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जब PM नरसिंहराव के पास गए वाजपेयी और फिर साथ मिलकर संसद में खाई एक कसम

आपरेशन सिंदूर के दौरान और उसके बाद के दौर में विपक्षी दल पीएम नरेंद्र मोदी से डिमांड करते रहे हैं कि सरकार संसद का सत्र बुलाए जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ पारित उस प्रस्ताव को फिर से जिंदा किया जाए जो 1994 में सामने आया था।

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Shailendra Gautam
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नई दिल्ली , वाईबीएन डेस्क । आपरेशन सिंदूर के दौरान और उसके बाद के दौर में विपक्षी दल पीएम नरेंद्र मोदी से डिमांड करते रहे हैं कि सरकार संसद का सत्र बुलाए जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ पारित उस प्रस्ताव को फिर से जिंदा किया जाए जो 1994 में सामने आया था।

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पार्टी लाइन को दरकिनार कर वाजपेयी मिले थे कांग्रेसी पीएम से

31 साल पहले के वाकये में अभूतपूर्व मंजर दिखा था। उस दौरान देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव थे। अटल बिहारी वाजपेयी नेता प्रतिपक्ष थे। कश्मीर में कुछ ऐसा हुआ था जिसने भारत को झकझोर करके रख दिया था। वाजपेयी बीजेपी के नेता थे और देश में कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन पार्टी लाइन को दरकिनार कर वो प्रधानमंत्री के पास गए। उसके बाद नरसिंहराव ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष शिवराज पाटिल को एक प्रस्ताव सौंपा जिसका वाजपेयी ने अनुमोदन किया, उसके बाद के दौर में सारे सियासी दल सरकार के साथ थे। 

पाकिस्तान ने हाईकमिश्नर रहे राघवन ने किताब में किया था जिक्र

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पाकिस्तान में भारत के पूर्व हाईकमिश्नर टीसीए राघवन ने अपनी पुस्तक द पीपल नेक्स्ट डोर: द क्यूरियस हिस्ट्री ऑफ इंडिया-पाकिस्तान रिलेशंस में उस समय की स्थिति का जिक्र किया है। 1993 के चुनावों में जीत हासिल करके पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में सत्ता में लौटी थीं। राघवन लिखते हैं कि इसके बाद पड़ोसी देशों के बीच बातचीत शुरू करने का एक प्रयास हुआ। भारत भी इस बातचीत को पाजिटिव मान रहा था। 

हजरत बल दरगाह में हुई वारदात से आक्रोश भड़का

जनवरी 1994 में दोनों देशों के विदेश सचिवों ने एक बैठक की। राघवन लिखते हैं कि बैठक होने से पहले ही विफल हो गई थी, क्योंकि यह कश्मीर घाटी अचानक दुनिया की नजरों में आ गई। अक्टूबर 1993 में हजरतबल दरगाह पर हुई वारदात ने झकझोर दिया था। उस मामले में आतंकियों ने दरगाह के भीतर महिलाओं और बच्चों समेत करीब 150 तीर्थयात्रियों को बंधक बना लिया था। राघवन लिखते हैं कि उन्होंने सेफ पैसेज की मांग की, न मिलने पर मस्जिद को उड़ाने की धमकी दी। नवंबर 1993 में बातचीत के बाद घेराबंदी समाप्त हो गई। 

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सारे सियासी दल बोले थे- POK हमारा है और हम इसे लेकर रहेंगे

राघवन कहते हैं, जबकि पाकिस्तान इसे अपनी जीत के तौर पर देख रहा था। फरवरी 1994 में पाकिस्तान ने कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद से संपर्क किया। राघवन लिखते हैं कि इस सबके बीच भारत सरकार ने एक मास्टर स्ट्रोक खेला। जिसके तहत संसद में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें सभी दलों ने शिरकत की और सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया। प्रस्ताव में कश्मीर के आतंकवाद के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान को दोषी ठहराया गया। प्रस्ताव में कहा गया कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था, है और रहेगा। इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान को कश्मीर के उन क्षेत्रों को खाली करना चाहिए, जिन पर उसने कब्जा कर रखा है।

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