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विद्यासागर विश्वविद्यालय में आज़ादी के नायकों को कहा गया आतंकी! ABVP ने पुतला दहनकर किया विरोध

मिदनापुर के विद्यासागर विश्वविद्यालय में स्वतंत्रता सेनानियों को 'आतंकवादी' कहने पर बड़ा बवाल। एबीवीपी ने कुलपति का पुतला फूंका, राष्ट्रव्यापी आक्रोश। क्या इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है? जानें इस गंभीर विवाद की पूरी कहानी।

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Ajit Kumar Pandey
विद्यासागर विश्वविद्यालय में आज़ादी के नायकों को कहा गया आतंकी! एबीवीपी ने पुतला दहनकर किया विरोध | यंग भारत न्यूज

विद्यासागर विश्वविद्यालय में आज़ादी के नायकों को कहा गया आतंकी! एबीवीपी ने पुतला दहनकर किया विरोध | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।मिदनापुर के विद्यासागर विश्वविद्यालय में स्वतंत्रता सेनानियों को 'आतंकवादी' कहने का मामला गरमाया है। आज शुक्रवार 11 जुलाई 2025 को एबीवीपी ने कुलपति का पुतला जलाकर विरोध प्रदर्शन किया, जिससे शिक्षा जगत में आक्रोश और चिंता बढ़ गई है। क्या यह सिर्फ एक चूक है, या कुछ गहरा, जो हमारे इतिहास को विकृत कर रहा है?

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में स्थित विद्यासागर विश्वविद्यालय एक गंभीर विवाद के केंद्र में आ गया है। हाल ही में एक प्रश्न पत्र में स्वतंत्रता सेनानियों को 'आतंकवादी' संदर्भित किए जाने के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने विश्वविद्यालय के कुलपति का पुतला जलाकर जोरदार प्रदर्शन किया। इस घटना ने न केवल छात्रों और शैक्षणिक बिरादरी को आंदोलित किया है, बल्कि पूरे देश में एक नई बहस छेड़ दी है कि क्या हमारे शिक्षण संस्थान हमारे गौरवशाली इतिहास और उसके नायकों के प्रति संवेदनशील हैं।

यह विवाद तब शुरू हुआ जब विश्वविद्यालय के बीए छठे सेमेस्टर के इतिहास के प्रश्न पत्र में एक प्रश्न पूछा गया जिसमें भगत सिंह और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को 'क्रांतिकारी आतंकवादी' (Revolutionary Terrorists) के रूप में संदर्भित किया गया था। यह शब्द इस्तेमाल होते ही छात्रों में गुस्सा फूट पड़ा। उन्हें लगा कि यह हमारे देश के उन नायकों का सरासर अपमान है, जिन्होंने अपनी जान हथेली पर रखकर हमें आज़ादी दिलाई।

शिक्षण संस्थानों में ऐसी चूक कैसे संभव है?

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एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने तुरंत इस मामले को उठाया और विश्वविद्यालय परिसर के बाहर इकट्ठा होकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। उनके हाथों में तख्तियां थीं और वे कुलपति के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। इस विरोध प्रदर्शन ने पूरे शहर का ध्यान खींचा और मामला राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया।

कुलपति की चुप्पी और बढ़ते सवाल

इस गंभीर आरोप के बाद, विश्वविद्यालय प्रशासन और खासकर कुलपति की ओर से कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं आया है। यह चुप्पी और भी कई सवाल खड़े कर रही है:

क्या प्रश्न पत्र बनाने की प्रक्रिया में कोई गंभीर लापरवाही हुई?

क्या जानबूझकर ऐसा किया गया?

भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे?

छात्रों और विभिन्न राजनीतिक संगठनों का कहना है कि यह केवल एक प्रश्न पत्र की गलती नहीं है, बल्कि यह उस मानसिकता को दर्शाता है जो हमारे इतिहास और नायकों को गलत तरीके से पेश करने की कोशिश कर रही है। देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले लोगों को 'आतंकवादी' कहना अक्षम्य अपराध है।

इतिहास का सम्मान: एक राष्ट्र की पहचान

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स्वतंत्रता सेनानी हमारे देश की नींव हैं। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे अनगिनत वीरों ने अपनी युवावस्था देश की आज़ादी के लिए कुर्बान कर दी। उन्हें 'आतंकवादी' कहना उनके बलिदान का उपहास करना है।

क्या हम उन्हें गलत इतिहास पढ़ा रहे हैं?

यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने आने वाली पीढ़ियों को अपने इतिहास और नायकों के प्रति सही सम्मान सिखा रहे हैं। इतिहास को तोड़ना-मरोड़ना या उसे गलत तरीके से पेश करना किसी भी राष्ट्र के लिए खतरनाक हो सकता है। यह उस राष्ट्र की पहचान और उसके मूल्यों को कमजोर करता है।

विरोध और कार्रवाई की मांग

एबीवीपी ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक इस मामले में दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होती, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने शिक्षा मंत्री और उच्च शिक्षा विभाग से भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है।

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यह विवाद सिर्फ एक विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं रहेगा। यह अन्य शैक्षणिक संस्थानों को भी सतर्क करेगा कि वे अपने पाठ्यक्रम और शिक्षण सामग्री की गहन समीक्षा करें ताकि ऐसी त्रुटियों को दोहराया न जाए। यह एक अवसर है आत्मनिरीक्षण करने का कि हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को कैसे याद करते हैं और उसका सम्मान करते हैं।

इस घटना के बाद, विद्यासागर विश्वविद्यालय को न केवल अपनी प्रतिष्ठा बहाल करनी होगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी कोई गलती न हो जो हमारे राष्ट्रीय गौरव को ठेस पहुँचाए। यह देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह हमारे इतिहास और उसके नायकों का सम्मान करे और किसी भी तरह के विकृतिकरण का विरोध करे।

विद्यासागर विश्वविद्यालय का यह विवाद एक छोटी सी घटना नहीं है। यह हमारे राष्ट्रीय मूल्यों, इतिहास के सम्मान और शैक्षणिक ईमानदारी से जुड़ा एक बड़ा प्रश्न है। यह देखना होगा कि विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार इस पर क्या कदम उठाती है, ताकि भविष्य में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का ऐसा अपमान न हो।

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