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1975 की सीक्रेट डील में राजीव गांधी का नाम क्यों आया? बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने खोला नया मोर्चा!

2013 में विकिलीक्स ने 1975 के गोपनीय दस्तावेज उजागर कर सनसनी मचा दी। इन दस्तावेजों के अनुसार, स्वीडिश विगेन विमान डील में तत्कालीन PM इंदिरा गांधी के पायलट बेटे राजीव गांधी बिचौलिए थे। इंदिरा गांधी पर भी रक्षा सौदों में हस्तक्षेप का आरोप लगा।

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Ajit Kumar Pandey
BJP MP NISHIKANT DUBEY

1975 की सीक्रेट डील में राजीव गांधी का नाम क्यों आया? बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने खोला नया मोर्चा! | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।साल 2013, एक ऐसा साल जब विकिलीक्स ने दुनिया के सामने कई राज उजागर किए। इन राज़ों में से कुछ भारत से जुड़े थे, और उन्होंने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया। कल्पना कीजिए, एक ऐसा दस्तावेज़ जो भारत की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक हस्तियों में से एक, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पायलट बेटे राजीव गांधी से जुड़ा हो! यह कोई सामान्य कहानी नहीं है, यह एक ऐसा रहस्य है जो दशकों तक दबा रहा, और जब सामने आया तो कई सवाल खड़े कर गया।

क्या इंदिरा गांधी के पायलट बेटे राजीव गांधी 1975 में स्वीडिश लड़ाकू विमानों की डील में बिचौलिए थे? विकिलीक्स ने 2013 में कुछ ऐसे गोपनीय दस्तावेज जारी किए, जिन्होंने भारत की राजनीति में भूचाल ला दिया। जानिए क्या था पूरा मामला और तत्कालीन सरकार की चुप्पी के पीछे का रहस्य। 

इस मामले को लेकर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर दो पेज का एक डाक्यूमेंट अपलोड करते हुए कई गंभीर आरोप कांग्रेस नेताओं और कांग्रेस पार्टी पर लगाए हैं। हालांकि इस ट्वीट को लेकर खूब हल्ला मच रहा है। 

21 अक्टूबर 1975 को स्वीडन के एक राजनयिक ने अमेरिकी सरकार को एक बेहद संवेदनशील जानकारी दी। इस जानकारी के अनुसार, स्वीडिश कंपनी साब-स्कैनिया (Saab-Scania) भारत को विगेन (Viggen) नामक युद्धक विमान बेचना चाहती थी। लेकिन चौंकाने वाली बात यह थी कि इस डील में एक "बिचौलिया" का नाम सामने आया – और वह नाम था इंदिरा गांधी के पायलट बेटे, राजीव गांधी का।

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विगेन विमान डील: साब-स्कैनिया कंपनी भारत को 50 विगेन विमान बेचना चाहती थी, जिनकी कीमत 4-5 मिलियन डॉलर प्रति विमान थी।

राजीव गांधी की भूमिका: दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि स्वीडिश दूतावास ने यह संकेत दिया कि मुख्य भारतीय वार्ताकार के रूप में राजीव गांधी इस डील में एक "उद्यमी" (entrepreneur) के रूप में शामिल थे। यह एक ऐसा आरोप था जिसने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया।

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इंदिरा गांधी का हस्तक्षेप: सिर्फ राजीव गांधी ही नहीं, दस्तावेज़ यह भी बताता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी "रक्षा सौदों में ज़रूरत से ज़्यादा हस्तक्षेप" करती थीं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या यह हस्तक्षेप सिर्फ प्रशासनिक था, या इसके पीछे कुछ और भी था?

यह खुलासा उस समय आया जब देश में आपातकाल लगा हुआ था, और राजनीतिक माहौल बेहद संवेदनशील था। ऐसे में, इन आरोपों का सामने आना और भी गंभीर हो जाता है।

मनमोहन सरकार की चुप्पी: क्यों नहीं हुई कोई कार्रवाई?

जब 2013 में विकिलीक्स ने ये दस्तावेज़ जारी किए, तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। यह स्वाभाविक था कि इन गंभीर आरोपों पर सरकार की प्रतिक्रिया आती। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि भारत सरकार ने न तो अमेरिका सरकार पर कोई कार्रवाई की, न स्वीडन सरकार पर, और न ही इन आरोपों की कोई विस्तृत जांच कराई।

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राजनीतिक संवेदनशीलता: क्या यह मामला इतना संवेदनशील था कि सरकार इसे छूने से कतरा रही थी?

सबूतों का अभाव या अनदेखी? क्या भारत सरकार के पास इन आरोपों की पुष्टि या खंडन के लिए कोई सबूत नहीं थे, या उन्हें जानबूझकर अनदेखा किया गया?

पुराने मामलों की अनदेखी: अक्सर देखा जाता है कि पुरानी सरकारों से जुड़े संवेदनशील मामलों पर मौजूदा सरकारें सीधे कार्रवाई से बचती हैं, खासकर अगर उनका संबंध उसी राजनीतिक दल से हो। क्या यह भी वैसा ही मामला था?

यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। एक तरफ जहां देश के पूर्व प्रधानमंत्री और उनके बेटे पर गंभीर आरोप लग रहे थे, वहीं दूसरी ओर सरकार ने इसे लेकर कोई सक्रिय कदम नहीं उठाया।

क्या भारतीय सेना को कमज़ोर करने की साजिश थी?

दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि "भारतीयों ने अब और सोवियत सैन्य विमान न खरीदने का फैसला किया है।" यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है। शीत युद्ध के दौर में भारत सोवियत संघ का एक प्रमुख हथियार खरीदार था। अगर भारत अचानक सोवियत विमानों की खरीद से पीछे हट रहा था, तो इसके पीछे क्या कारण थे?

क्या यह सिर्फ आर्थिक फैसला था?

क्या इसके पीछे पश्चिमी देशों का दबाव था?

क्या विगेन डील भारतीय सेना को आधुनिक बनाने की आड़ में राजनीतिक और आर्थिक हितों को साधने का एक तरीका थी?

इस दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि "भारत अपनी तटस्थ स्थिति बनाए रखने में लगातार विफल रहा है।" यह आरोप अपने आप में गंभीर है, क्योंकि भारत हमेशा से गुटनिरपेक्ष आंदोलन का एक प्रमुख सदस्य रहा है।

विकिलीक्स: पारदर्शिता का मंच या विवादों का पिटारा?

विकिलीक्स ने दुनियाभर की सरकारों के गोपनीय दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करके पारदर्शिता की वकालत की है। लेकिन साथ ही, इसके खुलासे अक्सर विवादों को जन्म देते हैं। इस मामले में भी, दस्तावेज़ों की प्रामाणिकता और उनके पीछे के इरादों पर सवाल उठ सकते हैं। हालांकि, विकिलीक्स की विश्वसनीयता पर आमतौर पर संदेह नहीं किया जाता।

यह घटना हमें याद दिलाती है कि कैसे सत्ता के गलियारों में गोपनीय सौदे और राजनीतिक हस्तक्षेप आम बात हो सकती है। यह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है कि पारदर्शिता और जवाबदेही कितनी ज़रूरी है। जब देश की सुरक्षा और राष्ट्रीय हित दांव पर हों, तो हर नागरिक को यह जानने का अधिकार है कि पर्दे के पीछे क्या चल रहा है।

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