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Photograph: (google )
उत्तराखंड अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर होने के साथ-साथ देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम यहीं स्थित है। भगवान विष्णु को समर्पित यह स्थान रहस्यों से भरा हुआ है और इसकी कई पौराणिक मान्यताएं हैं। इन्हीं में से एक मान्यता यह भी है कि यहां शंख नहीं बजाया जाता। ऐसा क्यों है? भगवान बद्रीनाथ के दरबार में शंख क्यों नहीं बजाया जाता? आइए इस रहस्य को समझने की कोशिश करते है ।
शंख क्यों नहीं बजाया जाता?
हिंदू धर्म में शंख को बहुत महत्व दिया जाता है, कोई भी छोटी या बड़ी पूजा शंख के बिना अधूरी मानी जाती है। हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान विष्णु को शंख बहुत प्रिय है, फिर उनके प्रमुख धामों में से एक बद्रीनाथ में शंख क्यों नहीं बजाया जाता। बद्रीनाथ में शंख न बजाने के पीछे दो पौराणिक कथाएं हैं।
पहली कथा के अनुसार एक बार देवी लक्ष्मी बद्रीनाथ स्थित तुलसी भवन में ध्यानमग्न थीं, उस दौरान भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नाम के एक असुर का वध किया था, लेकिन देवी लक्ष्मी उस समय ध्यान में लीन थीं, इसलिए यह सोचकर कि कहीं उनका ध्यान भंग न हो जाए, भगवान विष्णु ने शंख नहीं बजाया। यही कारण है की आज भी यहाँ पर शंख नहीं बजाय जाता है।
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एक अन्य कथा के अनुसार एक बार बद्रीनाथ में राक्षसों का आतंक बहुत बढ़ गया था, वे मनुष्यों के साथ-साथ ऋषियों को भी परेशान करने लगे थे। उनके आतंक से परेशान होकर अगस्त्य मुनि ने पूरे बद्रीनाथ में राक्षसों का संहार करना शुरू कर दिया। उनके क्रोध से बचने के लिए आतापी और वातापी नाम के दो राक्षसों ने मंदाकिनी नदी से मदद मांगी और एक शंख में छिप गए। यह जानने के बाद अगस्त्य ऋषि ने शंख नहीं बजाया, शंख बजने से आतापी और वातापी का आसानी से भाग जाते, बस तब से बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता।
शंख न बजाने का वैज्ञानिक कारण।
अब शंख न बजाने के पीछे के वैज्ञानिक कारण को समझने की कोशिश करते हैं। सर्दियों के मौसम में बद्रीनाथ क्षेत्र में भारी बर्फबारी शुरू हो जाती है, अगर शंख बजाया जाए तो इसकी ध्वनि से बर्फ की चट्टानों में दरारें पड़ सकती हैं। ऐसे में हिमस्खलन की संभावना बढ़ जाती है, यही कारण है कि यहां शंख नहीं बजाया जाता।