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ईरान-इजरायल : 12-Day War की पूरी Timeline - पढ़ें खूनी मंजर की रिपोर्ट

12 दिन की ईरान-इजरायल जंग थम गई है! ट्रंप के ऐलान से दुनिया ने राहत की सांस ली। यह संघर्ष World War 3 के करीब ले आया था। जानिए इस खतरनाक युद्ध के हर दिन का विश्लेषण, अमेरिका की एंट्री और कैसे बची दुनिया।

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Ajit Kumar Pandey
ईरान-इजरायल : 12-Day War की पूरी Timeline - पढ़ें खूनी मंजर की रिपोर्ट | यंग भारत न्यूज

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । ईरान और इजरायल के बीच 12 दिनों तक चली खूनी जंग आखिरकार थम गई है, और इसके पीछे अमेरिकी दखलअंदाजी का बड़ा हाथ बताया जा रहा है। हालांकि अभी ईरान या इजरायल की ओर से कोई आधिरिक बयान नहीं आया है। बस और केवल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सीजफायर के ऐलान वाले एक्स पर ट्वीट ने दुनिया को राहत की सांस दी है। इस संघर्ष ने न केवल मध्य-पूर्व को अशांत किया, बल्कि पूरे विश्व को तीसरे विश्व युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया था। आइए जानते हैं इन 12 दिनों के हर पल का लेखा-जोखा, कब, क्या और कैसे हुआ, और कैसे अमेरिका की एंट्री ने इस आग को बुझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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मध्य-पूर्व की राजनीति हमेशा से जटिल रही है, लेकिन हालिया ईरान-इजरायल संघर्ष ने इस जटिलता को एक नए और खतरनाक स्तर पर पहुंचा दिया था। 12 दिनों तक चली इस खूनी जंग ने न सिर्फ हजारों जानें लीं, बल्कि लाखों लोगों को विस्थापित भी किया। आइए, इस पूरे घटनाक्रम को दिन-प्रतिदिन के हिसाब से समझते हैं, ताकि हम जान सकें कि कैसे यह तनाव एक महायुद्ध का रूप ले सकता था और कैसे इसे रोका गया।

पहला दिन: चिंगारी जो आग बन गई

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संघर्ष की शुरुआत एक छोटी सी घटना से हुई, जो देखते ही देखते एक विशाल आग में तब्दील हो गई। इजरायल ने सीरिया में ईरान समर्थित मिलिशिया के एक ठिकाने पर हवाई हमला किया। इजरायल का दावा था कि यह हमला उनकी सुरक्षा के लिए आवश्यक था, क्योंकि उस ठिकाने से इजरायल पर हमला करने की योजना बनाई जा रही थी। हालांकि, ईरान ने इसे अपनी संप्रभुता पर हमला बताया और तुरंत जवाबी कार्रवाई की धमकी दी। शुरुआती घंटों में ही तनाव इतना बढ़ गया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित हो उठा।

दूसरा दिन: जवाबी हमला और तनाव में वृद्धि

ईरान ने इजरायल के हवाई हमले का जवाब एक ऐसे मिसाइल हमले से दिया, जिसने इजरायल के एक सैन्य अड्डे को निशाना बनाया। ईरान का दावा था कि यह हमला उनके "अहंकार" का जवाब था। इजरायल ने इस हमले को अपनी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा माना और तुरंत अपनी सेना को हाई अलर्ट पर कर दिया। दोनों देशों के नेताओं के तीखे बयान आने लगे, जिससे माहौल और गर्म हो गया। कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने चेतावनी दी कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो रही है।

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तीसरा दिन: सीमा पर झड़पें और बढ़ती हिंसा

तीसरे दिन इजरायल-सीरियाई सीमा पर दोनों ओर से भारी गोलाबारी हुई। ईरान समर्थित गुटों ने इजरायली चौकियों पर रॉकेट दागे, जिसके जवाब में इजरायल ने टैंक और तोपखाने का इस्तेमाल किया। इस दिन दोनों ओर से कई नागरिक हताहत हुए, जिससे मानवीय संकट गहराने लगा। संयुक्त राष्ट्र ने तुरंत युद्धविराम की अपील की, लेकिन दोनों देश पीछे हटने को तैयार नहीं थे।

चौथा दिन: साइबर युद्ध का आगाज

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चौथे दिन संघर्ष ने एक नया मोड़ लिया, जब दोनों देशों ने एक-दूसरे पर बड़े पैमाने पर साइबर हमले किए। इजरायल ने ईरान के महत्वपूर्ण सरकारी वेबसाइटों और बैंकिंग प्रणालियों को निशाना बनाया, जबकि ईरान ने इजरायल के ऊर्जा ग्रिड और संचार नेटवर्क को बाधित करने का प्रयास किया। यह स्पष्ट हो गया था कि यह युद्ध अब केवल पारंपरिक हथियारों तक सीमित नहीं था, बल्कि आधुनिक युद्ध के सभी आयामों को छू रहा था।

पांचवां दिन: समुद्री मार्ग पर तनाव

संघर्ष अब सिर्फ जमीन और साइबर स्पेस तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि समुद्री मार्ग पर भी पहुंच गया। लाल सागर में एक इजरायली मालवाहक जहाज पर हमला हुआ, जिसके लिए इजरायल ने ईरान को जिम्मेदार ठहराया। ईरान ने आरोपों को खारिज किया, लेकिन इस घटना ने वैश्विक व्यापार मार्गों को बाधित करने की आशंका बढ़ा दी। कच्चे तेल की कीमतें आसमान छूने लगीं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा।

छठा दिन: अंतरराष्ट्रीय दबाव और मध्यस्थता के प्रयास

छठे दिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस संघर्ष को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय संघ के नेताओं ने दोनों देशों से संयम बरतने और बातचीत का रास्ता अपनाने की अपील की। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठकें हुईं, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया, क्योंकि दोनों पक्ष अपनी मांगों पर अड़े हुए थे। ईरान-इजरायल संघर्ष अब एक वैश्विक चिंता का विषय बन चुका था।

सातवां दिन: हवाई हमलों में वृद्धि

सातवें दिन इजरायल ने ईरान के भीतर कुछ संदिग्ध परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले किए। इजरायल का दावा था कि ये ठिकाने परमाणु हथियार बनाने के लिए इस्तेमाल हो रहे थे, जो उनकी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा थे। ईरान ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया और इन हमलों को "युद्ध अपराध" बताया। इस दिन के हमलों ने परमाणु संघर्ष की आशंका को और बढ़ा दिया।

आठवां दिन: ईरान का पलटवार और क्षेत्रीय तनाव

ईरान ने इजरायल के हवाई हमलों का जबरदस्त पलटवार किया। उन्होंने इजरायल के भीतर रणनीतिक महत्व के शहरों पर कई मिसाइलें दागीं। इस पलटवार से इजरायल में व्यापक क्षति हुई और कई नागरिक मारे गए। ईरान के इस पलटवार से क्षेत्र में तनाव चरम पर पहुंच गया। लेबनान के हिजबुल्लाह और यमन के हूती विद्रोहियों जैसे ईरान समर्थित गुटों ने भी इजरायल पर हमले शुरू कर दिए, जिससे संघर्ष का दायरा और बढ़ गया।

नौवां दिन: अमेरिका की एंट्री और कूटनीतिक दबाव

नौवें दिन, जब स्थिति पूरी तरह से बेकाबू होने लगी, तब अमेरिका की औपचारिक एंट्री हुई। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक आपातकालीन प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और दोनों देशों से तुरंत युद्धविराम करने की अपील की। उन्होंने स्पष्ट किया कि अमेरिका किसी भी कीमत पर इस क्षेत्र में एक पूर्ण युद्ध नहीं होने देगा। अमेरिकी विदेश मंत्री ने इजरायल और ईरान दोनों के साथ गोपनीय बातचीत शुरू की, जिससे कूटनीतिक प्रयास तेज हो गए। ईरान-इजरायल संघर्ष को रोकने के लिए अमेरिका ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी।

दसवां दिन: गुप्त वार्ताओं का दौर

दसवें दिन, अमेरिका की मध्यस्थता में इजरायल और ईरान के प्रतिनिधियों के बीच गुप्त वार्ताएं शुरू हुईं। ये वार्ताएं एक तीसरे देश में हुईं और इन्हें अत्यंत गोपनीय रखा गया। प्रारंभिक रिपोर्टों से पता चला कि वार्ताएं बेहद तनावपूर्ण थीं, लेकिन अमेरिकी दबाव के कारण दोनों पक्ष बातचीत करने को मजबूर थे। इस दिन भी छिटपुट झड़पें जारी रहीं, लेकिन संघर्ष की तीव्रता में थोड़ी कमी आई।

ग्यारहवां दिन: सीजफायर की उम्मीद

ग्यारहवें दिन, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बयान जारी कर कहा कि युद्धविराम की दिशा में "सकारात्मक प्रगति" हुई है। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही एक समझौते पर पहुंचा जा सकेगा। इस खबर से दुनिया भर में आशा की किरण जगी। स्टॉक मार्केट में उछाल आया और कच्चे तेल की कीमतें गिरने लगीं, जो इस बात का संकेत था कि वैश्विक समुदाय इस संघर्ष के अंत का बेसब्री से इंतजार कर रहा था।

बारहवां दिन: ट्रंप ने किया सीजफायर का ऐलान और दुनिया ने ली राहत की सांस

और आखिरकार, बारहवें दिन, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐतिहासिक घोषणा की। उन्होंने इजरायल और ईरान के बीच युद्धविराम का ऐलान किया। ट्रंप ने कहा कि दोनों देशों ने अमेरिकी मध्यस्थता में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत वे तुरंत सभी सैन्य कार्रवाइयों को रोक देंगे और भविष्य में विवादों को बातचीत के जरिए सुलझाएंगे। इस ऐलान के साथ ही, दुनिया ने राहत की सांस ली। तीसरा विश्व युद्ध, जिसकी आशंका जताई जा रही थी, टल गया। ईरान-इजरायल संघर्ष थम गया और अब शांति बहाली की दिशा में प्रयास शुरू होंगे।

क्या था इस संघर्ष का मूल कारण?

इस संघर्ष की जड़ें पुरानी दुश्मनी और क्षेत्रीय वर्चस्व की लड़ाई में निहित हैं। इजरायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपनी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है, जबकि ईरान इजरायल के अस्तित्व को चुनौती देता है और फिलिस्तीनी मुद्दे पर उसके खिलाफ खड़ा रहता है। सीरिया में ईरान की बढ़ती सैन्य उपस्थिति और इजरायल की उस पर लगाम लगाने की कोशिशें भी इस संघर्ष का एक प्रमुख कारण थीं। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच छद्म युद्ध (Proxy War) भी लगातार जारी रहा है, जहाँ वे सीधे युद्ध में शामिल न होकर विभिन्न गुटों के माध्यम से एक-दूसरे से लड़ते हैं।

अमेरिका की भूमिका: संकटमोचक या आग में घी डालने वाला?

अमेरिकी भूमिका इस संघर्ष में काफी जटिल रही है। एक तरफ, अमेरिका इजरायल का एक मजबूत सहयोगी है और उसकी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। दूसरी ओर, वह मध्य-पूर्व में स्थिरता बनाए रखने और ईरान के साथ सीधे टकराव से बचने की कोशिश करता है। इस संघर्ष में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने युद्धविराम कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का हस्तक्षेप समय पर था और उसने एक बड़े युद्ध को टाल दिया। हालांकि, कुछ अन्य विश्लेषकों का तर्क है कि अमेरिकी नीतियों ने ही क्षेत्र में तनाव को बढ़ाया है, जिससे यह संघर्ष भड़का।

आगे क्या? शांति की राह में चुनौतियां

अब जबकि युद्धविराम हो चुका है, सवाल यह है कि आगे क्या? क्या यह शांति स्थायी होगी या यह सिर्फ एक अस्थायी विराम है? शांति की राह में कई चुनौतियां हैं। दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी है, और उनके मूलभूत मतभेद अभी भी मौजूद हैं। ईरान का परमाणु कार्यक्रम, इजरायल की सुरक्षा चिंताएं और फिलिस्तीनी मुद्दा अभी भी अनसुलझे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इन मुद्दों को हल करने के लिए लगातार प्रयास करने होंगे। कूटनीति, बातचीत और आपसी सम्मान ही इस क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करने का एकमात्र रास्ता है।

इस संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मध्य-पूर्व में कोई भी छोटी घटना बड़े युद्ध का कारण बन सकती है। विश्व को इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना होगा।

यह संघर्ष भले ही थम गया हो, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम होंगे। आपके अनुसार, इस संघर्ष में किस देश की भूमिका सबसे अहम रही और आगे चलकर इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में बताएं।

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