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महिला जज के लिए झारखंड हाईकोर्ट के खिलाफ क्यों खड़े हो गए CJI गवई?

चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई एक महिला जज की फरियाद सुनकर इतने भावुक हो गए कि उन्होंने झारखंड के हाईकोर्ट को चेतावनी तक दे डाली। बोले कि या तो वो अनुरोध मान लें नहीं तो हमें रास्ता निकालेंगे।

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Shailendra Gautam
CJI BR Gavai

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः न्यायपालिका के इतिहास में एक अनोखा मामला देखने को मिला। चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई एक महिला जज की फरियाद सुनकर इतने भावुक हो गए कि उन्होंने झारखंड के हाईकोर्ट को चेतावनी तक दे डाली। सीजेआई ने हाईकोर्ट से कहा कि या तो वो महिला जज का अनुरोध मान लें नहीं तो हमें आदेश जारी करके उसे इंसाफ दिलाना पड़ेगा। सब कुछ आप पर निर्भर है। 

सुप्रीम कोर्ट से महिला जज ने लगाई थी गुहार

काशिका एम प्रसाद बनाम झारखंड के मामले में सीजेआई की ये टिप्पणी आई। इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब अतिरिक्त जिला जज काशिका ने चाइल्ड केयर लीव की दरख्वास्त दी। झारखंड हाईकोर्ट ने उनकी दलील नहीं मानी तो वो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं। 2025 की शुरुआत में शीर्ष अदालत को बताया गया था कि उन्होंने 194 दिनों की छुट्टी मांगी थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने केवल 92 दिनों की छुट्टी स्वीकृत की। सुप्रीम कोर्ट ने तब उन्हें स्वीकृत छुट्टी पर आगे बढ़ने की अनुमति दी थी। साथ ही उच्च न्यायालय प्रशासन को एक काउंटर एफिडेविट दायर करने का निर्देश दिया था। 

पहले तबादले पर विवाद और फिर चाइल्ड केयर लीव पर

दरअसल विवाद की शुरुआत चाइल्ड केयर लीव मांगे जाने से पहले ही हो चुकी थी। महिला जज का हजारीबाग से तबादला किया गया था। स्थानांतरण आदेश जारी होने के तुरंत बाद उन्होंने अनुरोध किया था कि उन्हें हजारीबाग में ही रखा जाए या बोकारो भेजा जाए। बोकारो हजारीबाग से लगभग 100 किलोमीटर दूर है। उनका तर्क था कि वो सिंगल मदर हैं। बेटे की पढ़ाई के लिए कोई ढंग का शहर जरूरी है। लेकिन जब उच्च न्यायालय ने उनके अनुरोध पर विचार नहीं किया तो उन्होंने 194 दिनों की छुट्टी के लिए आवेदन किया। 

सीजेआई ने कहा- हाईकोर्ट मान जाए नहीं तो हम देंगे आदेश

हाईकोर्ट के वकील ने तर्क दिया था कि छुट्टी संबंधी उनका मुकदमा स्थानांतरण आदेशों के बाद दायर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को झारखंड हाईकोर्ट से कहा कि वह एक महिला अतिरिक्त जिला जज के स्थानांतरण अनुरोध पर शांति से विचार करे। सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा कि जज का हजारीबाग में ही रहने या बोकारो भेजे जाने का अनुरोध सुविधा का मामला नहीं था, बल्कि यह उनके बेटे की पढ़ाई से जुड़ा था।

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शीर्ष अदालत ने कहा कि जज सिंगल मदर के रूप में घर की मांग कर रही हों, तो हाईकोर्ट को अहंकारी बर्ताव नहीं करना चाहिए। सीजेआई ने कहा- एक हाईकोर्ट के रूप में आप अहंकारी नहीं हो सकते। अब आप उन्हें या तो बोकारो स्थानांतरित करें या हजारीबाग में ही रखें। यह काम शालीनता से करें नहीं तो हमें आदेश जारी करना होगा। सीजेआई ने कहा कि महिला जज के बेटे को 2026 में 12वीं की बोर्ड परीक्षा देनी है।

सीजेआई ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक अधिकारियों को ऐसी स्थिति में नहीं रखा जाना चाहिए जहां उनके माता-पिता के कर्तव्यों और पेशेवर जिम्मेदारियों के बीच टकराव हो।

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