हाईकोर्ट जज के घर पहुंचा था 15 लाख का पैकेट
वाकया 13 अगस्त 2008 का है। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस निर्मलजीत कौर रात तकरीबन 8 बजे अपने पिता के साथ डाइनिंग टेबल पर थीं। उनके कैंप आफिस का पियन अमरीक सिंह भीतर दाखिल होता है और उनको बताता है कि एक शख्स एक पैकेट लेकर आया है। वो कह रहा है कि इसे आपके पास दिल्ली से भेजा गया है। निर्मलजीत कौर अमरीक से कहती हैं कि पैकेट को खोलकर देखे कि उसमें क्या है। जैसे ही अमरीक लिफाफे को खोलता है हड़कंप मच जाता है। उसमें नोट भरे हुए थे। निर्मलजीत तत्काल उस शख्स को बंधक बनाने का फरमान जारी करती हैं जो पैकेट लेकर आया था। उनके सरकारी घर पर मौजूद कांस्टेबल और पियन अमरीक शख्स को पकड़कर बिठा लेते हैं। उससे पूछताछ की जाती है पर वो कुछ नहीं बोलता। जस्टिस के पिता जब उस शख्स को जोरदार तमाचा मारते हैं तो वो कहता है कि उसे एडवोकेट संजीव बंसल ने भेजा है।
एडवोकेट संजीव बंसल ने अपने मुंशी के जरिये भिजवाई थी रकम
निर्मलजीत कौर को खतरे का एहसास होने लगता है। वो कांस्टेबल से कहती हैं कि पुलिस को बुलाओ। पुलिस मौके पर पहुंच जाती है। उसके बाद जस्टिस कौर पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से बात करने की कोशिश करती हैं पर वो काल पर नहीं आते। उसके बाद वो अपने सीनियर जज मेहताब सिंह गिल को फोन लगाकर सारा वाकया बताती हैं। उनसे बात खत्म होते ही चीफ जस्टिस की काल उनके पास आती है। वो उनको सारी कहानी बताती हैं। इसी दौरान संजीव बंसल का फोन जस्टिस कौर के पास आता है। वो कहता है कि ये पैकेट किसी दूसरे जस्टिस के पास जाना था गलती से आपके घर पहुंच गया। वो अनुरोध करता है कि उसके मुंशी को वो छोड़ दें। लेकिन जस्टिस कौर वकील की बात को तवज्जो नहीं देतीं। उसके बाद ये सारा मामला मीडिया के सामने आता है। जैसे ही ये बातें पब्लिक डोमेन में आती हैं, चारों तरफ हड़कंप मच जाता है। पुलिस केस दर्ज कर चुकी थी।
सीजेआई ने बनाई इन हाउस कमेटी, जांच सीबीआई के सुपुर्द
पुलिस जांच में जब सामने आता है कि 15 लाख रुपये जस्टिस कौर के लिए नहीं बल्कि जस्टिस निर्मल यादव के घर पहुंचने थे। संजीव बंसल का मुंशी गड़बड़ी कर गया। दोनों जस्टिसेज का नाम एक था इस वजह से वो नेम प्लेट पढ़कर जस्टिस यादव के घर की बजाय जस्टिस कौर के घर पहुंच गया। मामला बेहद पेंचीदा था। जूडिशिरी की साख दांव पर लगी थी। चीफ जस्टिस अपनी तरफ से चीफ जस्टिस आफ इंडिया को मामले की जानकारी देते हैं। वो एक इन हाउस कमेटी का गठन करते हैं। दांव पर न्यायपालिका की साख थी लिहाजा ये मामला पुलिस से लेकर सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाता है। सीबीआई की एंट्री इस मामले में बेहद खास थी। एजेंसी फौरी जांच के बाद जिन लोगों पर चार्जशीट दायर करती है उनमें जस्टिस निर्मल यादव के साथ पांच लोगों को आरोपी बनाया गया था। इसके साथ ही निर्मल यादव देश की पहली ऐसी हाईकोर्ट जस्टिस बन गईं जिनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल हुआ। उनके अलावा सीबीआई ने संजीव बंसल, रविंदर भसीन, राजीव गुप्ता और निर्मल सिंह को आरोपी बनाया।
इन हाउस कमेटी ने माना दोषी, स्पेशल कोर्ट से बरी
खास बात है कि चीफ जस्टिस आफ इंडिया ने मामले की जांच के लिए जिस इन हाउस कमेटी का गठन किया था उसने जस्टिस निर्मल यादव को दोषी माना था अलबत्ता सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 2025 में सारे आरोपियों को बरी कर दिया। एजेंसी को तीखी फटकार लगाई गई। संजीव बंसल की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। फैसला आने तक जस्टिस निर्मल यादव रिटायर हो चुकी थीं। सीबीआई ने 15 लाख के पैकेट की जांच के दौरान एक अनोखी कहानी का भी पता लगाया गया। पैकेट मिलने से 1 दिन पहले ही हिमाचल प्रदश के सोलन में एक जमीन की खरीद फरोख्त की गई थी, जिसमें जस्टिस निर्मल यादव खुद भी शामिल थीं।
89 पेज के फैसले में सीबीआई को स्पेशल कोर्ट से फटकार
सीबीआई कोर्ट ने 17 साल बाद जो फैसला दिया उसमें सीबीआई की जांच पर कई तरह से सवालिया निशान लगाए। एजेंसी ने जिन लोगों को गवाह के तौर पर पेश किया था वो सारे मुकर गए। संजीव बंसल की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। केवल एक गवाह जो शुरू से आखिर तक अपने बयान पर कायम रहा वो थीं जस्टिस निर्मलजीत कौर। लेकिन स्पेशल कोर्ट को लगता है कि सीबीआई की विवेचना में बहुत सारे झोल हैं। वो इस बात को साबित करने में नाकाम रही कि पैसा जस्टिस निर्मल यादव ने मंगवाया था। हालांकि एजेंसी ने संजीव बंसल और जस्टिस निर्मल यादव के काल डिटेल रिकार्ड कोर्ट में पेश किए लेकिन स्पेशल कोर्ट ने माना कि ये साक्ष्य इतने मजबूत नहीं हैं जो किसी को सजा दिला सकें।
Justice Nirmal Yadav, Nirmal Yadav acquitted, 2008 Case