/young-bharat-news/media/media_files/2025/11/24/justice-suryakant-2025-11-24-10-34-57.jpg)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।हरियाणा के एक छोटे से गांव से निकले जस्टिस सूर्यकांत अब भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश CJI बन गए हैं। बचपन में अपने भाइयों के साथ खेतों में मेहनत करने वाले इस किशोर ने कभी कल्पना की थी कि वह देश की सर्वोच्च अदालत का नेतृत्व करेंगे। उनका यह सफर सरकारी स्कूल की बोरी पर बैठने से लेकर सुप्रीम कोर्ट की कुर्सी तक पहुंचने की एक असाधारण कहानी है, जिसे हर भारतीय को जानना चाहिए। 24 नवंबर, 2025 को उनका शपथ ग्रहण होगा।
24 नवंबर, 2025। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में आज एक नया अध्याय जुड़ गया है। देश के 53वें प्रधान न्यायाधीश Chief Justice of India - CJI के तौर पर जस्टिस सूर्यकांत ने शपथ ली है। हरियाणा के हिसार जिले के एक छोटे से गांव पेटवाड़ से निकलकर देश की सर्वोच्च अदालत की इस गरिमामयी कुर्सी तक पहुंचना, अपने आप में एक अविश्वसनीय और प्रेरणादायक दास्तान है। यह सिर्फ एक कानूनी सफर नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प, विपरीत परिस्थितियों से जूझने और एक साधारण इंसान के असाधारण सपने को साकार करने की कहानी है।
जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर, 2025 से 9 फरवरी, 2027 तक, लगभग 15 महीने के लिए, भारतीय न्याय प्रणाली का नेतृत्व करेंगे। यह सफर उनके गांव की तपती दोपहर से शुरू हुआ था, जब उन्होंने खुद से एक बड़ा वादा किया था। थ्रेशर मशीन बंद कर आसमान से किया था वादा। इस कहानी की शुरुआत देश की राजधानी दिल्ली से लगभग 136 किलोमीटर दूर, हरियाणा के हिसार जिले के पेटवाड़ गांव से होती है।
साल था 1970 के दशक का, जब गर्मी अपनी चरम पर थी। गेहूं की फसल की मड़ाई चल रही थी। धूप में पसीने से लथपथ एक दुबला-पतला किशोर अपने भाइयों के साथ थ्रेशर मशीन पर मेहनत कर रहा था। वह किशोर अचानक रुका, मशीन बंद की और आसमान की ओर देखते हुए बुलंद आवाज में कहा, "मैं अपनी जिंदगी को बदल दूंगा, यह मेहनत अब और नहीं" वह लड़का उस वक्त केवल मैट्रिक पास था और सरकारी स्कूल में टाट बोरी पर बैठकर पढ़ाई करता था।
उस पल शायद ही किसी ने सोचा होगा कि खेतों में काम करने वाला यह 'तालिब-ए-इल्म' छात्र, एक दिन देश की सबसे बड़ी अदालत में न्याय का चेहरा बनकर बैठेगा। वह किशोर और कोई नहीं, बल्कि आज के हमारे 53वें CJI जस्टिस सूर्यकांत हैं।
#WATCH | दिल्ली: जस्टिस सूर्यकांत ने राष्ट्रपति भवन में भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई।
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 24, 2025
(सोर्स: DD न्यूज़) pic.twitter.com/bAWAWbWpjf
संस्कृत शिक्षक के घर जन्म और वकालत की शुरुआत
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार जिले के पेटवाड़ नारनौंद गांव में हुआ था। उनके पिता मदनगोपाल शास्त्री संस्कृत के शिक्षक थे, जबकि माता शशि देवी एक साधारण गृहिणी थीं। वे पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।
पिता का सपना: उनके पिता चाहते थे कि बेटा उच्च कानूनी शिक्षा LLM प्राप्त करे, लेकिन सूर्यकांत ने उन्हें मनाया कि वह LLB के तुरंत बाद वकालत शुरू करेंगे।
कानूनी सफर की नींव: उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से 1984 में कानून की डिग्री LLB हासिल की।
शुरुआत: उसी वर्ष उन्होंने हिसार जिला न्यायालय में अपने कानूनी सफर की शुरुआत की।
चंडीगढ़ का रुख: केवल एक साल बाद, 1985 में, वह पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में वकालत शुरू करने के लिए चंडीगढ़ चले गए।
बाद में, उन्होंने 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कानून में स्नातकोत्तर LLM की डिग्री भी प्राप्त की। 38 साल की उम्र में हरियाणा के सबसे युवा महाधिवक्ता जस्टिस सूर्यकांत के करियर में एक ऐतिहासिक मोड़ तब आया, जब वे महज 38 वर्ष की आयु में, 7 जुलाई, 2000 को हरियाणा के सबसे कम उम्र के महाधिवक्ता Advocate General बने। यह उनकी कानूनी समझ और तीक्ष्ण बुद्धि का प्रमाण था।
महाधिवक्ता बनने के बाद उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता Senior Advocate भी नियुक्त किया गया। इसके बाद, 2004 में उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। उन्होंने 14 वर्षों से अधिक समय तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवा दी। अक्टूबर, 2018 में वह हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने। अंततः, 24 मई, 2019 को वह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश Supreme Court Judge बने, और अब CJI की कुर्सी तक पहुंच गए हैं।
दिल्ली: जस्टिस सूर्यकांत ने राष्ट्रपति भवन में भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई।
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 24, 2025
(तस्वीरें: DD News) pic.twitter.com/VNgRFTsPFO
ऐतिहासिक फैसले: जो न्याय प्रणाली की नींव बने जस्टिस सूर्यकांत
अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक और दूरगामी फैसलों का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने देश की कानूनी और राजनीतिक दिशा को प्रभावित किया है।
अनुच्छेद 370 का फैसला: वह उस संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा समाप्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा था। यह भारतीय संघवाद के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ।
ओआरओपी OROP: उन्होंने वन रैंक वन पेंशन OROP योजना को संवैधानिक रूप से वैध माना, जो लाखों पूर्व सैनिकों के लिए एक बड़ी जीत थी।
महिलाओं के समान अवसर: उन्होंने भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं के लिए समान अवसरों का पुरजोर समर्थन किया, जो लैंगिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम था।
केजरीवाल जमानत मामला: वह उस पीठ के सदस्य थे जिसने दिल्ली आबकारी शराब नीति मामले में अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी थी, हालांकि उन्होंने केजरीवाल की गिरफ्तारी को जायज ठहराया था।
मतदाता सूची पारदर्शिता: उन्होंने चुनाव आयोग को बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए गए 65 लाख मतदाताओं का ब्योरा सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था, जो चुनावी पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण था।
/filters:format(webp)/young-bharat-news/media/media_files/2025/11/24/suryakant-haryana-2025-11-24-10-35-14.jpg)
परिवार कानूनी विरासत को आगे बढ़ाती बेटियां
जस्टिस सूर्यकांत का पारिवारिक जीवन भी बेहद प्रेरणादायक रहा है। उनकी शादी वर्ष 1980 में सविता शर्मा से हुई, जो पेशे से लेक्चरर रहीं और बाद में एक कॉलेज की प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हुईं। उनकी दो बेटियां हैं, जो अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए कानून में स्नातकोत्तर Master Degree की पढ़ाई कर रही हैं। यह दिखाता है कि परिवार में कानूनी शिक्षा और न्याय के प्रति गहरी रुचि है।
कवि, पर्यावरण प्रेमी और 'दिल से पत्रकार'
न्यायमूर्ति सूर्यकांत की शख्सियत सिर्फ न्याय की किताबों तक सीमित नहीं है। उनका एक साहित्यिक और सामाजिक पक्ष भी है, जो उन्हें एक बहुआयामी व्यक्ति बनाता है।
कवि और पर्यावरण प्रेमी: वह एक बेहतरीन कवि भी हैं। कॉलेज के दिनों में उनकी एक कविता, 'मेंढ पर मिट्टी चढ़ा दो', काफी लोकप्रिय हुई थी। वह पर्यावरण से गहरा प्रेम रखते हैं। उन्होंने अपने गांव में एक तालाब के जीर्णोद्धार के लिए न केवल अपनी जेब से दान दिया, बल्कि उसके चारों ओर पेड़-पौधे भी लगवाए।
लेखक और पत्रकार: वह खुद को 'दिल से पत्रकार' कहते हैं। उनका मानना है कि पत्रकार की तरह ही किसी मामले की तह तक जाना, न्याय के लिए आवश्यक है। उन्होंने 'एडमिनिस्ट्रेटिव जियोग्राफी ऑफ इंडिया' शीर्षक से एक किताब भी लिखी है, जो 1988 में प्रकाशित हुई थी।
खेती के शौकीन: तमाम व्यस्तताओं के बावजूद, वह आज भी खेती के शौकीन हैं और अपनी जड़ों से जुड़े रहना पसंद करते हैं।
विवादों का सामना: न्यायिक पारदर्शिता की परीक्षा
एक लंबी न्यायिक यात्रा में विवादों का आना कोई नई बात नहीं है। जस्टिस सूर्यकांत को भी अपने करियर में कुछ आरोपों का सामना करना पड़ा।
रियल एस्टेट एजेंट का आरोप: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में रहने के दौरान एक रियल एस्टेट एजेंट ने उन पर करोड़ों रुपये के लेनदेन में शामिल होने का आरोप लगाया था।
कैदी की शिकायत: पंजाब के एक कैदी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि जस्टिस कांत ने जमानत देने के लिए रिश्वत ली थी।
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इन आरोपों को कभी भी साबित नहीं किया जा सका और सभी आरोप निराधार पाए गए। इन आरोपों के बावजूद, उनकी पदोन्नति और न्यायिक करियर में कोई बाधा नहीं आई, जो न्यायपालिका में उनकी विश्वसनीयता को दर्शाता है।
एक प्रेरणादायक सफर का अंत नहीं, आगाज
सरकारी स्कूल की बोरी पर बैठने वाले, खेतों में थ्रेशर चलाने वाले एक लड़के का देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचना— यह कहानी हमें सिखाती है कि भौगोलिक सीमाएं और गरीबी कभी भी सपने पूरे करने के आड़े नहीं आ सकतीं। जस्टिस सूर्यकांत का CJI बनना भारतीय न्यायपालिका के लिए एक नया और गतिशील अध्याय है, और उनकी सादगी, ईमानदारी तथा कानूनी समझ आने वाली पीढ़ियों के लिए एक रोल मॉडल रहेगी।
CJI Surya Kant | Village To Supreme Court | Justice Surya Kant Journey | Indian Judiciary | Indian Judiciary News
/young-bharat-news/media/agency_attachments/2024/12/20/2024-12-20t064021612z-ybn-logo-young-bharat.jpeg)
Follow Us
/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/11/dXXHxMv9gnrpRAb9ouRk.jpg)