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संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना से सुरक्षा परिषद सुधार तक : UN में कहां है INDIA? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । आज हम बात करेंगे संयुक्त राष्ट्र संघ की। यह दुनिया का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय संगठन है— जो शांति, सुरक्षा और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ यानि यूएन की स्थापना की कहानी द्वितीय विश्व युद्ध की राख से निकली है? संयुक्त राष्ट संघ में सुरक्षा परिषद (UNSC) के अस्थाई और स्थाई सदस्यों की भूमिका क्या होती है? 5 स्थाई सदस्यों के चयन और नए सदस्य बनने की प्रक्रिया व भारत की स्थाई सदस्यता की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
यह न्यूज एक्सप्लेनर आपको यूएनएससी सुधार के पूरे टॉपिक को समझाने के लिए तैयार किया गया है, जहां हम देखेंगे कि कौन किसके समर्थन में है और क्या भारत कभी स्थाई सदस्य बन सकता है?
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की कहानी द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के अंत से जुड़ी एक गाथा है। द्वितीय युद्ध ने दुनिया को तबाह कर दिया था, जिसमें करोड़ों लोग मारे गए और अर्थव्यवस्थाएं चरमरा गईं। लीग ऑफ नेशंस, जो प्रथम विश्व युद्ध के बाद बना था असफल साबित हुआ क्योंकि इसमें बड़े देशों की भागीदारी कम थी और वीटो जैसी शक्तियां नहीं थीं। इसलिए, सहयोगी देशों ने एक नई अंतरराष्ट्रीय संस्था बनाने का फैसला किया।
साल 1941 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने अटलांटिक चार्टर जारी किया, जिसमें शांति और सुरक्षा की बात की गई। साल 1942 में 26 देशों ने 'डिक्लेरेशन बाय यूनाइटेड नेशंस' पर हस्ताक्षर किए जो यूएन का आधार बना।
साल 1943 में मॉस्को और तेहरान सम्मेलनों में यूएन की रूपरेखा बनी। साल 1944 में डंबर्टन ओक्स सम्मेलन में चार्टर का मसौदा तैयार हुआ जहां अमेरिका, ब्रिटेन, सोवियत संघ और चीन ने चर्चा की। अंत में साल 1945 में सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में 50 देशों के प्रतिनिधियों ने यूएन चार्टर पर हस्ताक्षर किए। 26 जून 1945 को चार्टर पर हस्ताक्षर हुए और 24 अक्टूबर 1945 को इसे आधिकारिक रूप से अपनाया गया। जब सभी स्थाई सदस्यों ने इसे मंजूर किया।
यूएन का मुख्यालय न्यूयॉर्क में है और इसका उद्देश्य युद्ध रोकना, मानवाधिकारों की रक्षा करना और आर्थिक विकास है। आज यूएन के 193 सदस्य देश हैं और यह वैश्विक मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी पर काम करता है। लेकिन, यूएन की असली शक्ति सुरक्षा परिषद में है जो शांति बनाए रखने का जिम्मा संभालती है।
यूएनएससी के अस्थाई सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) यूएन का सबसे शक्तिशाली अंग है, जिसमें कुल 15 सदस्य होते हैं। इनमें 5 स्थाई सदस्य और 10 अस्थाई (नॉन-पर्मानेंट) सदस्य शामिल हैं।
अस्थाई सदस्यों का चुनाव यूएन जनरल असेंबली (यूएनजीए) द्वारा हर साल किया जाता है, और वे दो साल के लिए चुने जाते हैं। चुनाव में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का ध्यान रखा जाता है: अफ्रीका से 3, एशिया से 2, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन से 2, पूर्वी यूरोप से 1, और पश्चिमी यूरोप व अन्य से 2। वर्तमान में (2025 तक), अस्थाई सदस्यों में अल्जीरिया, सिएरा लियोन, मोजांबिक, दक्षिण कोरिया, जापान, स्लोवेनिया, गुयाना, इक्वाडोर आदि शामिल हैं। इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि यूएनएससी के फैसलों के लिए कम से कम 9 वोटों की जरूरत होती है।
अस्थाई सदस्य शांति मिशनों, प्रतिबंधों और संघर्ष समाधान में भाग लेते हैं। वे स्थाई सदस्यों के फैसलों को संतुलित करते हैं और विकासशील देशों की आवाज उठाते हैं। हालांकि, उनके पास वीटो पावर नहीं है, इसलिए वे स्थाई सदस्यों की तरह फैसलों को रोक नहीं सकते।
अस्थाई सदस्य बनना देशों के लिए वैश्विक प्रभाव बढ़ाने का मौका है, जैसे भारत ने 8 बार (अंतिम 2021-2022) यह भूमिका निभाई है।
5 स्थाई सदस्य: क्यों चुने गए और उनकी भूमिका यूएनएससी के 5 स्थाई सदस्य (पी5) हैं: संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए), रूस (पूर्व में सोवियत संघ), ब्रिटेन, फ्रांस और चीन।
ये द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता देश हैं, जिन्होंने युद्ध में प्रमुख भूमिका निभाई। 1945 में, इन देशों की सैन्य शक्ति सबसे मजबूत थी, इसलिए इन्हें स्थाई सदस्य बनाया गया ताकि वे वैश्विक शांति की जिम्मेदारी संभाल सकें।
यूएन चार्टर के अनुच्छेद 27 के तहत, इनके पास वीटो पावर है यानी कोई भी फैसला अगर एक भी स्थाई सदस्य वीटो कर दे, तो वह रद्द हो जाता है। इनकी भूमिका वैश्विक सुरक्षा बनाए रखना है। वे सैन्य कार्रवाई मंजूर कर सकते हैं, प्रतिबंध लगा सकते हैं और शांति मिशन भेज सकते हैं।
उदाहरण के लिए, यूएसए ने इराक युद्ध में भूमिका निभाई, रूस यूक्रेन मुद्दे पर वीटो करता है, चीन एशिया में प्रभाव बढ़ाता है, जबकि ब्रिटेन और फ्रांस यूरोपीय हितों की रक्षा करते हैं। लेकिन आलोचना यह है कि पी5 1945 की दुनिया को प्रतिबिंबित करते हैं, न कि 2025 की, जहां भारत, ब्राजील जैसे उभरते देश हैं।
नए स्थाई सदस्य कैसे बन सकते हैं: प्रक्रिया और चुनौतियां
यूएन चार्टर में नए स्थाई सदस्य बनाने की सीधी प्रक्रिया नहीं है, क्योंकि मूल रूप से पी5 को ही स्थाई रखा गया था। नए सदस्य बनाने के लिए चार्टर में संशोधन जरूरी है, जो यूएनजीए में दो-तिहाई बहुमत (कम से कम 129 वोट) से पास होना चाहिए। फिर, सभी पी5 सदस्यों की मंजूरी और सदस्य देशों के दो-तिहाई की रेटिफिकेशन जरूरी है।
यह प्रक्रिया जटिल है, क्योंकि कोई भी पी5 सदस्य वीटो कर सकता है। सुधार प्रस्तावों में जी4 (भारत, ब्राजील, जर्मनी, जापान) नए स्थाई सदस्यों की मांग करते हैं, जबकि कॉफी क्लब (यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस) इसका विरोध करता है और अस्थाई सदस्य बढ़ाने का सुझाव देता है। सुधार के लिए इंटरगवर्नमेंटल नेगोशिएशंस (आईजीएन) चल रहे हैं, लेकिन प्रगति धीमी है।
क्या भारत कभी स्थाई सदस्य बनेगा: समर्थन, विरोध और संभावनाएं
भारत यूएनएससी में स्थाई सदस्यता की दावेदारी कर रहा है, क्योंकि वह दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, आर्थिक महाशक्ति है और शांति मिशनों में बड़ा योगदान देता है। भारत ने 2028-2029 के लिए अस्थाई सदस्यता की बोली लगाई है, लेकिन स्थाई सीट के लिए जी4 का हिस्सा है।
यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भारत को 'पिवोटल वॉयस' कहा और सुधार की वकालत की।
समर्थन: अमेरिका ने भारत की बोली का समर्थन किया और टेक्स्ट-बेस्ड नेगोशिएशंस की मांग की। पनामा, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस भी समर्थन करते हैं।
ग्लोबल साउथ देश जैसे अफ्रीकी राष्ट्र भारत के पक्ष में हैं। 80वीं यूएनजीए में कई नेताओं ने भारत की बोली का समर्थन किया।
विरोध: चीन भारत और जापान की सदस्यता का विरोध करता है, क्योंकि क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता है। कॉफी क्लब (इटली, पाकिस्तान, मैक्सिको, मिस्र आदि) स्थाई सीटों के विस्तार का विरोध करता है, क्योंकि वे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी हैं।
चुनौतियां: भू-राजनीति, मानवाधिकार रिकॉर्ड और पी5 की अनिच्छा। विशेषज्ञों का कहना है कि जल्द सदस्यता मिलना मुश्किल है, लेकिन भारत की बढ़ती भूमिका से संभावनाएं हैं।
यूएन सुधार की जरूरत और भविष्य
यूएन 1945 की दुनिया के लिए बना था, लेकिन 2025 में इसे सुधार की जरूरत है। भारत जैसी उभरती शक्तियों को शामिल करने से यूएनएससी अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनेगा।
हालांकि, पी5 की वीटो और विरोधी गुट चुनौतियां हैं, लेकिन वैश्विक दबाव से बदलाव संभव है। भारत की स्थाई सदस्यता न केवल उसके लिए बल्कि विकासशील दुनिया के लिए जीत होगी।
UN की स्थापना से सुरक्षा परिषद सुधार तक में भारत कहां? पर क्या कहती है देशी विदेशी मीडिया
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय भारत उपनिवेश था, पर आज यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र और उभरती शक्ति है। वैश्विक राजनीति के जानकार मानते हैं कि भारत की भूमिका UN में लगातार बढ़ी है, लेकिन सुरक्षा परिषद सुधार ही असली अगला कदम है।
वरिष्ठ पत्रकार राखी गुप्ता कहती हैं कि भारत ने शांति अभियानों में सक्रिय भागीदारी और विकासशील देशों की आवाज़ उठाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। परमाणु क्षमता, आर्थिक वृद्धि और क्षेत्रीय स्थिरता की ज़िम्मेदारी उसे स्थायी सदस्यता का हकदार बनाती है, मगर वीटो शक्तियों के टकराव से राह कठिन है।
वरिष्ठ पत्रकार रईस अहमद का मत है कि भारत विश्वसनीय साझेदार साबित हुआ है, लेकिन परिषद की स्थायी सदस्यता से वंचित रहना वैश्विक असमानता को दर्शाता है। सुधार की धीमी प्रक्रिया को देखते हुए भारत को अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के देशों के साथ मिलकर दबाव बढ़ाना होगा।
दैनिक कान्तिपुर (नेपाल) के असिस्टेंट एडिटर दिग्विजय पाण्डेय मानते हैं कि भारत की दावेदारी वाजिब है, किंतु उसे पड़ोसी देशों का भरोसा और वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व मजबूत करना चाहिए। उनका कहना है कि स्थायी सदस्यता सिर्फ शक्ति का नहीं, बल्कि वैश्विक स्वीकार्यता का सवाल है। इस तरह, भारत की भूमिका न केवल इतिहास का हिस्सा है बल्कि भविष्य के वैश्विक संतुलन की कुंजी भी है।
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संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय भारत स्वतंत्र नहीं था, परंतु आज यह विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला लोकतंत्र है। UN में भारत की भूमिका शांति सैनिक अभियानों और विकासशील देशों की आवाज़ उठाने में अहम रही है। सुरक्षा परिषद सुधार पर भारत का दावा मजबूत है—इसके पास परमाणु क्षमता, वैश्विक अर्थव्यवस्था में बढ़ती हिस्सेदारी और क्षेत्रीय स्थिरता की ज़िम्मेदारी है। फिर भी स्थायी सदस्यता का रास्ता जटिल है क्योंकि स्थायी सदस्य देशों के हित टकराते हैं। भारत को चाहिए कि वह अपनी कूटनीतिक शक्ति, साझेदारियों और बहुपक्षीय मंचों का उपयोग कर दबाव बनाए। -राखी गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार दिल्ली
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भारत ने UN में शुरू से ही सक्रिय और ज़िम्मेदार सदस्य का परिचय दिया है। शांति स्थापना अभियानों में भारत के सैनिकों ने बलिदान दिया, जिससे उसे "विश्वसनीय साझेदार" की छवि मिली। लेकिन सवाल यह है कि इतनी बड़ी भूमिका के बावजूद भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य क्यों नहीं है? इसका जवाब है—भू-राजनीतिक समीकरण और वीटो शक्तियों की राजनीति। सुधार प्रक्रिया वर्षों से ठहरी हुई है। भारत को अब केवल प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, बल्कि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के देशों को साथ लेकर व्यापक दबाव समूह तैयार करना चाहिए, ताकि सुरक्षा परिषद का ढांचा 21वीं सदी के संतुलन को दर्शाए।
-रईस अहमद, वरिष्ठ पत्रकार दिल्ली
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भारत दक्षिण एशिया का सबसे प्रभावशाली देश है और संयुक्त राष्ट्र में इसकी उपस्थिति अनदेखी नहीं की जा सकती। नेपाल सहित पड़ोसी देश भारत को क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग का केंद्र मानते हैं। सुरक्षा परिषद सुधार की बहस में भारत का पक्ष वाजिब है, क्योंकि मौजूदा ढांचा द्वितीय विश्व युद्ध की शक्ति-संरचना पर आधारित है। लेकिन स्थायी सदस्यता केवल शक्ति का नहीं, बल्कि वैश्विक स्वीकार्यता का सवाल है। भारत को पड़ोसी देशों का विश्वास मज़बूत करना होगा और वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व करना होगा। तभी उसकी दावेदारी और भी न्यायसंगत और अटूट नज़र आएगी।
-दिग्विजय पाण्डेय (असिस्टेंट एडिटर, दैनिक कान्तिपुर, नेपाल)
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