चीफ जस्टिस आफ इंडिया ने उनसे इस्तीफा देने को कहा था लेकिन जस्टिस यशवंत वर्मा नहीं माने। उसके बाद सीजेआई संजीव खन्ना ने इन हाउस कमेटी की रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु को भेज दी है। जस्टिस वर्मा के घर से जले हुए नोटों का जखीरा मिलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इन हाउस कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में हरियाणा एंड पंजाब के अलावा हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के साथ एक और जस्टिस शामिल थीं। इन लोगों ने पाया कि जस्टिस वर्मा सीधे तौर पर दोषी हैं। लिहाजा उनसे इस्तीफा लिया जाना चाहिए। उसके बाद सीजेआई खन्ना ने वर्मा को अपने दफ्तर बुलाकर इस्तीफा मांगा लेकिन उन्होंने सिरे से इन्कार कर दिया। जाहिर है कि यशवंत वर्मा सुप्रीम कोर्ट को आंखें दिखा रहे हैं। सीजेआई ने कमेटी की रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी है। माना जा रहा है कि अगर जस्टिस वर्मा सीधे तरीके से नहीं माने तो उनको महाभियोग के जरिये हटाया जाएगा।
जरा याद करिए जस्टिस कर्नन का केस
पहली दफा 2017 में कोई हाईकोर्ट का जस्टिस सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ गया था। जस्टिस सीएस कर्नन उस दौरान कलकत्ता हाईकोर्ट में तैनात थे। उन्होंने कई जस्टिसों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। उनका कहना था कि हाईकोर्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट के भी कई जस्टिस करप्ट हैं। नोटबंदी के दौरान कईयों के घर से काला धन मिला। उन्होंने 20 जजों को निशाने पर लेते हुए तत्कालीन सीजेआई के साथ प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को चिट्ठी भेजी थी।
सीजेआई को 7 जजों की बेंच बनाकर करनी पड़ी थी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट उनके आरोपों से तिलमिला गया था। तत्कालीन सीजेआई ने सात जजों की बेंच में आदेश दिया था कि जस्टिस कर्नन अवमानना के दोषी हैं लिहाजा फरवरी में वो सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश हों। जस्टिस कर्नन ने आदेश को मानने से इन्कार कर दिया। उन्होंने अपनी कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट के जस्टिसों के खिलाफ कई आदेश जारी किए। इतना ही नहीं उन्होंने एक आदेश जारी करके कहा कि सीजेआई की अगुवाई वाली सात जजों की बेंच उनको 14 करोड़ का मुआवजा दे। क्योंकि उनकी हरकतों से उनकी मानसिक शांति में खलल पड़ा है।
मामला इतना ज्यादा तूल पकड़ गया कि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्नन को काम करने से ही रोक दिया। उनके खिलाफ कई तीखे आदेश जारी हुए। आखिर में कर्नन लापता हो गए। बाद में वो जब सामने आए तो उनको जेल में जाना पड़ा। ये पहला मामला था जब न्यायपालिका की साख पर बट्टा लगा। जस्टिसेज की आपसी लड़ाई सारे देश ने खुली आंखों से देखी थी।
जस्टिस गांगुली ने की थी चंद्रचूड़ से उलझने की कोशिश
दूसरे मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गांगुली ने सीधे तौर पर तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ से उलझने की कोशिश की थी। ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के खिलाफ टीवी पर इंटरव्यू देने वाले अभिजीत गांगुली की चंद्रचूड़ से तकरार इसी मसले पर हुई। चंद्रचूड़ ने उनको हिदायत दी कि वो टीवी पर बात करने से बचें। इतना ही नहीं वो मामला भी उनकी बेंच से हटा लिया गया। उसके बाद गांगुली ने सु्प्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से ऐसे कागजात सीधे तौर पर तलब कर लिए जो वो नहीं मंगा सकते थे।
रात में 12 बजे सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को दिया था आदेश
गांगुली ने रात के तकरीबन 12 बजे ये आदेश जारी किया। गतिरोध इतना ज्यादा बढ़ा कि सुप्रीम कोर्ट ने अगले दिन स्पेशल बेंच बिठाकर गांगुली को सख्त हिदायतें जारी कीं। जस्टिस गांगुली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के धुर विरोधी माने जाते हैं। उनको बीजेपी का साथ मिला हुआ था। शिक्षकों की भरती कैंसिल करके उन्होंने ममता सरकार को तीखा झटका दिया था। हालांकि बाद के दौर में वो नौकरी से इस्तीफा देकर बीजेपी में चले गए। उनको लोकसभा का टिकट मिला। वो जीते और फिलहाल सांसद हैं। जाहिर है कि बीजेपी से उनके संबंधों के चलते ही डीवाई चंद्रचूड़ ने तीखे तेवर नहीं दिखाए वरना उन पर कड़ा एक्शन हो सकता था।
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