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RSS ने दशहरे पर रामनाथ कोविंद को क्यों बनाया चीफ गेस्ट?

केआर नारायणन के बाद दलित राष्ट्रपति कोविंद का चयन ऐसे समय में राजनीतिक और सामाजिक अहमियत रखता है जब जातिगत सवाल हावी हैं। संघ पर ब्राह्मणवादी चरित्र रखने का आरोप लगाया जाता है।

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Shailendra Gautam
MODI & RSS

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः आरएसएस ने घोषणा की है कि पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद उसके विजयादशमी शताब्दी उत्सव में मुख्य अतिथि होंगे। यह कार्यक्रम रेशिमबाग नागपुर में होने वाला है। यह संघ के 100 साल पूरे होने का प्रतीक है। खास बात है कि कोविंद की मौजूदगी के बीच आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत मुख्य भाषण देंगे।

पहले केआर नारायणन गए थे संघ के मुख्यालय

दिवंगत केआर नारायणन के बाद दलित समुदाय से जुड़े राष्ट्रपति कोविंद का चयन ऐसे समय में राजनीतिक और सामाजिक अहमियत रखता है जब जातिगत सवाल हावी हैं। संघ पर ब्राह्मणवादी चरित्र रखने का आरोप लगाया जाता रहा है। आरोप को दरकिनार करने के लिए आरएसएस ने हाल के वर्षों में अपने सामाजिक सद्भाव अभियान के माध्यम से एक समावेशी छवि पेश करने की कोशिश की है।

दलित समुदाय को लेकर फिक्रमंद है संघ

मार्च 2024 में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने बहिष्कार की प्रथाओं को समाप्त करने और इसमें संघ की भूमिका पर बात की। उन्होंने कहा- किसी को भी कुओं, श्मशान घाटों, मंदिरों या झीलों तक पहुंच से वंचित करना हमारी संस्कृति के विरुद्ध है। सच्चा सामाजिक परिवर्तन तभी हो सकता है जब समाज स्वयं जिम्मेदारी ले। उनकी बातों का गहन विश्लेषण किया जाए तो साफ है कि संघ अपनी ब्राह्मणवादी छवि को लेकर सशंकित है।

कहीं जातिगत जनगणना की मांग तो वजह नहीं

लेकिन रामनाथ कोविंद को चीफ गेस्ट बनाने की घोषणा जाति प्रतिनिधित्व पर नए सिरे से छिड़ी बहस के बीच आई है। विपक्षी कांग्रेस के जाति जनगणना पर जोर देने और आरक्षण कोटे के विस्तार की मांग के बीच आरएसएस खुद को एक तनावपूर्ण हालात में उलझा हुआ पा रहा है। संघ जातिगत जनगणना पर नरम रुख दिखा रहा है लेकिन उसने आगाह भी किया है कि जाति गणना एक ऐसा राजनीतिक हथियार नहीं बनना चाहिए जो विभाजन को और गहरा करे।

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कोविंद को अपने शताब्दी समारोह का चीफ गेस्ट बनाकर आरएसएस हाशिए पर पड़े समुदायों के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने के इरादे का संकेत देता है। हालांकि संगठन के नेता कह रहे हैं कि कोविंद का चीफ गेस्ट बनना राजनीतिक दबावों के चलते नहीं है बल्कि लंबे समय से चले आ रहे संघ कार्यक्रमों के अनुरूप है।

दलितों को लेकर कुछ ज्यादा ही फिक्रमंद हो रहा है संघ

संघ के दलित प्रेम की बानगी तब भी मिली जब अपने शताब्दी वर्ष के रोडमैप के हिस्से के रूप में संघ ने सामाजिक समरसता के बैनर तले एक व्यापक कार्यक्रम की घोषणा की। देश भर में एक लाख से ज़्यादा हिंदू सम्मेलन और घर-घर संपर्क अभियान आयोजित करने की योजना संघ की है। इसका उद्देश्य हिंदू समुदायों को एक साथ लाना और जातिगत असमानताओं पर बातचीत को प्रोत्साहित करना है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य दलितों को मंदिर अनुष्ठानों में शामिल करना और ग्रामीण भारत में सार्वजनिक सुविधाओं तक उनकी पहुंच सुनिश्चित करना है। यह कई राज्यों में एक संवेदनशील मुद्दा है।

आरएसएस के लिए यह शताब्दी वर्ष अपने विचारों को नए सिरे से परिभाषित करने का अवसर प्रदान करता है। संघ के पदाधिकारियों का मानना ​​है कि सामाजिक समरसता की दिशा में यह आंदोलन दशकों से चल रहा है। अब इसे उनकी वैचारिक परियोजना के केंद्र में रखा जा रहा है। कोविंद का चयन इसी यात्रा का प्रतीक है। जो जाति से परे हिंदू एकता का एक ऐसा दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

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