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ड्रैगन पर बरसता US का प्रेम - India पर दबाव - जानें क्या है Trump का टैरिफ वार?

ट्रंप की रूस से तेल खरीद पर दोहरी नीति ने भू-राजनीति में हलचल मचा दी है। जहां भारत पर 50% टैरिफ लगाने की धमकी, वहीं चीन को छूट मिल रही है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने इसे वैश्विक तेल बाज़ार की स्थिरता से जोड़ा है।

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Ajit Kumar Pandey
ड्रैगन पर बरसता US का प्रेम - India पर टैरिफ का दबाव - जानें क्या है Trump का टैरिफ वार? | यंग भारत न्यूज

ड्रैगन पर बरसता US का प्रेम - India पर टैरिफ का दबाव - जानें क्या है Trump का टैरिफ वार? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह रूख पूरी दुनिया को हैरान कर रहा है। रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर एक तरफ भारत पर टैरिफ का दबाव बनाया जा रहा है जबकि वहीं चीन पर ट्रंप की मेहरबानी सवालों के घेरे में है।

इस नए टैरिफ वार ने एक बार फिर अमेरिका की नीयत और विश्वसनीयता पर दुनिया का नजरिया बदल रहा है। इस दुविधा को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि अब अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति में एक नया अध्याय खोल दिया है। सवाल उठता है कि क्या यह यह ट्रंप की नई कूटनीति है या फिर उनका 'अमेरिका फर्स्ट' का सिद्धांत बदल रहा है। 

दरअसल, जब बात रूस से तेल खरीदने की आती है, तो अमेरिका ने हमेशा अपने सहयोगी देशों पर दबाव बनाया है। लेकिन, डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में यह नीति कुछ अलग ही दिख रही है। भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए पहले 25% और फिर 50% का टैरिफ झेलना पड़ा। ट्रंप का दावा है कि इस दबाव से रूस को उसका दूसरा सबसे बड़ा ग्राहक खोना पड़ा है।

लेकिन, चीन के मामले में कहानी बिलकुल अलग है। चीन लगातार रूस से तेल का आयात कर रहा है, लेकिन उस पर किसी तरह की सख्त कार्रवाई नहीं की गई। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इस पर सफाई दी है कि चीन पर टैरिफ लगाने से वैश्विक तेल बाज़ार पर बुरा असर पड़ेगा, जिससे तेल की कीमतें बढ़ेंगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह तर्क भारत पर लागू नहीं होता?

अमेरिका की 'कूटनीतिक चाल' का सच क्या है?

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अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो का बयान इस पूरे मामले को एक नया आयाम देता है। उन्होंने कहा कि यूरोप के कई देश भी चीन और भारत पर 100% टैरिफ लगाने के पक्ष में नहीं थे। अमेरिका की यह 'चुपके-चुपके' वाली नीति कई कूटनीतिक जानकारों के लिए पहेली बनी हुई है। भारत ने भी इस पर अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। भारत का कहना है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर ही फैसले लेगा और इस तरह के दोहरे मापदंड स्वीकार नहीं किए जाएंगे।

भारत का सीधा रुख़: 'हम रूस से तेल लेते रहेंगे'

भारत ने इस मुद्दे पर अपना रुख़ बिलकुल साफ कर दिया है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह अपने तेल सौदे रूस के साथ जारी रखेगी, क्योंकि यह उसके आर्थिक हितों के लिए ज़रूरी है। भारत ने अमेरिका के इस दोहरे रवैये को पाखंड करार दिया है। भारत का यह स्टैंड दिखाता है कि अब वह वैश्विक मंच पर अपनी स्वायत्तता और संप्रभुता को लेकर कहीं ज़्यादा मुखर हो गया है। भारत की यह आत्मनिर्भरता उसे किसी भी तरह के बाहरी दबाव के आगे झुकने से रोकती है।

क्या वैश्विक व्यापार की दिशा बदल रही है?

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से वैश्विक व्यापार और भू-राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। अमेरिका जैसे पारंपरिक साझेदार अब अपनी नीतियों को लेकर खुद ही सवालों के घेरे में हैं। एक तरफ जहां वो रूस को वैश्विक बाज़ार से अलग-थलग करना चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ उनके ही बयान और नीतियां उस मकसद के खिलाफ जाती दिख रही हैं। यह घटनाक्रम न सिर्फ रूस और यूक्रेन के बीच के संघर्ष का परिणाम है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भविष्य में दुनिया में व्यापार के नए समीकरण बनेंगे और भारत जैसे देश इन समीकरणों में एक अहम भूमिका निभाएंगे।

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