जिसने हजारों लोगों को उनके जीवन और भविष्य पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है।
सवाल यह है कि क्या यह पलायन रुकने वाला है, और सीमावर्ती गांवों में आई यह 'जनसांख्यिकीय शून्य' स्थानीय समाज और अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करेगा?
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